जीएम सिंह की जगह पनियरा से विधान परिषद के निवर्तमान सभापति गणेश शंकर पांडेय होंगे बसपा उम्मीदवार

February 10, 2016 11:54 AM0 commentsViews: 1172
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एस.पी. श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश विधान परिषद के निवर्तमान सभापति गणेश शंकर पांडेय

उत्तर प्रदेश विधान परिषद के निवर्तमान सभापति गणेश शंकर पांडेय

महाराजगंज। उत्तर प्रदेश् विधान परिषद के हाल तक सभापति रहे गणेश शंकर पांडेय काे बहुूजन समाज पार्टी ने महाराजगंज जिले की पनियरा सीट से चुनाव लडने के लिए हरी झंडी दे दी है। श्री पांडेय पूर्वमंत्री पंउित हरिशंकर तिवारी के भांजे हैं। पनियरा से वर्तमान बसपा विधायक  देव नारायण सिंह उर्फ जीएम सिंह को पार्टी सुप्रीमो मायावती ने गोरखपुर लोकसभा का प्रभारी व सुरक्षित विधानसभा सीटों, खजनी व बांसगांव का प्रभारी बनाया है। मायावती के इस फैसले से गोरखुपर की राजनीतिक समकरण में बदलाव की संभावना बढ गई है।

बताया जाता है कि गणेश शंकर पांडेय अब तक एमएलसी का चुनाव लड़ कर जीतते रहे हैं। यह पहलीबार है जब वह विधानसभा का चुनाव लड़ेंगे। दरअसल बसपा ने जीएमसिंह जैसे नेता को हटा कर बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। बेहद सौम्य और गंभीर प्रकृति के गणेष शंकर पांउेय पूर्वमंत्री और ब्रहमण समाज के सशक्त नेता पंउित हरिशंकर तिवारी के भांजे हैं।

बसपा मान कर चल रही है कि गणेश शंकर पांडेय के चुनाव लड़ने से उनकी सियासी हनक गोरखुपर बस्ती मंडल में जायेगी। इससे बसपा को दोनों मंडलों के ब्रहमण मतदाताओं को रिझाने में आसानी होगी। गणेश शंकर पांडेय के साथ पंउित हरिशंकर तिवारीके बेटे विनय शंकर तिवारी भी गोरखपुर की किसी सीट से चुनाव लडेंगे। बसपा का मानना है कि इन दो ब्राहमण चहरों के लडतने से क्षेत्रीय स्तर पर बसपा को लाभ मिलेगा।

दूसरी तरफ सहजनवां क्षेत्र के निवासी जीएम सिंह बहुजन समाज पार्टी के साथ पिछले कई सालों से जुड़े रहे हैं और पार्टी न उन्हें लगातार कई विधान सभा चुनावों से अपने प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतारा है। 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें महराजगंज जनपद की पनियरा सीट से प्रत्याशी बनाया था। इस चुनाव में भी जीएम सिंह ने सफलता हासिल की थी।

पार्टी सूत्रों की मानें तो उन्हें जल्द ही गोरखपुर मंडल की सभी सुरक्षित विधान सभा सीटों का प्रभारी बनाया जा सकता है। पार्टी ने आगामी चुनाव में ब्राहमण मतों के अहमियत को पूरी गंभीरता से बता  दिया है। जीएम सिंह ने स्थिति को जानते हुए इसे सहज ढंग से स्वीकार किया है। बसपा आला कमान के इस फैसले की जानकारी मिलने के बाद सपा और बसपा ने क्षेत्रीय लेबिल पर अपनी रणनीतियों की समीक्षा शुरू कर दी है।

 

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