बांसी सीट पर यूपी के स्वास्थ्य मंत्री को कितनी चुनौती दे पा रहे सपा के मोनू दुबे, पलटेगी बाजी
अपने राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे स्वास्थ्यमंत्री जयप्रताप सिंह, क्या मोनू दुबे पलट सकते हैं सियासी बाजी?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। बांसी विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों में सपा, बसपा और भाजपा को छोड़ कर अन्य सभी उम्मीदवार अपनी प्रासंगिकता लगभग खत्म कर चुके है। ऐसे में सवाल उठता है कि यहां से चुनाव लड़ रहे सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार और प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जयप्रताप सिंह को असली चुनौती कौन और कितनी दे पा रहा है। क्या इस बार नये उम्मीदवार मोनू दुबे बाजी पलट पाएंगे या नहीं?
सपा ने रणनीति के तहत बदला प्रत्याशी
आपको बता दें कि बांसी में अब तक जय प्रताप सिंह की स्थिति लगभग अपराजेय रही है। 1989 से चुनाव लड रहे जय प्रताप सिंह केवल एक बार 2007 में सपा के लालजी यादव से हारने के अलावा हर बात विजयी होते रहे हैं। पिछले चार चुनावों को देखा जाये तो सपा सदा ही जय प्रताप सिंह को बराबर की टक्कर देकर हारती रही है। इसका कारण यह बताते हैं कि तब सपा प्रत्याशी लालजी को मुस्लिम और यादव के अलावा अन्य किसी जाति का भरपूर समर्थन नहीं मिला। शायद यही सोच कर सपा नेतृत्व ने इस बार इस ब्राह्मण बाहुल्य सीट से ब्राह्मण उम्मीदवार देने की रणनीति अपनाई और सपा के उभरते नौजवान मोनू दुबे को यहां से टिकट दिया।
बसपा एक निश्चित वोट से नहीं बढ़ सकी आगे
जहां से बसपा का सवाल है वह आज तक 20 हजार वोट के आसपास वोट पाकर हारती रही। हालांकि उसने यहां से अनेक दिग्गज लोगों को मैदान में उतारा। यहां तक कि मंडल के सबसे प्रभावशाली ब्राह्मण हरिशंकर तिवारी के पुत्र तक को अपना उम्मीदवार बनाया, मगर वे भी बाहरी उम्मीदवार होने की बजह से तीसरे स्थान से ऊपर नहीं बढ़ पाये। इसलिए माना जा रहा है कि इस बार भी बांसी में सपा भाजपा के बीच ही मुकाबला होगा। ऐसे में एक सवाल का उठना स्वाभाविक है कि सपा प्रत्याशी मोनू दुबे भाजपा के जय प्रताप सिंह को कितनी चुनौती दे पा रहे हैं।
हारने के बाद सपा ने सदा दी बराबर की टक्कर
अगर हम पिछला इतिहास देखें तो पाएंगे कि पिछले चार चुनावों में मुस्लिम यादव गठजोड़ के चलते सपा ने भाजपा को हमेशा टक्कर देने की कोशिश की है। सन 2002 के चुनाव में सपा के लालजी यादव भाजवपा के जय प्रताप सिंह से मात्र 24 सौ वोटों से हारे। 2007 में लालजी ने जय प्रताप को हराया लेकिन 2012 में मे उन्हें जयप्रताप से मात्र 29 सौ वोटों से हारना पड़ा। 2017 के मोदी लहर में लालजी यादव जरूर भाजपा के जय प्रताप सिंह से लगभग 10 हजार से अधिक वोटों से हारे। बताते चलें कि बासी में भाजपा की सबसे बड़ी ताकत ब्रह्मण रहे हें। इस सीट पर उनकी तादाद लगभग 13 प्रतिशत बताई जाती है। अब वर्तमान में जो स्थितियां हैं उनमें लगता है कि यदि मोनू दुबे अपने सजातीय मतों को गोलबंद करने में कामयाब हुये तो वे भाजपा को शिकस्त दे सकते हैं। ऐसे में हमें देखना होगा कि मोनू दुबे ब्राह्मण मतों को अपनी तरफ मोड़ पाने में कहां तक सफल हुए है।
राजनीतिक विश्लेषकों की अलग अलग राय
इस बारे में राजनीतिक प्रेक्षकों के अलग अलग मत हैं। वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि विप्र समाज के अनेक गंभीर लोगों का मानना है कि 1991 के चुनाव में जय प्रताप सिंह ने बल छल से जिस प्रकार परमात्मा पाण्डेय को लगभग 300 मतों से हराया था, ब्रह्मण समाज उसे भूला नहीं है लेकिन विकल्प के अभाव में वह चुप रहता आया था। आज उसे मौका मिला है तो वह इसकी भरपाई करना चाहेगा। लेकिन एक और विश्लेषक आशीष मिश्र कहते हैं कि अभी मोनू दुबे और सपा के साथ युवा वर्ग पूरी ताकत से लगा दिखाई दे रहा है। परन्तु यदि उसमें ब्रह्मणों के बुजुर्ग वर्ग का जुड़ाव नहीं हुआ तो अन्ततः जय प्रताप सिंह का ही पलड़ा भारी रहेगा।
एक अन्य विश्लेषक का विचार है कि मतदान स्थल तक जाते जाते अधिकांश ब्राह्मण मोनू दुबे के निशान का बटन दबा सकते हैं। लेकिन क्षेत्र के जयंती प्रसाद मिश्र जैसे अनेक असरदार ब्राहृमण आज भी भाजपा के साथ पूरी मजबूती से खड़े हैं। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि बांसी में हरजीत की भविष्यवाणी कठिन है। परन्तु इतना तो तय है कि स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह अपने राजनीतिक जीवन के सबसे कठिन संघर्ष में फंसे हुए है।