जानिए राबिनहुड सरीखे सुल्ताना डाकू का असली जीवन, और देखिए उसकी एकमात्र दुलर्भ तस्वीर
“उत्तर प्रदेश प्रदेश के बिजनौर का सुलताना डाकू के किस्से समस्त हिंदी भाषी क्षेत्र में मशहूर हैं। आल्हां की तरह उस पर महाकाव्य लिखे गये। नौंटंकिया के माध्यम से उसकी गाधा घर घर पहुंची। मगर उसकी जिंदगी की असलियत पर बहुत कम लिखा गया। उसकी असली तस्वीर कम ही लोगों को देखने को मिला है। सुल्ताना डाकू पर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह ने शोध कर लिखा और अभिलखागार से उसका दुर्लभ च़ित्र भी ढूंढ निकाला। प्रस्तुत है उनके लेखन के आधार पर एक रपट।”
अंग्रेज के जुल्म से 17 साल की उमर में बाना डाकू
उत्तर प्रदेश के भाट्टू कबीले में सन 1884 में पैदा हुए एक बालक का नाम सुल्ताना था। यही सुलताना अंग्रेजों के जुल्म से तंग आकर आगे चल कर 17 साल की उमर में सुलताना डाकू बना के नाम से मशहूर हुआ। अपने 23 साल के डकैत जीवन में उसने तराई के लंबे भूभाग से लेकर पंजाब तक के इलाके तक डकैतियों और लूटपाट से कानून व्यवस्था को गंभीर चुनौती खड़ी की, लेकिन उसने केवल अत्याचारी धन्ना सेठों और अंग्रेजो को लूटा। गरीब की नजर में वह धर्मात्मा था। उसकी छवि राबिनहुड की थी। उस मामूली नाक नक्शवाले छोटे से कद के इस आदमी की अनूठी संगठन क्षमता थी और डाकू जीवन अपनाने के एक साल के भीतर ही उसने 100 लोगों का संगठित गिरोह खड़ा कर लिया था जो उस जमाने में बंदूकों और हथियारों से लैस थे,जब एक बंदूक देखने के लिए भीड़ उमड़ती थी।
सुल्ताना को पकड़ने के लिए राजभवन तक से उठी आवाज
सुल्ताना डाकू के दुर्दांत कारनामों और सरकारी खजाने की लगातार लूट से अंग्रेजी सरकार बेहद परेशान थी। उस समय नैनीताल राजनिवास तथा देहरादून के लिए अकेला सुगम रास्ता नजीबाबाद से होकर गुजरता था.यही इलाका सुल्ताना की सक्रियता का केंद्र था. सुल्ताना की गतिविधियों से परेशान सरकार और उसके खिलाफ आपरेशन की कमान खुद नैनीताल राजभवन को थामनी पड़ी। दिलचस्प बात यह है कि तब संयुक्त प्रांत में हजारों गांव और अंग्रेज जिस सुल्ताना डाकू के नाम से थर्राते थे, उसी सुल्ताना की गिरफ्तारी और फांसी देने की घटना के बाद भी लोगों को लंबे समय तक इस बात का यकीन नहीं हुआ कि सुल्ताना अब नहीं है। और उसकी कोई तस्वीर भी सार्वजनिक नहीं हुई थी।
तंग आकर सरकार ने मिस्टर यंग को बुलाया
कुंमाऊ के कमिश्नर तथा टिहरी रियासत के राजनीतिक प्रतिनिधि पर्सी बिंडहैम के विशेष अनुरोध पर अंग्रेजी सरकार ने सुल्ताना डाकू गिरोह के सफाए के लिए जानेमाने अंग्रेज पुलिस अधिकारी फ्रैंडी यंग (आई.पी.सी. आई.ई) की सेवाऐं हासिल की थीं.यंग की मदद के लिए भारी संख्या में खुफिया अमले की तैनाती के साथ तीन सौ चुनिंदा सिपाहियों को शामिल कर विशेष डकैती दल बनाया गया था। भारत में इस तरह किसी डाकू गिरोह से निपटने के लिए यह पहली घटना थी। इस बल में आधुनिक हथियारों से लैस पचास चुनिंदा घुड़सवारों का दस्ता अलग से था। रामनगर से लेकर नजीबाबाद तक यंग ने अपने जासूसों का लंबा तंत्र बनाया तथा जंगल ठेकेदारों से लेकर बहुत से लोगों की सेवाऐं सुल्ताना को पकडऩे के लिए ली थीं। यहां तक कि सुल्ताना डाकू के गिरोह के भी कुछ पकड़े गए लोगों को जीवन रक्षा की लालच और कई प्रलोभन के साथ सुल्ताना डाकू को पकडऩे के अभियान में लगाया गया था।
और इस प्रकार गिरफ्तार हुआ सुल्ताना डाकू
1925 में एक घटना के बाद तुला सिंह नामक व्यक्ति ने सुल्ताना के बारे में जानकारी देकर उसे गिरफतार कराया। । सिजवाली टावर निवासी विजय सिजवाली के मुताबिक उनके दादा सरदार तुला सिंह सिजवाली ने अपने एक दोस्त का बदला लेने के लिए सुल्ताना डाकू के पीछे पड़ गए थे। उनके कारण ही अंग्रेजों की नाक में दम करने वाला सुल्ताना हत्थे चढ़ा। विजय सिजवाली कहते हैं कि 1925 में सुल्ताना डाकू ने हल्द्वानी के जमींदार रहे खड़क सिंह कुमड़िया के लामाचौड़ घर में धावा बोला। यहां लूटपाट के दौरान खड़क सिंह और परिवार एक और सदस्य की मौत हो गई। खड़क सिंह उनके दादा तुला सिंह सिजवाली के घनिष्ठ मित्रों में एक थे, इस घटना के बाद वह अपने दोस्त का बदला लेने के लिए सुल्ताना डाकू के पीछे लग गए। उस दौरान तेज तर्रार अफसर एसपी बिजनौर फ्रैडी यंग भी सुल्ताना डाकू की सरगर्मी से तलाश कर रहे थे। सुल्ताना गड़प्पू में रुका है, तुला सिंह ने इसकी जानकारी संग को दे दी।
विजय सिजवाली का दावा है कि दादा तुला सिंह के सहयोग से सुल्ताना डाकू को 1925 में गड़प्पू के पास पकड़ा गया। उस वक्त एक दुर्लभ फोटोग्राफ भी उनके पास है, जिसमें पुलिस कर्मियों के साथ सुल्ताना डाकू दिखाई दे रहा है। वह कहते हैं कि घटना के बाद अंग्रेजों ने खुश होकर उन्हें इनाम स्वरूप बब्ले स्कॉट बंदूक भी भेंट की थी, जो आज भी हमारे लिए एक धरोहर के तौर पर हैं। बाद में यंग अवध प्रांत के आईजी भी बने।
आज भी मौजूद है सुल्ताना डाकू का किला
सुल्ताना डाकू ने अंग्रेजों से एक किला भी छीन रखा था। वहां वह रहता था। लगभग चार सौ साल पूर्व यह किला नजीबाबाद के उस समय के नवाब नाजीबुद्दौला ने बनवाया था। शहर के उत्तरी छोर पर यह किला स्थित है। बाद में इस पर सुलताना डाकू जो इसी जगह का था, कब्जा कर लिया। आज लोग इसे सुलताना डाकू का किला कहते है।
सुल्ताना एक बहादुर डाकू था जिसे पकड़ना नामुमकिन था। उस समय की पुलिस ने उसे पकड़ने की लगातार प्रयास किए। सुल्ताना डाकू का अपना एक इतिहास है, सुलताना डाकू पर एक फिल्म भी बनाई गई जिसमें दारा सिहं ने सुलताना का किरदार निभाया था।सुल्ताना डाकू ने यह किला अपने छुपने की जगह के तोर पे इस्तेमाल किया।
सुल्ताना अपने जमाने का इतना लोकप्रिय डाकू बन गया कि आम लोगों ने उसे हीरो तथा कथा-कहानियों का नायक बना दिया। उस पर लोकगीत लिखे गए और जब उसकी मौत हुई तो भी लोगों ने उसे मरने नहीं दिया। संयोग से सुल्ताना डाकू की सक्रियता का काल भारत में आजादी के आंदोलन की अंगड़ाई का काल था और भारी उथल पुथल हो रही थी। अंग्रेजों को वास्तव में सुल्ताना की शातिर गतिविधियों से भी ज्यादा दिक्कत उसकी बेशुमार लोकप्रियता से हो रही थी। जिम कार्बेट तक ने खुद उसकी दिल खोल कर तारीफ की और उसे भारत का राबिनहुड तक घोषित कर दिया।
जिम कार्बेट ने सुल्ताना की फांसी के बाद उसकी गरीबों को मदद पहुंचाने की प्रवृत्ति की जमकर तारीफ की। अंग्रेजी सरकार ने बहुत ठोस और संगठित अभियान चला कर सुल्ताना डाकू के गिरोह पर काबू पाया। डाकू समस्या को दबाने के लिए बहुत से लोगों को लोमहर्षक सजाऐं दी गयी और सुल्ताना डाकू को मदद पहुंचाने के आरोपी40 परिवारों को तो उस दौर के कालापानी यानि अंडमान की सजा दी गयी। यह सजा उस दौरान पहली बार किसी डाकू गिरोह से जुड़े व्यक्ति को मिली।