हर माह पांच करोड़ का बालू निकाल लेते हैं रेत माफिया और मिटृटी पर छापा मारते रहते हैं अफसर

September 21, 2015 4:46 PM1 commentViews: 160
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वी श्रीवास्तव

चरगंवा नदी से अवैध खनन कर बैलगाड़ी से बालू ढोते तस्कर

चरगंवा नदी से अवैध खनन कर बैलगाड़ी से बालू ढोते तस्कर

सफेद सोना यानी बालू की सिद्धार्थनगर में लूट मची है। हर माह तकरीबन 5 करोड़ की बालू तस्करी खुले आम ट्रकों, ट्रैक्टरों, बैलगाड़ियों से हो रही है। इसके बरअक्स सरकारी महकमा मकान बनाने के लिए निकाली जा रही मिटृटी को छापा मार कर जब्त कर रहा है।

रविवार को ढेबरुआ थाना के इलाके में चरगंहवा नदी पर बालू खनन कर रहे दो पक्षों में मार पीट हो गई। डढ़वल गांव के दोनो पक्षों के घम्मल दीपक बनरहिया, साधू, राजिंदर, रंगी लाल आदि घायल हैं। पुलिस ने इस मामले में दोनो पक्षों के खिलाफ सिर्फ शांति भंग की आशंका का केस दर्ज किया है।

पूरे जिले में यही हो रहा है। नदी के किनारे से रेत माफिया दिन रात अवैध खनन कर बालू निकालते हैं। फिर उसे खुले बाजार में मनमाने रेट पर बेचते हैं। हालत यह है कि अब नदियों के किनारे बसे गांवों के लोग भी इस धंधे में उतर आये हैं। वह दिन भर बैलगाड़ियों में भर कर बालू को जरूरतमंदों को बेचते हैं। गांवों में यह धंधा अब बड़े कारोबार का रूप ले रहा है।

जानकारों के मुताबिक जिले की एक दर्जन नदियों के सैकड़ों घाटों पर प्रतिदिन औसत बीस लाख रूपये, यानी प्रतिमाह पांच से छः करोड़ मूल्य का बालू अवैध रूप से निकाला जाता है। इससे खनन विभाग को लाखो रुपये की चपत लगती है।

जिले में बिना परमिट खनन पर रोक है, फिर भी यह धंधा खुले आम चल रहा है। लोगों का आरोप है, कि इस कमाई का बड़ा हिस्सा जिले के हाकिमों को पहुंचाष जाता है। इसलिए उन्होंने इस तरफ से आंख मंूद रखा है।

इस बारे में युवा नेता अतहर अलीम का कहना है कि प्रशासन बालू की तस्करी पर अंकुश नहीं लगा रहा, जबकि गरीब अगर अपना मकान बनाने के लिए बिना परमिट मिटृटी खोदता है, तो उसे जेल जाना पडत्र रहा है।

थाना ढेबरुआ इन्द्रजीत यादव का कहना है कि अभी उन्होंने जल्द ही कार्यभार लिया है। उन्हें इस तस्करी केबारे में पता नहीं है। खनन अधिकारी से इस बारे में बात करने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाइल बंद मिला। खनन लिपिक भी अपने कार्यलय में नहीं मिले।

1 Comment

  • बृजेश मिश्र

    यह कार्य पूरे जिले मे हो रहा है सत्‍य है परन्‍तु प्रशासन ने बालू खनन का पट़टा पूरे जनपद मे शायद मेरी जानकारी मे किसी को नही दे रखा है इसका क्‍या कारण है कोई बतायेगा क्‍या अगर नही तो क्‍या इस जनपद के वासियो को बालू की आवश्‍यकता नही है हर गरीब अपनी रोजी रोटी और दैनिक खर्च के बाद बचे हुए रूपयो से आशियाना ही बनाना चाहता है अाशियाना बनाने के लिए सबसे पहले ईट बालू सिमेन्‍ट की ही आवश्‍यकता होती है फिर क्‍यो पूरे जनपद मे नदियो का जाल होते हुए भी जनपद वासी बालू के लिए तरस रहे है ऐसा क्‍यु यह एक यक्ष प्रश्‍न है

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