नवोन्मेष नाट्योत्सवः … लगा जेल से सीधे मंच पर आ गईं आयरन लेडी शर्मिला इरोम
नजीर मलिक
शर्मिला इरोम तो याद होंगी न आपको। वही शर्मिला जो सरकारी जुल्म के खिलाफ लड़ते हुए 15 साल से जेल में हैं और वहां भी अनशन कर रही हैं। दुनियां उन्हें आइरन लेडी के नाम से जानती है। बुधवार की शाम इरम के जीवन पर आधारित नाटक के मंचन को देख कर लगा कि साक्षात शर्मिला इरम ही सभागार पहुंच गई हों।
मणिपुर से आई नाटक टीम की प्रस्तुति में इरम के जीवन के सारे पहलू उजागर थे। नागरिक अघिकारों को कुवलने आौर अफप्सा कानून को हटाने की लड़ाई को लेकर इरम के संघर्षों का एक एक पल नाटक में बड़ी खूबसूरती और संजीदगी से पिरोया गया था।
मंचन के दौरान इरम का यह डायलाग कि शांति की शुरुआत कहां और अंत कहां, सबको झिंझोड़ गया। साजिदा के निर्देशन में दमदार पटकथा और शानदार अभिनय दर्शकों को अंत तक बांधे रखने में सफल रहा। नाटक इसका एहसास कराने में भी सफॅल रहा कि उग्रवाद के दमन के नाम पर सुरक्षा बल भी किस तरह आम नागरिकों पर आतंक बरपा करते है।
आयोजक संस्था नवोन्मेष के अध्यक्ष विजित सिंह ने नाटक मंचन से पहले प्रस्तुति की रूपरेखा से दर्शकों को वाकिफ कराया। बैक ग्राउंड म्यूजिक, कहानी कि मुताबिक रहा तो चुटीले संवाद काबिले तारीफ रहे।
इससे पूर्व नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष घनश्याम जायसवाल और उपजिलाधिकारी रजित राम ने दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
बताते चलें कि २ नवम्बर २००० को मणिपुर के मलोम बस स्टाप पर सुरक्षा बलों ने दस नागरिकों को नक्सली कह कर गोली मार दिया था। इसका विरोध शर्मिला इराम ने किया था। बाद में शर्मिल के बढते जनसमर्थन को देख उसे गिरफतार कर लिया गया। पिछले १५ साल से वह जेल में रह कर अनशन कर रही हैं।