इधर आरती उधर अजान, मंदिर-मस्जिद दे रहे भाई चारे का पैगाम

August 31, 2015 2:24 PM0 commentsViews: 978
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बृजेश मिश्र

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“सिद्धार्थनगर क्षेत्र के पश्चिमी छोर पर स्थित बिस्कोहर बाजार में एक दूसरे से सटे मंदिर-मस्जिद साम्प्रदायिक एकता की शानदार मिसाल हैं। यहां एक तरफ आरती की मधुर स्वर लहरी गूंजती है तो दूसरी तरफ अजान की पाकीजा सदा। मगर आज तक कभी ऐसा मौका नहीं आया जब अजान और आरती के आस्थावानों के बीच कभी विवाद हुआ हो”

नेपाल सीमा से सटा बिस्कोहर बाजार बाजार कस्बा शिव की नगरी के रूप में जाना जाता है। 10 हजार की आबादी वाले इस कस्बे में कभी 365 शिवमंदिर और उतने ही कुएं हुआ करते थे। उनके अवशेष आज भी मौजुद हैं। शिव मंदिर की वजह से ही इसे विष को हरने वाला अर्थात बिस्कोहर का नाम मिला था। प्रसिद्ध आलोचक व साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी का गांव भी यही है, जिस पर उन्होंने नंगा तलाई का गांव नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी है।

बिस्कोहर बाजार के अंदर एक प्राचीन मंदिर है। मंदिर से सट कर एक मस्जिद भी बनी हुई है। दोनांे की प्रचीनता का कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है, लेकिन यह बहुत पुराने हैं, इसे वहां का हर बुजुर्ग बताता है। कस्बावासी राम प्रसाद कहते हैं कि उनके दादा ने बताया था कि जब वह पैदा हुए थे, तब भी मंदिर मस्जिद दोनों थे। जाहिर है कि यह सैकड़ों साल पुराने हैं।

इन दोनाें इबादत स्थलों में प्रतिदिन पूजा अर्चना और नमाज अदा की जाती है। गौर तलब है कि यहां आरती होती रहती है और अजान चलती रहती है, लेकिन कोई भी धर्मावलंबी इसे अपनी इबादत में दखल नहीं मानता है। यहां के निवासी रहमत भाई कहते हैं कि इस कस्बे में मंदिर-मस्जिद साथ होने के बावजूद कभी कसीदगी नहीं फैली। कभी तनाव नहीं हुआ। अगर पूरे मुल्क में यही माहौल बन जाये तो हर घर में अमनो अमान हो जाए।

मंदिर के पुजारी चिनगुद दास और मौलवी हमीदुल्लाह नदवी भी इस बात को मानते हैं। दोनों लोगों का कहना है कि हम दोनाें वर्षों से साथ हैं। अजान और मंदिर की आरती को हम लोगों ने कभी एक दूसरे का बाधक नहीं माना। यह तो सियासत है जो लोगों को लड़ाती है। मजहब का काम है मुहब्बत का पैगाम देना और हम लोग इसे बखूबी अंजाम दे रहे हैं।

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