दलित बालिका अपहरण कांड में पुलिस की अमानवीय भूमिका की जांच करेगा महिला आयोग
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर हेडक्वार्टर के कांसीराम कालोनी से भगाई गई नाबालिग दलित बालिका का मामला जल्द ही महिला आयोग के समक्ष पेश होगा। इस खबर के बाद पुलिस मोहकमे के माथे पर भी बल पड़ गये हैं। जांच हाेने पर कई पुलिस वालों पर गाज गिरना तय है।
उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की सदस्य जुबैदा चौधरी और श्रीमती इन्द्रासना त्रिपाठी ने बताया कि शहर से एक 15 साल की दलित बालिका का अपहरण हुआ और पुलिस ने मुकदमा लिखने के बजाये मामले को दबा दिया। बाद में घटना के तूल पकड़ने पर सदर थाने में बडी मुश्किल से मुकदमा दर्ज किया।
इसे घोर लापरवाही का सबूत मानते हुए दोनो सदस्यों ने कहा कि वह मामला जल्द ही आयोग के समक्ष रखेंगीं और दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करायेंगी। पुलिस अगर ऐसे मामलों को पचा जाती है तो अन्य मामलों को कैसे निपटाती होगी। उन्होंने कहा कि पुलिस की यह गलती अक्षम्य है। दरअसल शहर के आजाद नगर व पड़ोस के एक अन्य मुहल्ले के रहने वाले दो युवक सोनू और फजल दस दिन पहले उक्त दलित बालिका को कांसीराम आवास से अपहृत कर ले गये थे। दोनों ने उसे गोरखपुर में रखा था।
बालिका के पिता द्धारा घटना की सूचना देने पर पुलिस ने मुकदमा तो नहीं लिखा। इतना जरूर किया कि लड़की को गोरखपुर से बरामद कर उसे परिजनों को सौंप दिया।घटना की खबर मीडिया की सुर्खियां बनी तो हलचल मची। महिला आयोग की दोनो सदस्य सुश्री चौधरी और श्रीमती त्रिपाठी ने बालिका से मुलाकात कर उसकी आपबीती सुनी।
इस कांड में मीडिया की दिलचस्पी और महिला आयोग के सदस्यों की सक्रियता के चलते दस दिन बाद आनन फानन में दोनाें अभियुक्तों के खिलाफ सिद्धार्थनगर थाने में मुकदमा लिखा गया। समाचार लिखे जाने तक मुख्य अभियुक्त फरार था।
आयोग की दोनों सदस्यों ने इसे पुलिस की अमानवीय हरकत बताते हुए कहा है कि मुकदमा लिख कर पुलिस अपना दामन नहीं बचा सकती। आयोग इस मामले की जांच करेगा और दोषी को सजा दिलाई जायेगी।