अपने राजनीतिक जीवन की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रहे सांसद जगदम्बिका पाल
भितरघात के मद्देनजर चुनाव प्रचार में उतरा पाल का पूरा परिवार
श्रीमती स्नेहलता पाल खुद सम्हाल रहीं महिला विंग की कमान
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। डुमरियागंज लोकसभा सीट से लगातर तीन बार सांसद रहे जगम्बिका पाल अपने जीवन की सबसे कठिन लड़ाई में फंसे हुए हैं। 15 साल की लम्बी इंकम्बेंसी और भितरघात की आशंका के मद्देनजर सांसद पाल का पूरा परिवार चुनाव मैदान में उतरा हुआ है। अपने जीवन का सारा सियासी अनुभव झोंक कर वे चुनावी माहौल को अपने पक्ष में मोड़ने की जी तोड़ कोशिशों में लगे हैं। श्रीमती स्नेहलता पाल जहां महिला वर्करों की टीम बना कर उन्हें प्रचार के लिए दिशा निर्देश देती हैं, वहीं उनके पुत्र और पुत्री मैदान में मोर्चा संभाले हुए हैं।
इस बार मोदी नहीं रिपोर्ट कार्ड पर चर्चा
डुमरियागंज लोकसभा क्षेत्र में इस बार 2014 व 2019 के चुनाव की तरह हालात भाजपा के अनुकूल नहीं है। गत दोनों चुनावों में जनता को सरकार अथवा सांसद के रिपोर्ट कार्ड से जनता को कोई मतलब नहीं था। उसके लिए केवल मोदी का नाम और कमल का सिम्बल ही काफी था। मगर इस बार मोदी नाम के सिक्के की खनक कमजोर है। जनता महंगाई और बेरागारी पर बहस कर रही है। जनता अपने सांसद के लम्बे कार्यकाल पर भी समीक्षा कर रही है। इससे सांसद पाल का चिंतित होना स्वाभाविक है।
सबसे कठिन चुनौती भितरघात की
सांसद जगदम्बिका पाल के समाने सबसे कठिन चुनौत भितरघात को लेकर है जिले के अधा दर्जन महत्वपूर्ण नेता गुपचुप रूप से उनके विरुद्ध खड़े हैं। हालत यह है कि ये नेता उनके कार्यकमों ही नहीं बाहर से आने वाले नेताओं की सभाओं में भी मंचों पर जाने से कतराने का प्रयास करते हैं। चर्चा है सांसद पाल कार्यकर्ताओं के असंतोष को कम करने में कुछ कामयाब भी हो रहे हैं। हालांकि भितरघात पर वे पूरी तरह अंकुश नहीं लगा सके हैं मगर उनका प्रयास जारी है। अब तक जिले में आये बड़े भाजपा नेताओं की मंचों पर कई ऐसे नेता नहीं दिखे जिनका दिखना आम तौर पर स्वाभाविक माना जाता है।
पाल में राजनैतिक कौशल की कमी नहीं
वैसे जगदम्बिका पाल ने इस कमी को अपने राजनैतिक कौशल से दूर करने का प्रयास किया है। उन्होंने हाल में सपा से चिनकू यादव, बसपा से अशोक तिवारी कांग्रेस से सच्चिदानंद पांडेय जैसे नेताओं को भाजपा में शामिल करा कर अपनी पोजिशन मजबूत करने की कशिश की है। लेकिन वे अपनी इस मुहिम में कहां तक कामयाब होंगे, यह समय ही बतायेगा। वैसे उनकी सबसे बड़ी कठिनाई भाजपा के परम्परागत समर्थक ब्राहृमण वाटरों के एक बड़े वर्ग का पार्टी के अपने सजातीय प्रत्याशी कुशल तिवारी से जुड़ने की है। यही मुख्य बिंदू है जो अंत में निर्णायक बनेगा। ब्रह्मण समाज का बड़ा तबका जगदम्बिका पाल और कुशल तिवारी में से जिसके भी पक्ष में जायेगा, उसी का समीकरण बनता नजर आयेगा। फिलहाल चुनावी परिदृश्य को स्पष्ट जानने केलिए पढ़ते रहिए कपिलवस्तु पोस्ट।