flashback… 125 साल की हो गई कलहंसों की नगरी शोहरतगढ़, यहीं लगीं थीं तेल और चावल की पहली मिलें
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। आज के शोहरतगढ़ टाउन की स्थापना सन 1891 में हुई थी। कलहंस राजपूत बड़े महाराज स्व. शोहरत सिंह ने इस उपनगर को बसाया था। यही नहीं जनता के लिए अस्पताल, स्कूल, सिंचाई, रेल आदि का इंतजाम करने के साथ यहां बड़ा व्यापारिक ढांचा खड़ा करने में बड़े महाराज और उनके राजघराने का पूरा योगदान था।
राजस्थान के मूल निवासी कलहंस राजूपतों का एक परिवार गोंडा जिले के खोरहसा होते हुए डुमरियागंज के पास ग्राम चौखड़ा में आबाद हुआ था। वहीं से स्व. शोहरत सिंह ने शोहरतगढ़ रियासत की बुनियाद डाली। स्व. शोहरत सिंह को बडे़ महाराज के नाम से जाना जाता है। इस रियासत की राजधानी के रूप में बसाये गये शोहरतगढ टाउन की स्थापना को इस साल एक सौ पच्चीस वर्ष हो चुके हैं।
कैसे बसा शोहरतगढ़
शोहरतगढ रियासत की स्थापना के दौरान वर्तमान नीवी दोहनी के पास एक छोटी सी आबादी थी, जिसका नाम राजस्व रिकार्ड के मुताबिक चांदापार था। बाकी हिस्से में एक जंगलनुमा आम की विशाल बाग थी, जो राजघराने की सम्पत्ति थी। महाराज ने उसे कटवाया फिर राजस्थान से मारवाड़ी समाज के लोगों को बुला कर बसाया। कुछ स्थानीय व्यापारी समाज भी यहां बसाये गये। इस प्रकार वर्तमान गड़ाकुल से नीवी दोहनी के बीच के इलाके में शोहरतगढ़ कस्बे की स्थापना हुई और इसे कुछ दिन बाद इसे शोहरतगढ़ का नाम मिल गया।
महाराज शोहरत सिंह ने टाउन को बसाते समय इसका स्ट्रक्चर जयपुर की तर्ज पर खड़ा कराया, जिसमें 170 फीट चौड़ी सड़कें थी। गली बिल कुल नहीं थी। मकान आमने सामने ही बनाये गये थे। किसी के मकान के पीछे कोई मकान नहीं बनाया गया था। हालांकि आज सड़कें अवैध कब्जे का शिकार हैं और मकान भी बेतरतीब बन चुके हैं।
पहली तेल और चीनी मिल
बड़े महाराज शोहरत सिंह ने यहां व्यापारियों को बसाने के साथ ही सन 1900 में तेल और राइस मिल लगवा कर कस्बे की व्यापारिक स्थिति मजबूत की। यहीं नहीं तीन लाख का एक कोष भी बनाया, जिसमें से जरूरत पड़ने पर कोई भी व्यापारी बिना ब्याज के कर्ज ले सकता था। इसे ओपेन बैक का नाम दिया गया था।
राज घराने के अन्य योगदान
राजघराने ने कस्बे को खुशहाल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपने पैसे से सेमरा, मसई और महली सागर बनवाया तथा बानगंगा पर एक बांध के साथ सौ किमी नहरों का निर्माण कराया और किसानों को मुफ्त सिंचाई की व्यवस्था की। इसके अलावा प्राइमरी स्कूल, पोस्ट आफिस का निर्माण कर कर उसे अंग्रेज हुकूमत को दे दिया। उन्होंने टाउन में राम जानकी मंदिर और शोहरतनाथ महादेव मंदिर का भी निर्माण कराया।
राजघराने ने बनवाया रेलवे स्टेशन
बड़े महराज की मृत्यु 1921 मे हुई। इस दौरान रेल लाइन की परिकल्पना तैयार हो चुकी थी। शोहरतगढ़ में रेलवे स्टेशन की अवधारणा नहीं थी, लेकिन राजधराने ने शासन से बात कर स्टेशनकी मंजूरी कराई और अपने पैसे से उसका निर्माण कराने के बाद उसे ब्रिटिश सरकार को दान दिया। इस प्रकार शोहरतगढ़ रेलवे स्टेशन वजूद में आया।
लोग बड़े महराज को जानें, यही कामना-बाबा साहब
इस बारे में स्व. बड़े महाराज शोहरत सिंह के वंशज और समाज सेवी राजा योगेन्द्र प्रताप सिंह उर्फ बाबा साहेब ने वार्ता के दौरान बताया कि बड़े महराज सच्चे अर्थ में जनता के सेवक थे। उन्होंने कभी अपनी रियासत के प्रभाव से कोई जनविरोधी काम नहीं किया। शोहरतगढ़ टाउन की स्थापना के 125 साल के मौके पर इतना ही कहना है कि नई पीढ़ी को बड़े महराज की न्याय और जनपियता की जानकारी मिले। उनके प्रति यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
2:16 PM
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9:22 PM
ओके भाई। बात करता हूं आपसे।
6:26 PM
Sir, I appreciate what Author did… But it is a one sided story, They are all Supporters of British Government and did so many harassment of the people.. When Britisher imposed tax they taken just doubl.. now we are gonna appreciate him for his work and Baba is in Politics now they want to become a better Rajvansh in between of Janta!! Sorry dude it all about to getting votes and these are the Better Propaganda.
9:18 PM
आरिफ साहब आपकी बात सही हो सकती है। उस दौर के तमाम राजा अंग्रेजों के साथ रहते थे। यह एक अलग मुदृदा है। मेरी खबर शाहरतगढ टाउन के बसने के १२५ साल पूरा होने पर है। अगर उसमें कोई गलती हो तो जरूा लिखें। इंतजार रहेगा।