अरशद खुर्शीद के आते ही उनके ईद-गिर्द जुटने लगे सत्ता के दलाल और तथाकथित पत्रकार
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। इटवा विधानसभा क्षेत्र से अरशद खुर्शीद को बसपा प्रत्याषी बनाये जाने के तत्काल बाद से ही उनके इर्द-गिर्द सत्ता के दलालों का शिकंजा कसने लगा है। इनकी घुसपैठ ने इटवा में समाजवादी पार्टी की राह को और आसान बना दिया है।
पिछले दिनों इटवा में आयोजित सभा में अरशद के प्रत्याशी घोषित होने के बाद उनके इर्द गिर्द इटवा क्षेत्र का कोई प्रभावी मुस्लिम चेहरा भले न दिखा हो, लेकिन माल पानी बनाने की तलाश में घूमने वाले और दूसरे दलों के लिए मुखबिरी करने वाले उनके इर्दगिर्द जरूर दिखने लगे है।
खबर है कि अरशद खुर्शीद के आस पास आधा दर्जन चेहरे ऐसे घूमने लगे हैं, जो आम तौर पर इटवा डुमरियागंज क्षेत्र में सत्ता की दलाली के लिए चर्चित माने जाते हैं। इनमें सबसे चर्चित चेहरा एक तथाकथित मीडियाकर्मी का भी है।
आपको इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रमुख हस्ती बताने वाला यह पत्रकार बसपा नेता अरशद का मीडिया प्रभारी होने का दावा करता है। डुमरियागंज के रहने वाले इस तथाकथित पत्रकार की वैचारिक पृष्ठभूमि भाजपाई है। आरक्षण और अकलियत के मुदृदों पर इसके विचार जगजाहिर हैं।
अरशद खुर्शीद के पैतृक गांव बनगवा के पास के गांव के निवासी इस स्वयंभू पत्रकार की खांटी भाजपाई विचारधारा को सभी जानते हैं, लेकिन हैरत है कि इटवा से चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाला एक अनुभवी नेता इसे नहीं समझ पा रहा।
इसी तरह डुमरियागंज के कई चेहरे ऐसे ऐसे हैं जो बसपा की नीति के घोर विरोधी हैं, मगर अरशद खुर्शीद की आर्थिक हैसियत का लाभ लेने और अपनी वास्तविक पार्टी भाजपा की मुखबिरी के लिए उन्होंने इस नये नेता का दामन थाम लिया है।
सत्ता की दलाली का इतिहास
सिद्धार्थनगर में सत्ता की दलाली में पत्रकारिता का प्रवेश 90 के दशक में पहली बार स्पष्ट दिखा। 1991 के लोग सभा चुनावों में प्रसिद्ध पत्रकार और अरबपति सीमा मुस्तफा यहां से चुनाव लड़ने आईं, तो कम से कम तीन पत्रकार उनके परामर्श दाता बने। उनसे लाखों वसूलने के बाद भी उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मोहसिना किदवई के लिए मुखबिरी की।
वर्ष 1996 में इस क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ने आये वर्तमान में जेल में बंद अमरमणि त्रिपाठी के इर्द गिर्द भी दो दलाल मीडियाकर्मी जुटे। उन्होंने लाखों कमाया और सीमा मुस्तफा की तरह उनकी भी जमानत जब्त करा दी।
पिछले चुनाव में इटवा में तत्कालीन बसपा नेता भालचंद यादव के पुत्र बसपा उम्मीदवार थे। उस वक्त भी दो पत्रकार उनके खेमें में शामिल होकर उनसे माल पानी वसूलते थे और रात को मुखबिरी सपा व भाजपा को करते थे।
सावधान अरशद खुर्शीद साहब
पुरानी परम्परा को दोहराते हुए एक बार फिर तथाकथित एक पत्रकार अरशद के खेमे में घुस गया है। यह फिर वही कहानी दोहरायेगा। बात साफ है कि इतिहास भी अपने को दोहरायेगा। इसलिए सत्ता के दलाल इन पत्रकारों का असली चेहरा पहचानिए खुर्शीद साहब, ताकि सत्ता का दलाल वह पत्रकार आपकी खटिया न खडी कर सके।