जमील भाई! अपने शहर को पार्किंग की सख़्त ज़रूरत है
संजीव श्रीवास्तव
“सिद्धार्थनगर ज़िला मुख्यालय को नगर पालिका का दर्जा 1990 में मिला था। मगर 25 साल के इस लंबे दौर में कोई भी नगर पालिका चेयरमैन एक अदद पार्किंग नहीं बनवा सका। हालांकि मौजूदा चेयरमैन जमील सिद्दीकी के काम देखने के बाद लोगों में उम्मीद बढ़ी है। जागरूक नागरिकों की मांग है कि शहर में पार्किंग स्पेस तय किया जाए।”
25 साल पहले नगर पालिका बनने के बाद से शहर की आबादी में ज़बरदस्त इज़ाफा हुआ है। मगर आबादी के साथ-साथ ही शहर में अतिक्रमण भी बढ़ा और सड़कें संकरी होती गईं। बीते 10 साल में हालात बदतर हुए हैं। संकरी सड़कों की वजह से कहीं भी जाम लग जाना हर दिन की कहानी है।
शाम के वक्त सिद्धार्थ तिराहे पर निकलकर इस दिक्कत से सीधे रूबरू भी हुआ जा सकता है। ट्रैफिक कंट्रोल के लिए सिद्धार्थ तिराहे पर एक पुराना पुलिस पिकेट भी है। मगर कभी यहां ट्रैफिक पुलिस होती है और कभी नहीं भी होती है। सिद्धार्थ तिराहे पर हर शाम जाम लगने की वजह से अब ट्रैफिक पुलिस भी इस समस्या से मुंह मोड़ने लगी है। कई बार ड्यूटी होने के बावजूद ट्रैफिक कांस्टेबल पिकेट से बाहर नहीं निकलते।
शहर के डॉक्टर केके श्रीवास्तव, डॉक्टर एन.पी. उपाध्याय वगैरह का कहना है कि नगर पालिका का गठन ही इसलिए होता है ताकि सुविधाओं में इज़ाफा हो। मगर यहां उलटा हुआ। नपा बनने की वजह से समस्याएं बढ़ी हैं। नागरिकों की मांग है कि शहर में कम से कम आधा दर्जन जगहों पर पार्किंग की पहचान की जाए ताकि ट्रैफिक की दिक्कत से बचा जाए। वहीं नपाध्यक्ष जमील सिद्दीकी का कहना है कि ट्रैफिक की दिक्कत पर उनकी टीम काम कर रही है। जल्द ही इसका खाका तैयार होने के बाद पार्किंग स्पेस घोषित किया जाएगा।