वोटिंग के रुझान में बूथों पर सपा का दबदबा, सपाई लहर थी या भाजपा के पक्ष में अंडर करंट
एक सीट पर बसपा और कांगेस के बीच मुख्य संघर्ष, तो तीन
सीटों पर दिखा सपा का दबदबा, बांसी में मुकाबला रोमांचक
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। कल के मतदान पत्रकारों ने पांच विधानसभाओं के भ्रमण के दौरान जो कुछ देखा वह बेहद चौकाने वाला था। पांच में चार विधान सभाओं पर मुख्य संघर्ष सपा, भाजपा और बसपा में दिखा, मगर एक सीट पर मुख्य संघर्ष कांग्रेस व बसपा के बीच देखने को मिला। एक विधानसभा क्षेत्र में संघर्षइतना कांटे का देखने को मिला कि वहां की स्थिति का अनुमान लगााना खतरे से खाली नहीं है।
कपिलवस्तु में सपा की सेंधमारी
सदर की आरक्षित सीट पर सुबह 7 बजे से शुरू हुई वोटिंग के बाद 9 बजे तक आठ प्रतिश वोट ही पड़ सके थे। लगभग साढ़े नौ बजे देवरा चौधरी व बरगदही बूथ पर कुर्मी वोटरों में विभाजन साफ दिखा। जबकि यह वोटर जिले में आम तौर पर भाजपा समर्थक माना जाता है। यह सपा की एक बड़ी सफलता है। दूसरी बात यह कि इस बार मुस्लिम वोट पूरी तरह एक जुट रहा और अंतिम बात यह कि भाजपा प्रत्याशी को अपने गांव के आस पास की 15 हजार की आबादी में मुख्यालय से सोहांस जाने वाली रोड की जीर्ण शीर्ण दशा के कारण वोट बहुत कम मिले जबकि गत चुनाव में उन्हें यहां से बम्पर वोट मिले थे। इस प्रकार दबदबा तो सपा का ही देखा गया । मगर गत चुनाव में भाजपा की जीत का अंतर लगभग 40 हजार वोटों का था।इस अंतर के देखते हुए भाजपाई अंततः अपनी जीत मान रहे हें। भले ही यह अंतर 40 से घट कर चार हजार ही रह जाए। यहां बसपा भी अनेक बूथों पर प्रभावशाली दिखी, मगर सपा का महथावल जैसे भाजपा के गढ रहे बूथ पर अगर बराबर की टक्कर देती दिखी तो इससे स्थिति समझी जा सकती है।
शोहतगढ़ में हाथी बनाम पंजा की लड़ाई रोचक
इस सीट पर न भाजपा न सपा बल्कि हाथी और पंजे का शोर दिखा। भाजपा की ओर से लड़ रहे अपना दल एस के उम्मीदवार विनय वर्मा बाहरी कैंडीडेट होने व भाजपा नेताओं के भितरघात का शिकार होते देखे गये तो सपा समर्थत सुभासपा के प्रेमचंद कश्यप भी इसी प्रकार की पीड़ा के शिकार थे। लिहाजा लड़ाई कांग्रेस व बसपा में सिमटती दिखी। कुर्मी और मुस्लिम बाहुल्य बूथों पर अगर कांग्रेस उम्मीदवार पप्पू चौधरी का दबदबा देखा गया तो दलित और ब्राह्मण बाहुल्य बूथों पर बसपा के राधारमण त्रिपाठी का हाथी चिंघाड़ता दिखाई दिया।अन्य वर्ग के मतदाताओं में 6 प्रमुख प्रत्याशी अपनी शक्ति के अनुसार उपस्थिति दर्ज कराते दिखे। यहां सपा व बसपा गठबंधन में तीसरे नम्बर पर भाजपा समर्थित अपना दल के विनय वर्मा आ सकते हैं। क्योंकि जमुहवा जैसी बड़ी मुस्लिम पोलिग पर जहां कांग्रेस का बोलबाला दिखा वहीं सीमाई क्षेत्र के कुर्मी बाहुल्य इलाके में पप्पू चौधरी का प्रभाव देखा गया। वैसे कुछ राजनीतिक प्रेक्षक यहां भाजपा के पक्ष में अंडर करंट मान रहे हैं। राजनीति में यह भी असंभव नहीं है।
डुमरियागंज में सपा की सैयदा खातून को राहत
जिले की सबसे चर्चित डुमरियागंज में सपा प्रत्याशी सैयदा खातून राहत की सांस ले सकती है। शुरूआत में माना जा रहा है कि AIMIM उम्मीदवार इरफान मलिक मुस्लिम मतों में विभाजन करने में सफल होंगे और सपा की हार की इबारत लिखेंगे। मगर मतदान के दिन हालात बदले दिखाई पड़े। पेडा़री, खुरपहवा जैसे गांव जो इरफान मलिक के गढ़ समढे जाने वाले गांवों में शुमार थे, वहां भी सैयदा का जोर दिखा। इरफान मलिक के अपने गांव में भी सपा को वोट मिलते दिखे। 37 प्रतिशत 1.51 लाख मुस्लिम वोटर वाले क्षेत्र में जहां मुस्लिम एक जुट दिखे वहीं ब्राहमण कायस्थ व अति पिछड़े वर्ग के बोट जबरदस्त बंटवारे का शिकार हुए।
ब्रहमण समाज के वोट जहां बसपा के अशोक तिवारी के पक्ष में लागबंद होते दिख रहे थे वहीं कायस्थ समाज के वोट पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री राजू श्रीवास्तव के पक्ष में जाते दिख रहे थे। अन्य वोटों में सभी प्रमुख उम्मीदवार कुछ न कुछ खींचते दिख रहे थे। मगर जो बात सपा के पक्ष में रही कि डेढ़ लाख मुस्लिम वोटरों के बड़े हिस्से में बेहद एकजुटता दिखी। सपा यहां भाजपा या बसपा से लड़ेगी यह अस्पष्ट नहीं हो सका है।
इटवा में साइकिल जम के दौड़ी
विधानसभा क्षेत्र इटवा में मतदान के दिन साइकिल की रफ्तार तेज दिखी। यहां कांग्रेस के अरशद खुर्शीद मुस्लिम वोटबैंक और भजपा के बागी व बसपा उम्मीदवार भाजपा के बोटबैंक में सेंधमारी के बल पर प्रारम्भ में सपा उम्मीदवार माता प्रसाद पांडेय और भजपा के सतीश द्विवेदी के समक्ष जबरदस्त चुनौती पेश कर रहे थे। शुरू में संघर्ष चतुष्कोणीय दिख रहा था। परन्तु मतदान के दिन संघर्ष सपा व भाजपा में सिमटता दिखा। भदोखर, भावपुर, पहाड़ापुर जैसे बूथों पर जहां शुरू में कांग्रेस के अरशद खुर्शीद के वोट सपा के बराबर की तादाद में दिखते थे वहीं मतदान के दिन सभी सपा के पक्ष में इकतरफा वोटिंग करते दिखे।इसी प्रकार चुनाव से दो दिन पूर्व शिक्षामंत्री सतीश द्धिवेदी ने अपने सारे संसाधन झोंक कर भाजपा के बिखरे वोटरों को अपने पक्ष में लाने में कुछ हद तक कामयाब होते दिखे। इसका असर मतदान के दिन देखने को मिला जहां भाजपा से नाराज अनेक वर्कर भी पार्टी के पक्ष में वोट डलवाते देखे गये। मगर बसपा के हरिशंकर सिंह को अब भी यकीन है कि वह जीत रहे हैं। हांलांकि जीत का अधिक अनुमान लोग सपा के पक्ष में लगाते देखे जा सकते हैं।
बांसी में उत्साह और अनुभव की लड़ाई
विधानसभा सीट बांसी में पहली बार चुनाव लड़ रहे एक युवक नवीन उर्फ मोनू दुबे और बांसी के पूर्व राजघराने के वारिस व प्रदेश के स्वास्थ्यमंत्री जयप्रताप सिंह के बच मतदान के दिन जबरदस्त टक्कर देखी गई। यहां सुगही नगवा, नरही, चरथरी, बसंतपुर जैसे ब्राहम्ण बाहुल्य गांवों में सपा के मोनू दुबे के पक्ष में जम कर वोट पड़ रहे थे। जबकि पूर्व के सभी सातो चुनावों में इन गांवों के विप्र समाज का शतप्रतिशत वोट जय प्रताप सिंह के पक्ष में जाता रहा है। इसके अलावा भूमिहार भी यहां बड़ी तादाद में हैं। जिसमें एक भूमिहार प्रत्याशी और भकियू के जिलाध्यक्ष प्रदीप पांडे के पक्ष में लोग वोट करते दिखे। खेसरहा क्षेत्र में प्रदीप के पक्ष में अच्छे खासे वोट पड़ रहे थे।
अब यहां यह कहना आवश्यक है कि पिछले चार चुनाव में (2017 को छोड कर) सपा के लालजी यादव भाजपा के जयप्रताप सिंह से केवल मुस्लिम यादव के समीकरण के बल पर ही केवल ढाई तीन हजार वोटों से हारते रहे हैं। लेकिन इस बार इस सीट पर 13 फीसदी वाले ब्राह्मण समाज का प्रत्याशी देकर सपा ने भाजपा की बुनियाद पर कड़ी चोट कर दी। इसलिए प्रेक्षक कहते हैं कि यदि 60 प्रतिशत अपने समाज का वोट मोनू दुबे लाने में सफल रहे तो वह बांसी के राजमहल की बुलंदी से ऊपर जा सकते हैं। मगर कुछ प्रेक्षक इस मत के भी है के उत्साह पर अनुभव भारी पडते देखा गया है। इसलिए राजा की शक्ति को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।