सैयदा ने नहीं संभाली मुस्लिम लीडरशिप की कमान, तो चुनावों में बसपा होगी परेशान
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। बसपा से एक-एक कर मुस्लिम नेताओं के बाहर चले जाने के बाद जिले में सैयदा मलिक एक मात्र चेहरा हैं, जिन पर मुसलमानों को जोड़ने की जिम्मेदारी आन पड़ी है। पार्टी की सोशल इंजीनियरिंग बेहतर करने के लिए उन्हें आगे किये जाने की जरूरत है। अगर ऐसा न हुआ तो मुस्लिम बाहुल्य इस जिले में आने वाले चुनावों में बसपा को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
गत चुनाव में डुमरियागंज विधानसभा क्षेत्र से प्रतिद्धंदी और विधायक मलिक कमाल यूसुफ को बराबर की टक्कर देने वाली सैयदा मलिक विधायक भले ही न हों, लेकिन चंद वोटों से हारने के बाद उन्होंने अपने क्षेत्र में एक मजबूत नेता की हैसियत बना रखी है।
इलाके के विधायक रहे मरहूंम मलिक तौफीक अहमद की बेटी के रूप में राजनीति में आईं सैयदा मलिक ने अपने मरहूम वालिद के तेवर अपना आकर अपनी जाती पहचान खड़ी की है।
हाल के दिनों में बसपा में मुस्लिम लीडरशिप का अभाव हो गया है। पहले पार्टी के मजबूत नेता मुमताज अहमद ने बसपा को लाम बोला फिर एक अन्य नेता हाजी अली अहमद को भी पार्टी ने गुड बाय बोल दिया।
इसके बावजूद पार्टी से सासंद रहे मुहम्मद मुकीम एक ऐसे नेता बचे रहे जो बसपा के मुस्लिम जनाधार को रोक रखने में कामयाब रहे। मगर हाल में बसपा ने उनके गुहक्षेत्र इटवा में स्काई लैब की तरह अरशद खुर्शीद को उम्मीदवार के रूप में उतार कर मुहम्मद मुकीम को झटका दे दिया।
हालांकि हाजी मुकीम ने अभी बसपा त्यागा नहीं है, लेकिन टिकट नहीं बदले जाने पर उनका बसपा से तलाक तय है। सियासी हवाएं तो अरशद के पक्ष में ही हैं। मुकीम के आउट होने पर बसपा में इन हुए अरशद खुर्शीद जिले के मुसलमानों को जोड़ पायेंगे, इसमें सभी सियासी जानकारों को शक है।
दरअसल जिले का मूल निवासी होने के बावजूद वह शुरू से ही गैर जनपद में रहे हैं। अभी तो उन्हें इटवा क्षेत्र में अपने समर्थक बनाने हैं, लिहाजा जिले की मुस्लिम लीडरशिप कर पाना उनके लिए मुश्किल होगा।
बदले हालात में सैयदा मलिक ही अकेली मुस्लिम लीडर हैं, जो बसपा से लंबे अरसे से जुड़ी रही हैं। उनके साथ उनके वालिद के नाम का साया भी है। डुमरियागंज में उनका मुस्लिम जनाधार मजबूत है। ऐसे में अगर वह डुमरियागंज के अलावा जिले के अन्य इलाकों में सक्रिय होती है तो उनका सियासी कद तो बढे़गा ही, बसपा से मुसलमानों को जोड़ने में मदद भी मिलेगी।
हालांकि सैयदा मलिक की तरफ से इस तरह के कोई संकेत नहीं मिले हैं, लेकिन अगर उन्होंने जिले में आगे बढ़ कर मुस्लिम वोटरों को नहीं संभाला तो इसके नतीजे खराब हो सकते हैं।
इस बारे में उनके प्रतिनिधि जहीर मलिक का कहना है बसपा एक अनुशासित पार्टी है। पार्टी का आदेश यहां सर्वोपरि है। ऐसे में पार्टी जो निर्देश देगी, उसके मुताबिक काम करना होगा।