जानिये क्या है डुमरियागंज में मुस्लिम वोटों का सच, जीत़-हार तय करने में कैसे हैं महत्चपूर्ण?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम मत 29.82 प्रतिशत, डुमरियागंज में सर्वाधिक 37.91 फीसदी मुस्लिम मतदाता
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जाति धर्म के आधार पर चुनावों में बनने वाली सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति के तहत अब हर जातियों के लिए अपने विधानसभा/लोकसभा क्षेत्र में अपनी जाति धर्म का वोट प्रतिशत जानना बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। आम तौर पर चुनाव लड़ने वाला उम्मीदवार अपने मतदाताओं की जातिगत जनसंख्या के हिसाब से अपना चुनावी समीकरण तैयार करता है। सन 20`15 में सरकार की ओर से जो जनगणना रिपोर्ट आई है, उसके मुताबिक जिले में मुस्लिम आबादी 29.82 फीसदी है। जिसमें मुस्लिम आबादी डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक और बांसी में सबसे कम है। लोकसभा चुनाव में यहकिसी भी उम्मीदवार का समीकरण बनाने अथवा बिगाड़ने में महत्वपूर्ण रोल अदा कर सकता है।
बता दें कि 2011 से पूर्व प्रदेश के दलितों और पिछड़ों का सरकारी सर्वे हुआ था। वर्गवार हुए इस सर्वे में जिले में दलित 17 फीसदी और पिछड़े 26 फीसदी थे। मुसलमानों की आबादी स्पष्ट नहीं थी। कोई इसे 25 तो कोई 40 फीसदी बताता था। यह अफवाहें राजनीतिक लोग अपनी सुविधानुसार गढ़ते थे। एक कांग्रेसी नेता तो बाकायदा पर्चा बंटवा कर सदर विधानसभा क्षेत्र में ब्राहमणों की आबादी 70 हजार बताते थे। जबकि ब्राहमणों की अलग जनगणना कभी हुई ही नहीं थी।
2011 में पहली बार सरकारी स्तर पर धर्मवार सर्वे कराया गया। 2015 में उसकी रिर्पोट सार्वजनिक हुई, जिसके मुताबिक सिद्धार्थनगर में मुस्लिम आबादी तकरीबन 28 फीसदी से ज्यादा बताई गयी, लेकिन इस वर्ष भारत सरकार के नीति आयोग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में कुल 29.82 मुस्लिम हैं। आकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र में 37.91 फीसदी मुस्लिम हैं। इसके अलावा इटवा क्षेत्र में 36.92 मुसलमान हैं। अन्य में शोहरतगढ़ में 26.86 फीसदी, नौगढ़ में 26.55 और बांसी में 20.86 फीसदी मुस्लिम निवास करते हैं।
इस आंकड़े के आधार पर जिले में 70.18 प्रतिशत हिंदू निवास करते हैं, जिनमें 17 फीसदी दलित और 26 फीसदी पिछड़ा वर्ग है। इनमें 3 फीसदी आबादी, इसाई, सिख और अन्य की है। शेष 24 फीसदी आबादी, सवर्णों की है। इसमें पहले नम्बर पर वैश्य, दूसरे पर ब्राहमण, तीसरे पर कायस्थ और चौथे पर राजपूत हैं। इसका अनुमान है, क्योंकि इन जातियों की अलग अलग के बजाये सामान्य वर्ग की एक ही में वर्ग में गणना की गई है।
आंकड़े बताते हैं कि सोशल इंजीनीरिंग की राजनीति के इस दौर में अगर विपक्ष का गठबंधन सफल रहा तो आगामी लोकसभा चुनाव बहुत दिलचस्प मंजर तैयार करेगा। क्योंकि डुमरियागंज लोकसभा क्षेत्र में सवर्णां की पार्टी कही जाने वाली भाजपा के मुकाबले सपा, कांग्रेस का गठबंधन कागजों पर मजबूत दिखेगा। देखते हैं कि भाजपा के तरकश में इसकी काट के लिए कौन सा तीर है?