सैलाब के नजरिए से जिले के इतिहास में इतना लुंजपुंज प्रशासन नहीं दिखा
—पीड़ितों की चीखें भी नहीं सुन पा रहा संवेदनहीन प्रशासन- उग्रसेन सिंह
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। नेपाल बार्डर से सटा यह इलाका सैलाब की दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है। इसीलिए यहां हर साल बरसात से पहले बाढ़ से बचाव की तैयारियों को लेकर बैठक होती है। नावों का इंतजाम पहली बरसात के बाद से ही कर लिया जाता है। मगर इस बार प्रशासन ने ऐसा कुछ भी नहीं किया। यही वजह है कि बाढ़ के पहले ही झटके में प्रशासन पूरी तरफ विफल हो गया है। हर तरफ से राहत बचाव की आवाजें आ रही हैंए मगर उन्हें बचाने वाला कोई नहीं है।
सिद्धार्थनगर में इस बार अभी तक पांच सौ गांव सैलाब में डूबे हुए हैं। लेकिन कहीं भी नाव लगा पाने में प्रशासन सफल नहीं है। इसका कारण यह है कि प्रशासन ने समय पूर्व नावों की व्यवस्था ही नहीं की। उसने बाढ़ चौकियों और शरणालयों की स्थापना भी नहीं की।यदि कहीं की भी है तो मीडियां व पींड़ित लोंगों को नहीं दिखाई दे रही हैं। अभी तक किसी गांव में राहत वितरण नहीं हुआ। राजस्व विभाग के किसी भी कर्मचारी को गांवों में नहीं देखा जा रहा है
सच कहा जाये कि सिद्धार्थनगर जिले की स्थापना के 29 सालों में सैलाब की दृष्टि से इतना कमजोर प्रशासन कभी नहीं रहा। बाढ़ के मौसम में हमेशा यहां फैजाबादए बखिरा आदि से नावे मंगा ली जाती थींए मगर इस बार बाहर से एक भी नाव नहीं आयी है। नदी के किनारे कुछ गांवों में मल्लाहों की निजी नावें हैं उसी से किसी तरह ग्रामीण अपनी सुरक्षा कर रहे हैं। हांलाकि जिलाधिकारी का दावा है कि वे राहत बचाव करा रहे हैं, मगर वह किसी बाढ़ग्रस्त गांव में दिख नहीं रहा है।
महिला आयोग की सदस्य रहीं सपा नेता नेता जुबैदा चौधरीए कांग्रेस नेता इसरार अहमद कहते हैं कि इतना लुंजपुजं प्रशासन और व्यवस्था कभी नहीं देखी। गांवों में लोग एक मुठ्ठी चने को तरस रहे हेंए लेकिन उनका कोई पुरसाहाल नहीं है। सपा नेता व शोहरतगढ़ विधानसभा सीट के पूर्व प्रत्याशी उग्रसेन सिंह कहते हैं कि यह कैसी सरकार है जिसे सैकड़ों गांवों की चीखें भी सुनाई नहीं पड़ रही। हैरत है कि इतनी भयानक बाढ़ में कोई सरकारी आदमी मदद को निकल नहीं रहा।
खजूरडांड पुल के पास खड़े सैकड़ों ग्रामीणों का कहना है कि इस बार तटबंधों की मरम्मत तक नहीं हुई। पैसा विभाग के लोगों ने बंदरबांट कर लिया। उनका कहना है कि यदि बांधों की मरम्मत समय पर कर ली जाती तो पुल का एप्रोच नहीं टूटता। दरअसल यह आम शिकायत है कि इस बार तटबंधों के रेनकट और रेटहोल की मरम्मत नहीं की गई। इसलिए हालात और खराब हुए है। खजुरडांड के पास भी लखनापार बांध टूटने की हालत में हैए लेकिन अब तक वहां कोई कर्मचारी नहीं पहुंचा है।