गेंहूं की बालियों में कम पड़ रहे दाने, फसल खराब होने की आशंका से डरे किसान
नजीर मलिक
प्रकृति की बेरुखी से किसान टूट रहे हैं। बीती बरसात में बाढ़ में तबाही झेलने वाले किसानों को रबी की फसल में भी नुकसान का सामना करना पड़ेगा। इस बार बाढ़ केवल खरीफ की फसल डुबोने के लिए जिम्ममेदार नहीं है, बल्कि गेहूं की फसल भी खराब होने का अप्रत्यक्ष कारण भी है। दाने के कम होने के कारण पैदावार कम होगी और किसानों के सामने बैंक कर्ज चुकाने की चुनौती हो सकती है।
इस वर्ष 10 अक्टूबर को बाढ़ ने दस्तक दी और जिले में 500 से अधिक गांव संपर्क विहीन हो गए थे। खेतों की फसलें डूब गई थी और कई गांवों के घरों में भी पानी भर गया था। एक माह देर से आई बाढ़ जब वापस गई तो रबी की फसल की बुवाई में करीब 20 दिन देर हो गई। फरवरी मार्च में तापमान सामान्य से 3-4 डिग्री ऊपर चढ़ा तो बुवाई में देर होने के कारण नुकसान का जोखिम बढ़ गया।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं की बुवाई 15 से 25 नवंबर तक हो जाती थी, लेकिन बाढ़ का पानी हटने में समय लगा, इससे नमी सूखने में देर हुई और गेहूं की बुवाई 10 दिसंबर के बाद तक हो सकी। एक हेक्टेयर में गेहूं का औसत उत्पादन 40 क्विंटल होता है, लेकिन इस बार उत्पादन में 15 से 20 क्विंटल गिरावट होने की आशंका है। ऐसी स्थिति तब है, जबकि तापमान बढ़ने के साथ पछुआ हवा तेज नहीं चल रही है। हवा की रफ्तार बढ़ी तो नुकसान अधिक हो सकता है, क्योंकि तेज हवा में किसान खेत में पानी चलाएगा तो फसल गिर जाएगी और नुकसान बढ़ जाएगा। किसानों ने 125 दिन में तैयार होने वाली नई प्रजाति की गेहूं की बुवाई की है, उन्हें राहत मिल सकती है, लेकिन 135 से 140 दिन में तैयार होने वाली फसल में नुकसान कुछ अधिक हो सकता है।
सूख रहे बालियों के टोड़- डा. मार्कन्डेय सिह
इस बारे में कृषि विज्ञान केन्द्र सोहना के वैज्ञानिक डॉ. मार्कंडेय सिंह का कहना है कि खेत में नमी सूख जाती है और बाहर भी तापमान गर्म रहता है तो बालियों का टोड़ जल्दी सूख जाता है और दाना पतला हो जाता है। गनीमत है कि रात में तापमान कम है और पश्चिमी हवा की रफ्तार तेज नहीं है। इनमें से कोई भी स्थिति आई तो नुकसान अधिक होगा। फिलहाल अनुमान है कि उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत कमी आ सकती है।
मौसम के असंतुलन से इंसानी बीमारी बढ़ी
मौसम परिवर्तन में असंतुलन के कारण केवल फसलों पर ही नहीं इंसानों पर भी पड़ा है। इसका कारण बताते हुए स्थानीय एमपीटी मेडिकल कालेज की सिस्टेंट प्रोफोसर मेडिसिन डॉ. कनिका मिश्रा बताती है कि जलवायु असंतुलन के कारण मरीजों की संख्या बढ़ गई है। पिछले वर्षों में जिस प्रकार अप्रैल व मई में मरीज आते थे, उस प्रकार मरीज मार्च में ही आ रहे हैं। ओपीडी में करीब 25 प्रतिशत मरीज उल्टी, दस्त और पेट दर्द वाले पहुंच रहे हैं। वहीं दिन रात के तापमान में अंतर अधिक होने और तापमान में उतार-चढ़ाव के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। सर्दी, खांसी और बुखार के भी मरीज हैं। वहीं अचानक तापमान बढ़ा है तो त्वचा के मरीजों की संख्या भी बढ़ गई है।