‘खइले बिना हमार दूनो बाबू मर गइलें’

September 25, 2018 2:19 PM0 commentsViews: 1236
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भूख और कुपोषण से मरे फेंकू और पप्पू की मां सोनवा का बयान

मनोज सिंह

मृतक 22 वर्षीय फेंकू मुसहर

कुशीनगर। भूख और कुपोषण से अपने दो जवान बेटों को खो देने वाली सोनवा देवी ने प्रदेश सरकार और कुशीनगर जिला प्रशासन के इस दावे को झूठ बताया कि उसके बेटों की मौत तपेदिक की बीमारी से हुई। सोनवा देवी का कहना है कि उसके दोनों बेटे भूख से मरे हैं। उन्होंने कहा कि मुझसे अधिक मेरे हालत के बारे में सरकार और प्रशासन नहीं जानता है। हम महीनों से खाने.खाने के मोहताज थे।

कुशीनगर जिले के पडरौना ब्लाक के खिरकिया जंगल गांव की मुहसर बस्ती निवासी सोनवा देवी के दो बेटों.फेंकू 22 और पप्पू 16 की 13 सितम्बर को 12 घंटे के अंतराल में मौत हो गई। दोनो मुसहर भाइयों की मौत को कुशीनगर जिला प्रशासन ने टीबी बीमारी से मौत होना बताया था। बाद में 17 सितम्बर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गोरखपुर में कहा था कि दोनों मुसहरों की मौत भूख से नहीं बल्कि टीबी से हुई थी। उन्होंने इस मामले की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय कमेटी गठित करने की घोषणा की थी।

सोनवा देवी के छोटा बेटा पप्प मुसहर

गोरखपुर मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार मनो सिंह से 18 सितम्बर को बातचीत करते हुए 65 वर्षीय सोनवा देवी ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि उनके पति की मौत 20 वर्ष पहले हो गई थी। उनके चार बेटे.संजय, बिगु, फेंकू और पप्पू हैं जिनमें से फेंकू और पप्पू की 13 सितम्बर को मौत हो गई। संजय और बिगु की शादी हो चुकी है और वे अपने पत्नी और बच्चों के साथ अलग रहते हैं। मै अपने दोनों छोटे बेटों फेंकू और पप्पू के साथ एक कमरे के घर में रहती थी। घर की छत जर्जर हो गई है और बारिश के समय टपकती है।

सोनवा देवी ने बताया कि उनके पास खेत का एक टुकड़ा नहीं है। राशन कार्ड बना है जिस पर अनाज मिलता है लेकिन सिर्फ अनाज से पेट नहीं भरा जा सकता। खाने के लिए सब्जी, नमक, हल्दी और सामान भी चाहिए। पैसे की कमी से हम अपना पेट नहीं भर पाते थे। मनरेगा का जाब कार्ड बना है लेकिन गांव में कोई काम नहीं मिलता है। कभी.कभी सोहनी का काम मिल जाता है। मै कई बार पडरौना जाकर दुकानों पर काम करती हूं जहां से कुछ पैसे मिल जाते हैं।

फेंकू और पप्पू जब तक ठीक थे, काम करने जाते थे। वह कभी ईंट भट्ठे पर तो कभी खेत में मजदूरी करते थे लेकिन लगातार कम भोजन और हाड़तोड़ मेहनत से वे कमजोर होते गए और हालत यह हो गई कि पूरी तरह विस्तर पर पड़ गए। दोनों की मजदूरी छूट जाने से मेरे उपर दोहरा भार आ गया। मुझे मजदूरी करनी पड़ती और उनकी देखभाल के साथ दवा का भी इंतजाम करना पड़ता। मजदूरी न मिलने से भोजन का भी संकट खड़ा हो जाता था। तब आस.पास के मुसहर परिवारों से भोजन मांग कर किसी तरह पेट भरते थे।

सोनवा देवी ने कहा कि जब फेंकू बीमार पड़ा तो उसे हम जिला अस्पताल ले गए। वहां कहा गया कि इसे कोई बीमारी नहीं है। तब उसे हम एक प्राइवेट डाक्टर के पास ले गए। उसने भी यही कहा कि फेंकू को कोई बीमारी नहीं है। फेंकू को हम तीन बार जिला अस्पताल इलाज के लिए ले गए। हर बार यही कहा गया कि इसे कोई बीमारी नहीं है। आखिरकार उसने अपनी जान गंवा दी। यही स्थिति पप्पू के साथ हुई। अब दोनों की मौत के बाद सरकार और अफसर कह रहे हैं कि फेंकू और पप्पू को टीबी थी लेकिन यह एकदम झूठ है। मै उनकी मां हूं। मै जानती हूं की उनकी कैसे मौत हुई। हमारे बेटे खाने बिना कमजोर हो गए थे। उनके मरने के बाद पचास तरह की बातें की जा रही है। खुद मेरी स्थिति बहुत खराब है। हमरा खातिर अब कोई नहीं है।

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