मधेसी नाकेबंदी ने नेपाल को मध्य युग में ढकेला, भैंस और ठेलों से सफर करने पर मजबूर हैं लोग

November 30, 2015 12:10 PM0 commentsViews: 1366
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नजीर मलिक

भैस और ठेलों पर बैठ कर यात्रा करते नेपाली, मिनरल वाटर की बाटल में बिकता पेट्रोल, साइकिल ही सबसे बड़ा सहारा, सड़क पर लिखा मधेश सरकार यानी नाकेबंदी का एलान और नेपाल में फैली नफरत की आग।

भैस और ठेलों पर बैठ कर यात्रा करते नेपाली, मिनरल वाटर की बाटल में बिकता पेट्रोल, साइकिल ही सबसे बड़ा सहारा, सड़क पर लिखा मधेश सरकार यानी नाकेबंदी का एलान और नेपाल में फैली नफरत की आग।

सीमाई इलाकों में मधेसियों द्धारा की जा रही नाकेबंदी ने नेपाल को मध्य युग में ढकेल दिया है, या यों कहें कि  के दो तिहाई इलाके को अपाहिज बना कर रख दिया है। नेपाली बहुमत इसके पीछे भारत की शह बता रहा है। यही वजह है कि भारत में नेपाल के प्रति नफरत बढ़ रही है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अब वहां भारत समर्थक संगठन भी बेमतलब हो चुके हैं।

पिछले तीन महीने से चल रहे मधेसी आंदोलन और तकरीबन दो महीने स चल रही नाकेबंदी ने तीन करोड़ आबादी वाले नेपाल के दो तिहाई हिस्से का जीवन नर्क बना दिया है। नेकेबंदी के चलते नेपाल तमाम जरूरी जिंसों के भयानक संकट से गुजर रहा है। सबसे बड़ा असर डीजल और पेट्रोल के संकट से है।

नेपाल के मैदानी इलाके को पार करते ही यातायात के मामले में नेपाल अपाहिज दिखने लगेगा। पोखरा, काठमांडू, पालपा जैसे इलाकों में सारी परिवहन व्यवस्था ठप पड़ी है। तमाम बड़ी बड़ी और आधुनिक व सुंदर लग्जरी कारें, बसें गैराजों में खड़ी मिलेंगी। पहाड़ के इलाकों में बाइक की सवारी भी दशहरे के नीलकंठ सरीखी हो गई है।

पेट्रोल के अभाव के चलते वहां लोगों को अपनी पूरी दिनचर्या साइकिल, पैदल या किसी पुराने साधन से निपटानी पड़ रही है। दुर्गम क्षेत्रों में लोग भैंस और लकड़ी के ठेले पर बैठ कर यात्रा कर रहे हैं। भारत से तस्करी कर ले जाये गये पट्रोल मिनरल वाटर की बोतलों में 300 सौ रुपये बाटल बिक रहे हैं।

सरकरी व्यवस्था से मिल रहे पेट्रोल से सरकारी और कुछ चुनिंदा वाहन ही चल पा रहे है। इससे वहां पर्यटन व्यवसाय को भारी झटका लगा है। इससे वहां पर्यटन व्यवयाय से जुड़े तमाम नेपालियों के आय के श्रोत समाप्त हो चुके हैं।

नेपाली जनमानस इन सबके पीछे भारत की शह मानता है। सिराही जिले के संदीप घिमरे का कहना है कि मधेशी जो मूल ररूप् से भारतवंशी हैं, भारत के बल पर मूल नेपालियों पर कहर बर्पा कर रहे है। इसका खामियाजा भारत को भुगतना पड़ेगा। मालिनी नेवार भी बातचीत में इसका समर्थन करती है। वह कहती है कि भारत अब हमसे खुली शत्रुता पर उतर आया है, लेकिन नेपाली भी झुकने वाले नहीं हैं।

फिलहाल तो नेपाल में हिंसा आगजनी जारी है। जो अब मधेसी बनाम पहाड़ी का ररू लेती जा रही है। भारत और नेपाल के सदियों पुराने रिष्ते को बरकरार रखने के लिए अगर कोई पहल हो भी रही है, तो वह नजर नही आ रही। भारत-नेपाल मैत्री संघ के एक नेता का कहना है कि हमारी आवाज वहां कमजोर पड़ने लगी है। अब भारत को अपने कूटनीतिक कौशल का परिचय देने का वक्त आ गया है।

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