करणी सेना के बहाने आप राजपूतों की वीरता और बलिदानों को नकार नहीं सकते
ध्रुव्र गुप्त
पटना। आज इक्कीसवीं सदी में भी काल्पनिक जातीय स्वाभिमान की बुनियाद पर खड़ी करणी सेना जैसे जातीय संगठनों से जैसी मूर्खता और उद्दंडता की उम्मीद होती है, वह वैसा ही आचरण कर रही है। घटनाक्रम का दुखद पक्ष यह है कि करणी सेना के बहाने समूची राजपूत जाति को कायर बताकर लांछित और कलंकित करने का सुनियोजित अभियान सोशल मीडिया पर चलाया जा रहा है।
करणी सेना जैसे संगठन देश के सभी राजपूतों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। राजपूत सदा से देश की रक्षा के लिए समर्पित एक लड़ाकू शासक जाति रही है। छोटे-छोटे राज्यों में बंटी होने और आपसी फूट की वजह से प्राचीन और मध्यकाल में भले ही यह जाति विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध कोई बड़ा प्रतिरोध खड़ा नहीं कर सकी हों, लेकिन उसकी वीरता और असंख्य बलिदानों से कोई इंकार नहीं कर सकता।
सबको पता है कि करणी सेना जैसे तालिबानी संगठन के नेता राजपूत स्वाभिमान के लिए नहीं लड़ रहे, बल्कि राजपूतों में काल्पनिक गौरव का उन्माद भरकर भरपूर चंदा एकत्र करने और अगले चुनाव के लिए अपनी सियासी ज़मीन तैयार करने के अभियान में लगे हैं। ‘पद्मावत’ प्रकरण में बिना किसी मतलब के जो गुंडागर्दी हो रही है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जिस तरह धज्जी उड़ाई जा रही है उसके लिए समूची राजपूत जाति नहीं, करणी सेना के कुछ महात्वाकांक्षी नेता और राजपूतों के भीतर अपनी सियासी पैठ बनाने को उत्सुक राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और गोवा की भाजपा सरकारें ज़िम्मेदार हैं। इनकी देखादेखी भविष्य में दूसरे जातीय संगठन भी अपनी राजनीतिक ज़मीन की तलाश में ऐसे ही उपद्रव करेंगे और उनके उपद्रवों को हवा देने को कुछ सियासी दल तैयार भी हो जाएंगे।
हाल में हरियाणा में जाटों का ख़ौफ़नाक उन्माद हम देख ही चुके हैं। राजनीतिक दलों की शह पर जिस तरह हमारे देश का सांप्रदायिक और जातीय माहौल बिगाड़ा जा रहा है, वह भविष्य के लिए एक खतरनाक संकेत है। देश की सरकार स्थिति को सुधारने की कोई कोशिश करेगी, इसकी आशा किसी को नहीं है। देश के अमनपसंद और क़ानून का सम्मान करने वाले लोग सर्वोच्च न्यायालय की तरफ ही उम्मीद से देख रहे है। कुछ लोगों ने ‘पद्मावत’ मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर करणी सेना और चार राज्य सरकारों के खिलाफ अवमानना वाद चलाने की गुज़ारिश भी की है।
देश में क़ानून के शासन का तक़ाज़ा है कि अपने आदेश के बावजूद ‘पद्मावत’ के प्रदर्शन के विरुद्ध भड़काऊ वक्तव्यों और हिंसक प्रदर्शनों के लिए सुप्रीम कोर्ट करणी सेना के सभी अधिकारियों को जेल भेजे और उसके आदेश का मखौल उड़ाने तथा हिंसा को प्रोत्साहित करने के आरोप में चार बेशर्म राज्य सरकारों को बर्खास्त करे !
(लेखक ध्रुव गुप्त जी रिटायर्ड आई.पी.एस हैं।)