अंधा बांटे रेवड़ी की तर्ज पर सपा में चल रहा परिवारवाद, चुनावों में घातक होगी वर्करों की उपेक्षा

February 14, 2016 4:17 PM4 commentsViews: 870
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नजीर मलिक

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सिद्धार्थनगर। सिद्धार्थनगर जिले के सपाई भी अपने नेता की तर्ज पर चल रहे हैं। सारे प्रमुख पद पर उनका कब्जा बनता जा रहा है। बड़े नेताओं की इस सियासी हवस से खांटी कार्यकर्ताओं में बेहद हताशा है। इसका खामियाजा आने वाले दिनों में सिद्धार्थनगर में सपा को भुगतना पड़ सकता है।

सिद्धार्थनगर जिले के सपा जिला अघ्यक्ष अजय उर्फ झिनकू चौधरी को ही लीजिए। वह पार्टी के जिलाध्यक्ष हैं। उनकी पत्नी कोआपरेटिव बैंक की चेयरमैन हैं। हाल में उनकी यानी अनुज बहू यानी भयहु को पार्टी ने टिकट देकर ब्लाक प्रमुख बना दिया। बांसी के विधायक रहे लालजी यादव इस बार खुद चुनाव हार गये, लेकिन उन्होंने बेटे को प्रमुख और पत्नी को जिला पंचायत बना दिया।

पार्टी के बडे़ नेता और यूपी विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय भी इससे बरी नहीं हैं। खुद विधायक हैं। बहू गांव की प्रधान हैं और पत्नी सूर्यमती पांडेय ब्लाक प्रमुख। सदर विधायक विजय पासवान की पत्नी व भाई रामलाल जिला पंचायत सदस्य हैं।

डुमरियागंज सीट से विधानसभा चुनाव लड़ चुके चिनकू यादव के पिता प्रमुख माता प्रधान, पत्नी और भाई जिला पंचायत सदस्य हैं। शोहरतगढ की विधायक लालमुन्नी सिंह की बहू नीलिमा सिंह ब्लाक प्रमुख हैं, तो सपा नेता जमील सिदृदीकी खुद नपा चेयरमैन हैं और भाई ब्लाक प्रमुख बन चुके हैं।

सवाल यह है कि सपा की सियासत में आम कार्यकर्ता कहां है। इस सवाल का जवाब कई सपा कार्यकर्ता ही देते हैं। उनका कहना है कि दिन नारा लगाने और पार्टी के लिए जूते धिसने वाले कार्यकर्ताओं के हक पर बड़े नेताओं ने डाका डाला है। नतीजे में कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव में उदासीन रहें तो ताज्जुब नहीं होना चाहिए।

पार्टी के अंदरूनी जानकारों का कहना है कि जिले में तमाम पदों पर बड़े नेताओं के परिजनों के कब्जे से आम कार्यकर्ता हताश है। उसकी उम्मीदें टूट रही हैं। उनकी उदासीनता से उपजने वाला दुष्प्रभाव आगामी चुनाव पर पड़ने की पूरी आशंका है।

हालांकि सपा के बड़े नेता इस प्रकार की आशंका को खारिज करते हैं। उनकी दलील है कि अगर नेता जी मुलायम सिंह के परिजनों के राजनीति में आने पर भी वह अपने गढ़ में अजेय हैं तो सिद्धार्थनगर में हम अजेय क्यों नहीं रह सकते हैं। इसके जवाब में एक सपाई का कहना है कि यह तुलना गलत है। चुनाव आने दें, आटा दाल का भाव मालूम पड़ जायेगा।

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