भाजपा में क्यों गये सच्चिदानंद पांडेय, क्या अब भी उनके लिए कोई राजनीतिक अवसर है
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद पांडेय ने दल बदल कर भाजपा का दामन थाम लिया। पांडेय राम मंदिर आंदोलन के शुरूवात में एक युवा हिंदूवादी नेता के तौर पर उभरे थे मगर उसके बाद दशकों तक कांग्रेस में रहे मगर उन्होंने फिर एक बार अपनी पुरानी पार्टी से नाता जोड़ लिया। तीस सालों में मेहनत कर उन्होंने अपनी जो छवि बनायी थी, भाजापा में वापसी के बाद उसे कायम रख पायेंगे।
वह नहीं मिला जिसके हकदार थे वे
हालांकि सच्चिदानंद पांडेय ने अभी तीन दिन पहले ही भाजपा ज्वाइन किया है। मगर निजी बातचीत में उनकी अर्थपूर्ण बातों से कभी कभी शंका होती थी कि वे नये अवसर के लिए किसी अन्य राजनीतिक ठौर ठिकाने की तलाश में हैं। वैसे भी अवसान की तरफ जाती राजनीतिक उम्र में उनके पास इंतार का ज्यादा वक्त नहीं था। 2012 के बाद में जब वह कांग्रेस में आये तो वह समय कांग्रेस का ग्राफ गिरने का दौर था। लेकिन कई बार चाहने के बाद भी उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं मिल सका। अब वे साठ के असपास की उम्र के है मगर जमीन से जुड़े रहने के बावजूद वे कभी वह राजनीतिक मुकाम हासिल नहीं कर पाये,जिसके वे असली हकदार थे।ॽ
हर दौर में हालात से मात खाते रहे सच्चिदानंद पांडेय
सच्चिदानंद पांडेय राजनीतिक पटल पर पहली बार 2010 में धूमकेतु की तरह उभरे। उससे पूर्व वह भाजपा में एक युवा और आक्रामक शैली के वक्ता माने जाते थे। लेकिन 2010 के उपचुनाव में जब वे डुमरियागंज विधानसभा चुनाव पीस पार्टी से लड़े तो उन्होंने 26 हजार से ज्यादा वोट लेकर बड़े बड़े दिग्गजों के होश उड़ा दिये। इस दौरान अयोध्या मसले पर गर्मागर्म भाषण देने वाले एक हिंदूवादी नेता ने जिस प्रकार अपनी छवि बदल कर सेक्यूलर नेता के रूप में स्थापित की, वह एक मिसाल है। अब उन्हें फिर पुराने भूमिका में आना पड़ेगा। हालंकि पीस पार्टी से वह अगला चुनाव यकीनन जीत जाते लेकिन 2012 में उनको टिकट न मिल कर स्व. कमाल यूसुफ को मिला और वे जीते भी। इसके बाद पुनः राजनीतिक भविष्य की तलाश में अन्होंने कांग्रेस का दामन थामा। तब से लेकर मार्च 2024 तक हर बार वे टिकट की दौड़ में हालात के चलते मात खाते रहे।
कोई बड़ा अवसर तो नहीं दिखता उनके लिए
अब लगता है कि सच्चिदादानंद पांडेय ने इस बार पुनः भाजापा में जाने का जो फैसला लिया है वह भी बहुत असरकारक नहीं है। लोकसभा का टिकट जगदम्बिका पाल को दिया जा चुका है। डुमरियागंज विधानसभा के टिकट के लिए पूर्व विधायक और सीएम योगी के अत्यंत करीबी राघवेंद्र सिंह हैं ही ऐसे में सच्चिदानंद पांडेय के लिए कोई बड़ा अवसर तो नहीं दिखता। ऐसे में उनके कांग्रेस छोड़ने की असली बजह आखिर क्या है? कुछ लोग इसे वर्तमान चुनाव में सपा के संभावित ब्राह्मण उम्मीदवार को देखते हुए दूसरी पाटियों के अधिक से अधिक ब्राह्मण नेताओं को भाजपा में लेने की पार्टी की रणनीति बताते हैं।
स्वयं सच्चिदानंद ने क्या कहा
इस बारें में स्वयं सच्चिदानंद पांडेय का कहना है कि उन्होंने किसी राजनीतिक लाभ के लिए भाजपा का दामन नहीं थामा है। वह किसी सांसद या विधायक के कहने पर भी भजपा में नहीं आये हैं। वह तो भाजपा के संगठन के कहने पर घर वापस लौटे हैं और भविष्य में संगन का काम करेंगे। अब उनके इस दावे मेंकितना दम है, उसके बारे में पाठक स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं।