बेहतर खेती के लिए पूर्वी यूपी को पंतनगर स्तर के कृषि विश्वविद्यालय की जरूरत
नजीर मलिक
गत दिनों उत्तराखंड के दौरे पर था। वहां की विकट परिस्थिति में किसानों को उत्तम खेती करते देख कर लगा कि अगर पूर्वी यूपी में ऐसा हो जाये तो किसानों की तकदीर बदल सकती है। कैसे खेती करते है वहां के किसान, इस पर एक रिपोर्ट।
इस बार सड़क मार्ग से यात्रा की वजह से उत्तराखंड की खेती किसानी को करीब से देखने का अवसर मिला। वहां वर्तमान में एक तरफ खेतों में धान की फसल की फसल पक रही है तो दूसरी तरफ किसी और फसल से खाली हुए खेत में धान की रोपाई भी चल रही है। वहां कि किसान प्रदीप जोशी कर कहना है कि हम साल में दो फसल धान और एक फसल गेहूं की लेते हैं। और कभी भी खेत को खाली नहीं छोड़ते।
उत्तराखंड के पहांड़ों पर अब आम के बाडे बडे बाग भी दिखने लगे हैं। हम जैसे मैदानी इलाकों के लोगों के लिए यह बेहद आश्चर्य की बात थी। पहाड़ों की ढलानों पर करीने से लगाये गये आम के पेड़ फलों से लदे मिले। वहां के आम हम मैदानी इलाकों के आम से सस्ते थे और मीठापन भी कम न था।
दरअसल यह चमत्कार दिखाया है पंतनगर यूनिवर्सिटी के शोघार्थियों ने। उन्होंने फलों और अनाज की कुछ ऐसी किस्मे तैयार की है जो पहाड़ के ठंडे जलवायु के अनुकूल हैं। उत्तराखंड के किसान इसका पूरा लाभ भी उठा रहे हैं। इसके बरअक्स यूपी खास कर पूर्वी यूपी में कृषि विज्ञान केन्द्र और कृषि संस्थान इस प्रकार के अनुसंधान में विफल रहे हैं, यही नहीं उन्होंने कुछ किया भी तो उसे किसानों के बीच ले जाने में नाकामयाब रहे।
ज्यादा नहीं तीस साल पहले तक उत्तराखंड का किसान कमजोर और आर्थिक दृष्टि से कमजोर माना जाता था, लेकिन वहां के कृष्िी विश्वविद्यालय ने जलवायु पर शोध कर उनके मुताबिक नये बीज तैयार किये। उसके किसानों ने अपनाया और उनकी दशा बदल गई। दूसरी तरफ पूर्वी यूपी के किसान निरंतर विपन्न होते जा रहे हैं। इसका खास कारण उन्नतशील खेती के लिए वैज्ञानिक स्तर पर बेहतर काम न हो पाना है। काश यूपी के पूर्वी व पश्चिमी क्षेत्र में ऐसे दो संस्थानों की स्थापना हो पाती।
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