exclusive– बांसी विधानसभा सीटः नजर लागी ‘राजा’ तोहरे किले पर
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिले की बांसी सीट पर इस बार बांसी राजघराने के सदस्य जयप्रताप सिंह पर हर विरोधियों की निगाहें टिकी हैं। १९८९ से अब तक सिर्फ एक चुनाव हारने वाले जयप्रताप सिंह की घेरेबंदी इस बार जबरदस्त की गई है। सपा हो या बसपा, सबके इरादे राजकुमार जयप्रताप के सियासी बंगले पर लगी हुई हैं। राजमहल पर खतरा है, सुरक्षा का उपाय कठिन है।
१९८९ में निर्दल चुनाव लडने वाले राज कुमार जय प्रताप सिंह बाद में भाजपा में शामिल हो गये। वह ८९ से २०१२ तक एक चुनाव के अलावा ६ बार जीते। लेकिन १९९६ के बाद से उनकी ताकत कमजोर होती गई और वह २००७ में सपा के लालजी यादव से चुनाव हार गये। १६९९६ से लालजी यादव उन्हें बराबर की टक्कर देते रहे हैं।
यह है आंकड़ा
बांसी विधान सभा में २० फीसदी मुस्लिम, १६ प्रतिशत ब्रहमन, भूमिहार, १४ फीसदी यादव, १२ फीसदी निषाद, ८ फीसदी लोधी राजपूत के अलावा ३० फीसदी शेष राजपूत, वैष्य, कायस्थ और अन्य पिछड़ी जातियां हैं। इसमें ब्रहमन,निषाद, लोधी व अन्य सवर्ण व अति पिछड़ी जातियें के गठजोड़ से जय प्रताप चुनाव जीत जाया करते थे। हालांकि वह किसी पिछउ़े के दुख दर्द में कम ही साथ खड़े होते थे। इसलिए उनके बीच उनका जनाधार घटने लगा।
क्या है मौजूदा हालत
लालजी यादव के कारण भाजपा विधायक जयप्रताप से पिछड़ी जातियों का मोह भंग होने लगा था। इस चुनाव में बसपा ने एमएलसी लालचंद निषाद को उम्मीदवार बना कर उनके पिछड़ वर्ग में छेद लगाने की चाल चली है। इसके अलावा ३२ हजार भाजपा के परपरागत लोधी वोटर के लिए लोधी समाज ने भी अपना उम्मीउदवार उतार दिया है। जिले का पांच सीटों में एक भी ब्रहमन उमीदवार न देने के कारण विप्र समाज भी भाजपा से नाराज है, ऐसे में भाजपा विधायक जयप्रताप का समीकरण कुछ गड़बड़ दिखता है।
चार चुनावों का अतीत
१९९६ में सपा के लालजी यादव १२ हजार मतों से हारे थे। २००२ में हार का यह अंतर २४५३ वोटों का रह गया। लेकिन २००७ के चुनाव में लालजी ने जयप्रताप को २५२४ वोटों से हरा कर बांसी का गढ़ फतह कर लिया। २००५ और २०१२ का चुनाव लालजी को औसतन ढाई हजार वोट से जयप्रताप फिर विधायक बन गये। गौरतलब है कि पिछले तीन चुनावों में दोनों के बीच हारजीत में सिर्फ २५०० वोटों का अंतर रहा है।
बता दें कि जिले में बांसी ही भाजपा का सबसे मजबूत गढ़ रहा है। १९९६ के बाद बांसी छोड़ करभाजपा कहीं नहीं जीत पाई। इस बार निषाद लोधी मतों में बिखराव की आशंका को देखते हुए कहा जा सकता है राजकुमार जय प्रताप सिंह की लड़ाई पूर्व की अपेक्षा इस बार अधिक कठिन होगी।