बुद्ध भूमि पर फिर गूंजने लगे राज्य पक्षी सारस के नगमें
संजीव श्रीवास्तव
सारस का सिद्धार्थनगर से सदियों का रिश्ता रहा है। ढाई हजार साल पहले यहीं पर राजकुमार सिद्धार्थ ने घायल सारस को बचा कर, मारने वाले से बचाने वाले का का अधिकार अधिक होने का सिद्धांत बनाया था।
वक्त की मार ने इस धरती से सारसों कोे जुदा कर दिया था, लेकिन हाल में इनकी तादद में भारी इजाफा हुआ है। सीमाई इलाका एक बार फिर उनकी सुमधुर आवाज से गूंजने लगा है।
वन विभाग के मुताबिक वर्ष 2013 में जिले में सारसों की तादाद 296 थी। जिसमें 240 व्यस्क एवं 56 बच्चे थे। वर्ष 2014 में इनकी संख्या 333 पहंुच गयी। इसमें 289 व्यस्क एवं 44 बच्चे शामिल थे।
ताजा वर्ष में यह संख्या 431 पहंुच गयी है। इसमें 346 व्यस्क एवं 85 बच्चे हैं। सारसों की बढ़ती तादाद से पता चलता है कि इन्हें सिद्धार्थनगर की माटी खूब रास आ रही है।
बताते चलें कि 2015- 16 को सारस संरक्षण वर्ष घोषित किया गया है। इसके तहत संवर्धन कार्य, प्रचार-प्रचार, गोष्ठी, तालों की साफ-सफाई एवं सारसों के रहने के लिए टीलों का निर्माण किया जायेगा। इससे संबंधित कार्ययोजना को वन विभाग ने स्वीकृति के लिए शासन को भेज रखा है। बस प्रतीक्षा है शासन स्तर से हरी झंडी की।
इस सिलसिले में प्रभागीय वन निदेशक जी एस सक्सेना ने बताया कि सारसों को प्रजनन के लिए जो जलवायु चाहिए, वहां सिद्धार्थनगर में मौजूद है। उन्होंने कहा कि सारसों के संरक्षण के लिए 45 लाख की योजना बनाई गई है। इसे मंजूरी मिलते ही इस दिशा में कुछ नये कदम उठाये जायेंगे।