कुछ तो कीजिए डीएम साहब! आखिर जनता खजुरिया रोड से कैसे करें आवागमन
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। लगभग एक माह पहले नगर की सबस व्यस्ततम सड़क खजुरिया रोड पर हुए अतिक्रमण को जिलाधिकारी के आदेश पर ढहा दिया गया था। जिसमें बड़ी बड़ी और आलीशन कोठियो सहित, थाना भवन, जिला पंचायत भवन वह तहसील परिसर की बाउंड़ी आदि को भी तोडा गया था। अतिक्रमण विरोधी अभियान में पूरी पारदर्शिता बरती गई थी। किसी के साथ कोई रियायत नही होने दी गई थी। कुछ कर्मियों ने किसी खास का मकान बचान दुकान बचाने की कोशिश भी की, मगर जिलाधिकारी डा. राजा गणपति आर की ईमानदार कोशिशों के आगे किसी का चल न पाई।
बहारहाल इस अतिक्रमण के टूटने से हर कोई खुश था। शहरवालों को एक बेहतर सड़क मिलने वाली थी। शहर की सबसे भीड़ भाड़ वाली सडक पर एक नई मार्केट के बनने की पूरी संभानाएं थीं। कुल मिला कर खजुरिया रोड शहर का हृदय स्थल बनने की ओर अग्रसर था और आज भी है। लेकिन दिक्कत यह है कि अतिक्रमण को तोड़ने से इक्ट्ठा हुआ मलबा और गंदगी आज भी सड़क पर ही है। निकाय या प्रशासन को यह नहीं समझ में आ रहा कि आखिर इस व्यस्त रोड पर लोग आते जाते किस तरह से हैं? उसने रोड के गड्डों में ईट के रोड़े डाल दिये है जिससे सड़क पर बाइक ससे गुजरना भी दुश्कर हो गया है। ईटों के उपर बहते गंदे पानी से चातरे का एहसास नहीं होता, और बाइक सार अक्सर गंदगी में गिर जाता है। लिहाजा अब तो बाइक से भी चलने में लोग घबराते हैं। जबकि इसी रोड से चलकर सदर तहसील से विकास भ्वन व कलक्ट्रेट पहंचाा जा सकता है।
मलमूत्र भरे पानी में चलने को बाध्य हैं लोग
दरअसल 8 सौ मीटर लम्बी सड़क के दोनों तरफ जब अतिक्रमण तोड़े गये तो अनेक मकानों के सेफटी टैंक या टायलेट की पाइप भी टूट गई। लिहाजा अब अनेक घरों की गंदगी मल मूत्र सीधे नालियों में आ रहा है। चूंकि नालियां अतिक्रमण के मलबे से पटी हुई हैं इसलिए उक्त सारी गंदगी सड़कों पर बहती है। चूंकि सड़क में कदम कदम पर विशाल गड्डे हैं। इसलिए पैदल यात्रियों का उक्त गंदगी से गुजरना मजबूरी हो गई है। यदि कोई व्यक्ति संभल कर चलता भी है तो आते जाते वाहनों क छींटे उनके शरीर को बदबूदार बना देंते हैं। इस सड़क के सामने कई अफसरों के आवास भी हैं, मगर वे कार से चलने वाले साहब लोग हैं। इसलिए उन्हें भी सड़क के बनने को लेकर कोई चिंता शायद नहीं है।
स्कूली बच्चों की हालत और भी बुरी
खजुरिया रोड पर बच्चों की हालत और भी बुरी है। इस रोड से प्रतिदिन सैकडों बच्चे रिक्शा अथवा स्कूल बस से स्कूल जाते है, मगर सड़क की दुर्दश के चलते स्कूल बसें अब बच्चों को लेने अथवा उन्हें छोड़ने उनके घरों तक नहीं आती है। स्कूल की बसें अब बच्चों को तहसील तिराहा पर उतार देती हैं। वह से बच्चे आटो रिक्शा से अपने घर आते हैं। रिक्शा भी मनमाने भाड़े पर भी मुश्किल से मिल पाता है। गनीमत यह है कि स्कूल बस का कंडक्टर उन्हें रिक्शा दिलाता है। इसमें कई बार तो बच्चों को घंटों रिक्शे का इंतजार करना पड़ता है तथा अभिभावक का अतिरक्त पैसा भी खर्च होता है।
लोगों का व्यवसाय भी हुआ ठप
इस सड़क पर आवामन लगभग ठप हो जाने से लोगों का व्यवसाय भी ठप हो गया है। किराने की दुकान चलाने वाले सर्वेश कहते हैं कि सड़क पर आवागमन ठप होने से अब दिन में एक हजार की बिक्री कर पाना मुश्किल है। कुछ ऐसी ही बात इलेक्ट्रिक की दुकान करने वाले पप्पू भी बताते हैं। उस रोड पर सेनेटरी बेयर, मेडिकल, ग्रोसरी आदि की सैकड़ों दुकाने हैं मगर सबके कारोबार ठप हैं और नगर पालिका को इसकी कोई चिंता नहीं है।
अब तो जिलाधिकारी ही आशा के केन्द्र
इस सड़क के निर्माण को लेकर अब जिलाधिकारी ही आशा के एकमात्र केंद्र हैं। मुहल्लावासी कहते हैं कि जब तक जिलाधिकारी इसमें व्यक्गित दिलचस्पी नहीं लेगे, तब तक सड़क का निर्माण खाई में रहेगा। लेकिन जिलाधिकारी डा. गणपतिराजा आर की हालत उस अभिमन्यु की है जिसके सामने कदम कदम कदम पर चक्रव्यूह है। लेकिन अकेला अभिमन्यु हर चक्रव्यूह को अकेले कैसे तोड़ेगा, यह एक बड़ा सवाल है। बहरहाल शहर के नागरिक हैं कि इसके बावजूद अपने डीएम पर उन्हें पूरा भरोसा है कि वह कुछ करेंगे।
सड़क के गड्ढों में ईटें डलवा दी गई हैं- सभासद
इस बारे में क्षेत्रीय सभासद धनंजय सहाय का कहना है कि सड़क के गड्ढों को भरने के लिए ईंटें डलवा दी गई हैं। चार अक्तूबर को सड़क का टेंडर भी हो जायेगा। उसके बाद नाला और सड़क बनाने में चार पांच महीनों का समय लगेगा। तब तक बेहतर हालात के लिए थोड़ी तकलीफ सबको उठानी होगी।