महागठबंधन से कांग्रेस हुई खारिज? डुमरियागंज सीट को लेकर भाजपा को राहत
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। बसपा सुप्रीमो मायावती और अखिलेश के बीच शुक्रवार को दिल्ली में हुई बैठक के बाद यूपी में कांग्रेस को महागठबंधन से बहर रखने का पुख्ता संकेत मिल गया है। हालांकि माया और अखिलेश ने बैठक के बरद इस आशय की अधिकृत घोषणा नहीं की है, मगर कांग्रेस को केवल अमेठी और रायबरेली की सीटें दिये जाने की बात करके अपना इरादा साफ साफ कर दिया है। कांग्रेस के महागठबंधन से बाहर रहने का नतीजा यूपी में चाहे जो हो, मगर डुमरियागंज सीट पर त्रिकोण लड़ाई की संभावना देख भाजपा की स्थानीय इकाई ने राहत की सांस ली है।
क्या हुआ माया अखिलेश की मीटिंग में
पक्कम सूत्रों के मुताबिक कल दिल्ली में त्यागराज स्थिति मायावती के आवास पर हुई बैठक में दोनों नेताओं ने तय किया किया कि कांग्रेस को सिर्फ अमेठी व रायबरेली की सीट ही दी जायेगी। चाहे कांग्रेस समझौता करे या न करे। जाहिर है कि कांग्रेस दो सीटें लेकर कभी समझौता नहीं करेगी। इसके अलावा महागठबंध से अजीत सिंह के रालोद को तीन सीट तथा गठबंधन में संभावित रूप से शामिल होने वाले दलों को 4 सीट देने पर सहमति बनी है। छोटे दलो से गठबंधन न होने की दशा में वे सीटें आपस में बराबर बराबर बांट ली जायेंगी। इस प्रकार के फैसने के बाद यूपी में कांग्रेस से गठबंधन की सभी संभावनाएं अपने आप खारिज हो जाती हैं। अप तो इसका औपचारिक एलान ही बाकी बचा है।
कांग्रेस से गठबंधन न होने पर भाजपा खुशी क्यों?
महागठबंधन से कांग्रेस के बाहर हाने की दशा में यूपी के लोसभा सीटो पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह बड़े शोध का विषय है, लेकिन यहां डुमरियागंज सीट पर इससे भाजपा को निश्चित ही राहत मिलेगी। इस सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की तादाद 29.88 प्रतिशत है। आजादी के बाद से अब तक इतिहास रहा है कि जिस चुनाव में मुस्लिम वोट बिखरा उस बार भाजपा की जीत हुई तथा जब लड़ाई सीधी हुई तो भाजपा की हार हुई। 1991 से 2014 तक के सभी आठ चुनाव इसके प्रमाण है। 2014 के चुनाव में मुस्लिम मत सपा, कांग्रेस और पीस पार्टी में विभाजित हुए तो भाजपा को बड़ी जीत मिली।
क्या हो सकता है आगामी चुनाव में?
आगामी चुनाव में भाजपा के लिए राहत की बात मुस्लिम मतों का बिखराव ही है। इस बारे भाजपा के मुकाबले सपा गठबंधन तथा कांग्रेस दोनों दलों से मुस्लिम उम्मीदवार के उतरने की संभावनाएं बनी हुई हैं। यदि ऐसा हुआ तो मुस्लिम मतों में विभाजन होगा और यह बात भाजपा के पक्ष में जायेगी। गत चुनाव में बसपा उम्मीदवार मुहम्मीद मुकीम भाजपा के जगदम्बिका पाल से तकरीबन एक लाख मतों से पराजित हुए थे और पीस पार्टी के अध्यक्ष व उम्मीदवार डा. अयूब को लगभग इतने ही मत मिले थे। पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम इस बार कांग्रेस से टिकट के मजबूत दावेदार है। जबकि सपा बसपा गठबंधन की ओर से बसपा के आफताब आलम का टिकट पक्का माना जा रहा है।
वैसे स्थानीय सियासत की गहरी समझ रखने वालों के मुताबिक बसपा के आफताब आलम को टिकट नहीं मिलने पर सपा के माता प्रसाद गठबंधन के उम्मीदवार बन सकते हैं। उस हालत में भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा। इस चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले कांग्रेस का मुस्लिम उम्मीदवार होना ही सपा बसपा गठबंधन के लिए मुसीबत की वजह बनेगा, ऐसा अधिकांश जानकारों का मनना है।