डुमरियागंज का वह चुनाव जब हर वाहन पर चलते थे बंदूकधारी गार्ड

January 22, 2022 1:34 PM0 commentsViews: 1777
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परसपुर बाजार में हुआ था झगड़ा, कादिराबाद गांव के पास मारपीट के बाद बढ़ा था समूचे इलाके में तनाव का माहौल

80 के चुनाव में कम मत मिलने के कारण 85 के चुनाव में नहीं दिया गया मलिक तोफीक अहमद को कांग्रेस का टिकट

नजीर मलिक

 

सिद्धार्थनगर। जिले की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट डुमरियागंज में एक चुनाव ऐसा भी आया जब  हर प्रचार वाहन पर बंदूकधारियों का चलना आम बात हो गई थी। लोग इस बात को लेकर सशंकित हो गये थे कि जहां कहीं भी दोनों पक्ष भिड़ेगे तो कुछ लाशें जरूर बिछेंगी, लेकिन खुश्किस्मती से ऐसा नहीं हुआ और पहले झगड़े के बाद माहौल किसी तरह से शांत हो गया। वह यही चुनाव था जिसमें कमाल युसुफ मलिक रेकार्ड मतों से चुनाव जीतने में सफल रहे थे।

वर्ष 1985 था और दिन शानिवार का। कमाल यूसुफ के कार्यालय पर गंभीर मीटिंग चल रही थी। दरअसल शुक्रवार को डुमरियागंज से 6 किती पयिचम परसपुर गांव की साप्ताहिक बाजार में लोकदल उम्मीदवार कमाल यूसुफ की प्रचार पार्टी को कांग्रेस प्रत्याशी मलिक तौफीक अहमद की प्रचाार पार्टी ने काफी अपमानित कर दिया था। बाद में जब दोनों पार्टियां कार्यालय जाने की ओर रवाना हुईं तो ग्राम कादिराबाद के पास दोनों प्रचार वाहनों में बैठे प्रचारकों में फिर भिड़ंत हो गई। परसपुर में अपमानित लोकदल के कार्यकर्ता पहले ही गुस्से में भरे थे। वापसी में कांग्रेस के कार्यकर्ता कम हो गये थे। लिहाजा कमाल युसुफ के कार्य कर्ताओं ने मलिक तौफीक अहमद के एक वरिष्ठ नेता की पिटाई कर दी।

इसका नतीजा यह हुआ कि रात में ही दोनों नेताओं के कैंपों में तनाव फैल गया। चुकि दोनों दलों के कार्यालय पास पास ही थे, इसलिए एक दूसरे खेमे की बातें वहीं रात ही में पहुंचने लगीं और लगने लगा कि इस चुनाव में किसी दिन खून खराबा होकर रहेगा। इसी बात को लेकर शनिवार को लोकदल उम्मीदवार के कार्यालय पर कुद गंभीर लोग मंत्रणा कर रहे थे। जिसमें यह तय पाया गया की यदि विपक्षी दल विधायक कमाल युसुफ मलिक के विरूद्ध जनता में यह संदेश देने में कामयाब हो गये कि उन्होंने विधायक पक्ष को दबा दिया है तो चुनाव जतने में कामयाब हो जायेगे। इसलिए हमे ढगड़ा न करने की मंशा के बावजूद अपनी ताकत दिखानी ही पड़ेगी। दूसरी तरफ कांग्रेस प्रत्याशी मलिक तौफीक के खेमे में भी इसके मुहंतोड जवाब देने की बातें चल रही थीं।

बहरहाल दूसरे दिन जब दोनों उम्मीदवारों से प्रचार वाहन निकले तो उसमें प्रचारकों के साथ् साथ् बंदूकें और रायफलधारी भी बैठ कर चलने लगे। जनपद के लोगों ने बंदूकों के साये में चुनाव पहली बार देखा था। चूंकि उस समय कांग्रेस प्रत्याशी की छवि दबंग नेता की थी, इसलिए अनहोनी की आशंका बनी हुई थी। बंदूकों के खौफ का आलम यह था कि एक बार बेलवा बिजौरा बाजार में कांग्रेस की ओर से भाषण कर रहे वक्ता ने पानी मांगा तो कोई पानी देने को तैयार न हुआ। दरअसल बाजार के लोग किसी पक्ष से सहानुभति जता कर दूसरे पक्ष की निगााह में आना नहीं चाहते थे।

इस प्रकार बंदूकों के साये में एक माह चले चुनाव प्रचार व मतदान के बाद जब मतगणना हुई तो मलिक कमाल युसुफ को लगभग 48 हजार मत मिले जबकि कांग्रेस प्रत्याशी मलिक तोफीक अहमद को मात्र ३२ हजार मत ही मिल सके। इसके उपरान्त 85 के चुनाव में तौफीक अहमद के स्थाना पर काजी शकील अब्बासी को टिकट दिया गया। मगर कमाल की आंधी के सामने 85 में वे भी हार गये।

 

 

 

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