रहस्य बन कर रह गया मनीष की मौत का रहस्य, पांच साल बाद बंद हुई फाइल
जांच में चोट से लेकर कई पहलुओं को किया नजरअंदाज और पुलिस रिपोर्ट की नकल जैसी रिपोर्ट दाखिल कर केस किया बंद
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। शोहरतगढ़ पीजी कॉलेज में पढऩे वाली बीएससी के छात्र मनीष शुक्ल की मौत को शायद लोग भूल चुके होंगे। पुलिस भी डूबने से मौत कारण बताकर 5 साल पहले घटी इस दर्दनाक घटना की फाइल बंद कर चुकी है। न्याय प्रणाली से आहत मनीष के पिता हर पल मनीष को याद करते हैं। बेटा उन्हें हमेशा याद आता है। ऐसा उनका कहना है। वे कहते हैं कि बेटे की हत्या हुई थी। बहुत जोर लगाया, हर दरवाजे को खटखटाया, लेकिन सभी ने उम्मीद तोड़ दी। पुलिस ने यह कहकर फाइल को बंद कर दिया कि आपके बेटे की मौत डूबने से ही हुई थी। इसलिए थक हारकर बैठ गया और न्याय की उम्मीद हमेशा के लिए छोड़ दिया।
बता दें कि चिल्हिया थाना क्षेत्र के अलीदापुर गांव के टोला गौरा निवासी मनीष शुक्ल ( 19) पुत्र राजेंद्र शुक्ल शोहरतगढ़ शिवपति पीजी कॉलेज में बीएससी का छात्र था। 21 जनवरी 2018 को वह छात्रावास से अचानक लापता हो गया था। दूसरे दिन बानगंगा बैराज पर उसकी जैकेट मिली थी। इसके बाद उसके डूबने की आशंका व्यक्त की गई।
आठ दिनों तक पुलिस और गोताखोर तलाश में जुटे थे और 29 जनवरी को उसकी लाश मिली थी। उसके सिर के अगले हिस्से पर चोट के निशान थे, चोट को देखते हुए परिवार के लोगों ने सिर पर वार कर हत्या की आशंका व्यक्त की थी। मामले की जांच करते हुए कार्रवाई की मांग की थी। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत की वजह डूबने से पुष्टि हुई थी। जबकि गिरने से सिर में चोट लगने का हवाला पुलिस ने दिया था। कुछ दिन जांच चली, फिर फाइल को यह कहते हुए बंद कर दी गयी कि मनीष की मौत डूबने से हुई थी। इस संबंध में प्रभारी निरीक्षक शोहरतगढ़ पंकज कुमार पांडेय ने बताया कि मामला पुराना है और फाइल अब बंद हो चुकी है। क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डूबने से मौत की बात सामने आई थी। इसलिए केस आगे नहीं बढ़ा।
पांच वर्ष पूर्व इस घटना पर पुलिस की भूमिका का भारी विरोध हुआ था। विरोध कई दिनों तक चला और पुलिस पर मामले दबाने का आरोप लगता रहा। इसमें एक विधायक पर आरोपियों को बचााने का आरोप भी लगाा। मामले को गंभीरता से लेते हुए एसपी ने तत्काली थानाध्यक्ष को शमशेर बहादुर सिंह को लाइन हाजिर कर दिया था। इसके बाद विवेचना बदल जी गई। दरअसल मृते मनीष के पिता राजेन्द्र शुक्ल ने शोहरतगढ़ पलिस पर केस दबाने का आरोप लगाते हुए इसकी जांच की मांग किसी अन्य एजेंसी से कराये जाने की मांग की थी।जिसे देखते हुए तत्कालीन एसपी ने इसके बाद मामले की जांच बस्ती क्राइम ब्रांच को सौंपा दिया था। बस्ती क्राइम ब्रांच की टीम ने मौके पर आकर जांच किया। कई बार घटना स्थल पर गई, लेकिन आखिर में लोकल पुलिस ने विवेचना में जो रिपोर्ट लगाया था, ठीक वहीं रिपोर्ट क्राइम ब्रांच ने भी लगा दिया गया। इसके बाद पुलिस ने आत्महत्या बताते हुए फाइल को बंद कर दिया।
अभी तक नहीं मिले इन सवालों के जवाब
जांच टीम ने केस को बंद जरूर क रदिया मगर अभी भी इन सवालों के जवाब अनुत्तरित ही हैं। सवाल है कि अगर मनीष ने आत्महत्या की तो उसके कारण क्या थे? वह एक खाते पीते घर का छात्र था। उसें किसी प्रकार की आर्थिक समस्या न थी। वह पढ़ने में भी बेहतर था। कभी फेल न होता था। उसका कोई ऐसा रोमांस भी न था कि प्रेमिका ने धोका दिया हो अथवा कोई सामाजिक अड़चन हो। यही नहीं चिकित्सा मनोविज्ञान के डाक्टरों के अनुसार पानी में कूद कर आत्महत्या करने वाला कभी अपनी जैकेट उतार कर किनारे नहीं रखेगा। यह प्राकृतिक नहीं है। सबसे ब़ड़ी बात तो यह है कि उसके सिर में लगी चोट को जांच टीम ने क्यों नजरअंदाज किया? जब कि यह चोट पुलिस रिकार्ड में दर्ज है और यह जांच में महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकती थी। यही नहीं जांच टीम ने कालेज के छात्र संघ की राजनीति और मनीष से चलने वाली प्रतिद्धंदिता को भी हलके में लिया। जबकि वह जांच की महत्वपूर्ण कड़ी साबित हो सकता था।
न्याय व्यवस्था से उम्मीद टूटी
इस पर मृतक मनीष शुक्ल के पिता राजेंद्र शुक्ल ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि बेटे की हत्या को लेकर वे लगातार लड़े, जिले की पुलिस के अलावा बस्ती की पुलिस ने भी जांच किया। पर दोनों ने एक ही रिपोर्ट दिया। अंत में हत्या के मामले को आत्महत्या और डूब कर मरने की पुष्टि कर दी।जिसे लेकर बहुत निराशा है। उन्होंने कहाकि वह लड़ते लड़ते थक चुके हैं। अब तो ऊपर वाले के दरबार में ही इस कत्ल का इंसाफ होगा।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर टिकी होती है केस की नींव
इस बारें में जनपद न्यायालय सिद्धार्थनगर के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि किसी भी मामले में पोस्टमार्टम रिपोर्ट केस दिशा देता है। उसी पर मुकदमें की नींव टिकी होती है। जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ही आत्महत्या पुष्ट हो जाए और दोबारा पोस्टमार्टम न हुआ है तो केस लडऩे का कोई मतलब नहीं निकलता है। यह केवल समय की बर्बादी है। इसलिए जहां संदेह हो उसमें लाश को जलाने के बजाए दफन करवाना चाहिए। अगर पहले रिपोर्ट पर संदेह हो तो दूसरे बार पोस्टमार्टम करवाना चाहिए। शायद उसमें कुछ मिल जाए।