क्या माता प्रसाद और प्रदीप दुबे की सांठगांठ से हुई सचिवालय में नियुक्तियां, जानें कौन हैं प्रदीप दुबे ?

April 16, 2017 2:54 PM0 commentsViews: 2083
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प्रभात रंजन दीन

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय और प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय और प्रमुख सचिव विधानसभा प्रदीप दुबे

“विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे कि नियुक्ति में भी आदर्श चुनाव आचार संहिता की धज्जियां उड़ चुकी हैं. जनवरी 2012 को मायावती ने प्रदीप दुबे की नियुक्ति पर मुहर लगाई थी. तब प्रदेश चुनाव आचार संहिता लागू थी. उस समय प्रदीप दुबे की नियुक्ति पर समाजवादी पार्टी ने विरोध जताया था, लेकिन कुछ महीनों बाद सत्ता में आते ही समाजवादी पार्टी के विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय और दुबे की खूब छनने लगी. विधानसभा सचिवालय में हुई अनाप-शनाप नियुक्तियों में पांडेय और दुबे ने खूब मिलीभगत की. अब वही प्रदीप दुबे भाजपा के शासनकाल में भी अपनी सेवा का कार्यकाल बढ़वाने (एक्सटेंशन) की जुगत में लगे हैं. दुबे का रिटायरमेंट नजदीक ही है.”

विधानसभा सचिवालय के प्रमुख सचिव प्रदीप कुमार दुबे की नियुक्ति के समय यह सवाल भी उठा था कि वे निर्धारित उम्र सीमा पार कर चुके थे. उनकी नियुक्ति लोक सेवा आयोग से न होकर सीधी भर्ती के जरिए की गई थी, जो सचिवालय सेवा नियमावली का उल्लंघन है. उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय सेवा (भर्ती और सेवा की शर्तें) की नियमावली के मुताबिक विधानसभा में सचिव के पद पर नियुक्ति आयोग से ही की जा सकती है, लेकिन प्रदीप कुमार दुबे की नियुक्ति में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की भर्ती वाली प्रक्रिया अपनाई गई थी. सीधी भर्ती के लिए 25 जनवरी 2012 को विज्ञापन प्रकाशित हुए थे. तब प्रदेश में आचार संहिता लागू थी. उसके अनुसार अभ्यर्थी की अधिकतम आयु सीमा 52 वर्ष होनी चाहिए थी, जबकि दुबे की आयु 52 वर्ष से अधिक थी, फिर भी बसपा सरकार में उन्हें प्रमुख सचिव विधानसभा के पद पर नियुक्ति दे दी गई.

प्रदीप कुमार दुबे 13 जनवरी 2009 को संसदीय कार्य विभाग में प्रमुख सचिव नियुक्त हुए थे. छह दिन बाद ही 19 जनवरी को एक नए आदेश के जरिए उन्हें विधानसभा के प्रमुख सचिव का दायित्व निर्वहन करने को कहा गया. बसपा सरकार ने दुबे को प्रमुख सचिव के पद पर स्थानांतरित दिखाते हुए आचार संहिता के दौरान ही विधानसभा के प्रमुख सचिव के पद पर नियमित कर दिया. तब दुबे की नियुक्ति का सपा ने पुरजोर विरोध किया था.

उस समय सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने नियमों का हवाला देते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखकर भर्ती प्रक्रिया रोकने की मांग की थी. लेकिन बसपा सरकार में नियमों को ताक पर रखकर की गई नियुक्ति के मामले में सत्ता में आने के बाद सपा सरकार ने चुप्पी साध ली. प्रदीप दुबे के वीआरएस लेने के बाद हुई पुनर्नियुक्ति पहले से कटघरे में थी, लेकिन समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद मामला पूरी तरह दफ्न कर दिया गया.

 

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