exclusive- निकाय चुनावः सत्ता की जंग में सगे भाइयों के बीच टकरायेंगी सियासी तलवारें
— अहम सवालǃ घनश्याम राणा प्रताप की तरह जीतेंगे या दारा शिकाह की तरह हारेंगे?
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। सत्ता की जंग में कोई सगा नहीं होता। सम्राट अशोक से लेकर राजस्थान के राणा प्रताप और दिल्ली के मुगलों के बीच सत्ता के लिए सगे भाइयों में गला काट प्रतिस्पर्धा का इतिहास रहा है। सिद्धार्थनगर में इतिहास एक बार फिर इस कथा को दोहरा रहा है। इस बार यहां नगरपालिका सिद्धार्थनगर के अध्यक्ष पद की जंग में दो सगे भाइयों के बीच संघर्ष अपरिहार्य हो गया है।
घनश्याम जायसवाल के सगे भाई हैं श्याम बिहारी
बता दें कि नगर के बडे व्यवसाइयों में शुमार घनश्याम जायसवाल भाजपा से दो बार नगरपालिका अध्यक्ष रह चुके हैं। उनके छोटे भाई श्याम बिहारी जायसवाल भी यहां से चुनाव लड़ चुके है, मगर हारते ही रहे हैं। इस बार श्याम बिहारी जायसवाल ने भी चुनाव से ठीक पहले भाजपा ज्वाइन किया और बड़े भाई को पछाड़ कर भाजपा से टिकट भी पा गये।
इतिहास राणा प्रताप और दारा शिकोह का है
मौजूदा भाजापा कंडीडेट श्याम बिहारी को बनाये जाने के बाद घनश्याम जायसवाल ने भी निर्दल उम्मीदवार के रुप में पर्चा दाखिल कर उनको चुनौती पेश कर दी है। इतिहास गवाह है कि सत्ता संघर्ष में बड़े भाई ने कभी छोटे भाई को मान्यता नहीं दी। जगमाल सिसोदिया का उदाहरण लें। उनको पिता राणा उदय सिंह द्धारा मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाने पर बड़े भाई राणा प्रताप ने बगावत कर गद्दी हासिल की थी, जो उचित भी था।
लेकिन कभी कभी इतिहास की चाल उल्टी भी होती है। शाहजहां ने अपने बडे पुत्र दारा शिकोह को उत्तराधिकारी बनाया तो छल बल कल से छोटे भाई औरंगजेब ने उनकी सत्ता छीन ली। अब यहां भी घनश्याम बनाम श्याम बिहारी की सत्ता की जंग में बड़ा भाई राणा प्रताप की तरह जीतेगा या फिर दारा शिकोह की तरह हत होगा, यह चुनाव परिणाम बताएगा।
फिलहाल दोनों भाइयों में चुनावी बिगुल बज चुका है। घनश्याम जायसवाल पुराने सियासतदान हैं। वह राजनीति की बिसात में अपने मोहरे सधी चाल में चल रहे हैं। इसके विपरीत श्याम बिहारी राजनीति में कच्चे हैं। उनके बेटे जिस प्रकार मीडिया को बिकाऊ कह रहे हैं, वह उनकी अपरिपक्वता का सबूत है। खैर आने वाले दिन में ऊंट किस करवट बैठेगा, यह मतदान के बाद ही तय होगा।