गोरखपुर में समाजवादी सरकार और संगठन के बीच माना जा रहा एमएलसी चुनाव
विशेष संवाददाता
गोरखपुर.महाराजगंज सीट के लिए हो रहे चुनाव में दोनों ही उम्मीदवार साइकिल चला रहे हैं। नतीजे में एक साइकिल उलट भी गई, तो दूसरी से सफर जारी रहेगा। यह जरूर है कि अपनी साइकिल बचाने व दूसरे की उलटने में दोनों समाजवादी योद्धा मैदान में एक दूसरे के खिलाफ जमकर डट हुए हैं। इस जंग में विजय किसी की हो, लेकिन इसे समाजवादी सरकार और पार्टी संगठन में जंग के रूप में देखा जा रहा है।
इस चुनाव में उम्मीदवार में जयप्रकाश यादव के साथ जिला इकाई के लोग खड़े हैं, जो बार-बार यह घोषणा कर रहे हैं कि जयप्रकाश ही पार्टी के घोषित उम्मीदवार हैं। दूसरे प्रत्याशी सीपी चंद खुद को सीएम समर्थित उम्मीदवार मानकर चुनाव मैदान में डटे हैं। उनका दावा है कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने ही उन्हें टिकट दिया है। इस मुद्दे पर पार्टी की प्रदेश इकाई का मौन सरकार और संगठन के बीच दरार पड़ने का इशारा कर रहा है।
पहले भी टकरा चुके है सीपी एंड जेपी
इस वक्त दोनों प्रत्याशी प्रचार–प्रसार में जुटे हुए हैं। मजेदार बात यह है कि यह दोनों उम्मीदवार पिछले विधान परिषद चुनाव में भी अपना भाग्य आजमा चुके हैं। तब सीपी चन्द समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार थे और टिकट न मिलने से जयप्रकाश यादव निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़े। परिणाम यह रहा कि दोनों को पराजय का मुंह देखना पड़ा। तब बाजी बसपा प्रत्याशी गणोश शंकर पांडेय के पक्ष में चली गयी थी।
एक उम्मीदवार के समर्थन में विपक्षी भी खड़े
दोनों प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में डटने से यहां के जातिगत व राजनीतिक समीकरण में नये तरह के बदलाव देखे जा रहे हैं। एक प्रत्याशी के पक्ष में भितरखाने से भारतीय जनता पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के कुछ असरदार लोग खड़ेे नजर आ रहे हैं। ये सभी उक्त प्रत्याशी को चुनाव जिताने की रणनीति बनाते देखे जा रहे हैं।
इस प्रत्याशी को भाजपा के एक सांसद, बसपा के एक विधायक के साथ ही एक असरदार पूर्व विधायक का भी समर्थन हासिल है। ये दिग्गज इसके पहले कभी एक पाले में नहीं देखे गये। वहीं इस चुनाव में जातीय राजनीति भी नये तरह का करवट लेती दिख रही है। एक खास वर्ग के मतदाताओं में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाला राजनीतिक परिसर भी उसी प्रत्याशी को जिताने की रणनीति बनाने में जुटा दिखायी दे रहा है।
इसके उलट दूसरे प्रत्याशी के पक्ष में उसके सजातीय मतदाताओं का ध्रुवीकरण भी जारी है। फिलहाल समाजवादी पार्टी को इन दोनों में से विजयी उम्मीदवार का लाभ मिलना तय है। संगठन अगर यूं ही मौन रहा और दोनों प्रत्याशी मैदान में जोर आजमाइश करते रहे तो विजय हासिल करने वाला भले ही सपा का एमएलसी कहलाएगा, लेकिन दोनों के बीच चल रही जंग से सरकार और संगठन के बीच दरार बढ़ने का खतरा बरकरार रहेगा।