पड़तालः मुस्लिम मतों को संभालना जमील सिद्दीकी की पहली चुनौती, तोड़ने होंगे पाकेट
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। आज के जाति आधारित सियासी दौर में 55 फीसदी समर्थक मतदाता वर्ग वाले उम्मीदवार की लगातार हार चौंकाने पर मजबूर करती है। शोरतगढ़ में पिछले तीन चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी देकर बेहतरीन सोशल इंजीनीयरिेग बनाने के बावजूद बसपा की पराजय पर समय से पहले पड़ताल रिना जरूरी हो जाता है।
शोहरतगढ़ में मुस्लिम वोटरों की तादाद 26 फीसदी और दलितो ंकी 19 फीसदी है। बसपा ने इस बार नगरपालिका चेयरमैन जमील सिद्दीकी को उम्मीदवार बना कर एक बार फिर 55 फीसदी समर्थक वर्ग में पैठ बना कर चुनाव जीतने की रणनीति बनाई है।
बसपा के नये उम्मीदवार और खुद पार्टी को अतीत से सबक लेकर नई रणनीति बनानी होगी। गत तीन चुनावों में शोहरतगढ़ सीट से मुमताज अहमद बसपा के उम्मीदवार रहे। पूरे संसाधनों से लड़ने के बावजूद तीनों बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इस बार बसपा ने जमील सिद्दीकी पर दांव लगाया है।
पिछले साल का आंकड़ा
दरअसल शोहरतगढ़ में मुस्लिम वोटों का बिखराव ही सबसे बडी दिक्कत है। पिछले चुनाव में 1लाख 48 हजार मत पडे थे, जिसमें प्रतिशत के हिसाब से मुस्लिम मत 35 हजार पोल हुए थे।दूसरी तरफ तकरीबन दलित मत 30 हजार पोल हुए। इसके बावजूद मुमताज अहमद को कुल 35 हजार मत ही मिल सके। नतीजा सपा की ललामुन्नी सिंह के पक्ष में गया। उन्हें 50 हजार 5 सौ मत मिले।
कैसे होता है बिखराव
दरअसल इस सीट पर मुसिलम वोटरों के कई पाकेट बने हुए हैं। बढ़नी विकास खंड के मुस्लिम मतों का अधिकांश हिस्सा कई बार विधायक रहे पप्पू चौधरी के हिस्से में जाता है, तो दक्षिण पूरब में इन मतों में सपा लंबी सेंधमारी करती रही है। इसी तरह उत्तर में भी सपा और निर्दल चुनाव लड़े राजा योगेन्द्र प्रताप सिंह बंटवारा कर लेते हैं। इन सब पाकेटों का बचा वोट ही आखिर में बसपा के खेमे में आता है, जो जीतने के लिए नाकाफी होता है।
बसपा को तोड़ना होगा पाकेट
बसपा और उनके उम्मीदवार जमील सिद्दीकी को चुनाव जीतने के लिए खित्तावार स्थापित मुस्लिम वोटरों का पाकेट तोड़ना ही होगा। बसपा उम्मीदवार अगर सजातीय मतों का पचास फीसदी हिस्सा भी जोड़ पाये तो 80 फीसदी दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के कुछ प्रतिशत वोट को जोड़ कर वह अपने वोट को 40 से 50 हजार के बीच ले जा सकते हैं।
इसके लिए बसपा उम्मीदार को हर खित्ते में कर्मठ और मिशनरी मुस्लिम वर्कर को पैदा करना होगा। अगर कठेला क्षेत्र, बढ़नी ब्लाक और कछार के इलाके में सौ कर्मठ वर्कर भी खड़ा कर पाये तो चुनावी बाजी पलटी भी जा सकती है। चुनाव अभी एक साल बाद होने हैं, ऐसे में यह काम बहुत मुश्किल भी नहीं लगता। बस जरूरत है सटीक रणनीति और कड़ी मेहनत की।