टिकट वितरण की नीति से घटते जा रहे सपा की जीत के अवसर

February 7, 2022 2:06 PM0 commentsViews: 2756
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केवल इटवा और कपिलवस्तु विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी को मिल सकती है जीत की संजीवनी

नजीर मलिक


सिद्धार्थनगर। समाजवादी पार्टी में टिकट वितरण को लेकर चल रही उठा पटक के दौरान उसकी जीत के अवसर प्रभावित होते नजर आने लगे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव की टिकट वितरण नीति अगर ऐसे ही रही तो चुनाव में सभी पांचों सीटों पर विजय फहराने का सपना देखने वाली सपा को बमुश्किल एक दो सीट पर भी कब्जा कर पाना बहुत कठिन हो जाएगा। पार्टी मुखिया के “मुगेरीलाल के हसीन सपने” वाली नीति से पार्टी के वर्कर अंदर तक हिले हुए हैं।

बता दें कि जिले की विधानसभा के पांच सीटों में इटवा, डुमरियागंज, कपिलवस्तु पर समाजवादी पार्टी की एक तरफा जीत का अनुमान लगाया जा रहा था। इसके अलावा विधानसभा सीट और शोहरतगढ़ की सीटों पर कांटे की टक्कर का अनुमान था। बहरहाल टिकट वितरण का समय हुआ तो पहले राउंड में इटवा से माता प्रसाद प्रसाद पांडेय व कपिलवस्तु से विजय पासवान के नाम का एलान हुआ। अकांक्षा के अनुरूप हुए इस एलान के बाद उन सीटों पर सपा अब काफी मजबूत और निश्चिंत लग रही है। लेकिन दूसरे चरण में डुमरियांगज सीट पर सैयदा खातून के नाम का एलान होते ही बगावत का बम फूट ही गया।

तो क्या अखिलेश यादव गैरजिम्मेदार राजनेता ?

ऐसा नहीं है कि सैयदा खातून के नाम का चयन गलत था। सैयदा खातून ही नहीं अगर चिनकू यादव या कमाल यूसफ मलिक के परिवार से भी किसी को टिकट मिलता तो वे भी चुनाव जीत जाते। लेकिन एक शर्त थी कि सपा के तीनों खेमों को एक कराकर और यह जिम्मेदारी अखिलेश यादव की थी कि तीनों को एक साथ बैठ कर उन्हें एकता के लिए समझाए। अखिलेश यादव को यह बात पता भी थी, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाटों का समर्थन देख शायद उन्होंने यही लहर पूरे प्रदेश में समझ लिया। लेकिन उन्हें क्या पता कि अयोध्या से सटा यह जिला व प्रदेश का सबसे खतरनाक काऊ बेल्ट है जहां चुनाव लहर पर कम समीकरण पर ज्यादा होते है।

डुमरियागंज में एलान ए बगावत

खैर सैयदा खातून के टिकट एलान के बाद डुमरियांगंज में बगावत शुरू हो चुकी है। कमाल यूसुफ परिवार से कमाल साहब के बेटे इरफान मलिक एआईएमआईएम (मीम) से टिकट लेकर आ चुके है तथा उनके स्वागत समारोह में जगह जगह उमड़ी भीड़ आने वाले चुनावी हवा का संकेत दे चुकी है। मगर खतरा सिर्फ यहीं तक नहीं है। तीसरे खेमे के हजारों प्रतिबद्ध वोटर भी सैयदा को हराने के लिए कमर कस रहे हैं। सोशल मीडिया पर उन चेहरों को देख कर बखूबी अंदाजा लगाया जा सकता है।

शोहरतगढ़, और बांसी अवसान की ओर?

शोहरतगढ़ व बांसी की सीट पर भी समाजवादी पार्टी उसी तरह के आत्मघाती फैसले लेने की ओर अग्रसर है। शोहरतगढ़ में जब पार्टी के पास उग्रसेन सिंह जैसा प्रतिबद्ध चेहरा था ही तो अखिलेश यादव को एक बेहद गंदी छवि वाले ऐसे एमएलए पर दावं लगाने की क्या जरूरत थी, जो जनता की नजरों से पूरी तरफ उतरा हुआ है। जिसके प्रति वोटरों की कोई भी सहानुभूति नहीं है। जनचर्चा है कि अगर अखिलेश यादव ने उग्रसेन सिंह या किसी अन्य पारम्परिक सपाई को छोड़ कर दलबदलू पर दांव लगाया तो पार्टी की छवि और मिट्टी दोनों ही पलीद होने से बचाया न सकेगा।

इसी प्रकार जिले की बांसी विधानसभा सीट का मसला अभी तक फंसा हुआ है। यहां से वर्तमान में प्रदेश के स्वास्थ्यमंत्री जय प्रताप सिंह वर्षो से अपराजेय बने हुए है। सन 1989 में राजनीति में आने के बाद वह केवल एक चुनाव हारे हैं। वर्ष 2007 में उन्हें सपा के लालजी यादव ने हराया था। आज भी लोगें को मानना है कि इस बार लालजी उन्हें पराजित कर सकते हैं। लेकिन वहां पूर्व नपा अध्यक्ष चमनआरा राइनी आदि भी टिकट के लिए जोर आजमाइश में लगी हैं। लेकिन वहां के बारे में अभी तक कोई फैसला न ले पाने के कारण संशय बना हुआ है। यदि कोई नया चेहरा ही देना है तो विलम्ब करने का अर्थ अपने प्रत्याशी का ही नुकसान करना होगा।

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