शोहरतगढ़ में दिल चस्प हुआ चुनाव, जातीय गोलबंदी बनाने व मिटाने में जुटे उम्मीदवार
सपा भाजपा गठबंधन जातीय ध्रुवीकरण को रोकने में लगे तो कांग्रेस, बसपा व भागीदारी मोर्चा उम्मीदवार जातीय गोलबंदी के प्रयास में
26 प्रतिशत मुस्लिम, 21 फीसदी अति पिछड़े मतों को एकजुट करने में जुटे भागीदारी परिवर्तन मोर्चा के डा. सरफराज अंसारी
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। शोहरतगढ़ विधानसभा में चल रहे बहुकोणीय चुनावी लड़ाई में कुछ उम्मीदवार मतों को जातीय अधार पर गोलबंद करने तो कुछ उस गोलबंदी को विफल करने में जुट गये हैं। भागीदारी परिवर्तन मोर्चा के उम्मीदवार बहुत तेजी के साथ 26 प्रतिशत मुस्लिम और 21 प्रतिशत अति पिछडों को लामबंद कर चुनाव की हवा बनाने में लग गये हैं। जबकि दूसरा पक्ष अपने परम्परागत वोटों के साथ दूसरे दलों के वोटबैंक में सेंधमारी में जुटा हुआ है। इस प्रकार की रणनीति के चलते शोहरतगढ़ में चुनावी संघर्ष बहुत दिलचस्प होता जा रहा है।
मुस्लिम व अति पिछड़ों को गोलबंद कर रहे डा. सरफराज
भागीदारी परिवर्तन मोर्चा के उम्मीदवार डा. सरफराज अंसारी तो एक बार मुस्लिम की पहली बार जीत का नारा देकर मुस्लिमों को यह एहसास कराने में लगे हें कि यदि इस बार अल्पसंख्यक नहीं जीता तो फिर कभी नहीं जीतेगा। इसके लिए मुस्लिम समाज के 91 हजार मुस्लिम मतदाताओं को भागीदारी परिवर्तन मोर्चा के एक नेता बाबू सिंह कुशवाह के नाम के सहारे अति पिछड़ों के 21 फीसदी वोटों को पाने की दलीलें दे रहे हैं। मुसलमानों के एक वर्ग पर उनका प्रभाव भी देखा जा रहा है। डा. सरफराज के मुताबिक इस बार मुस्लिम विधायक का नारा क्षेत्र के अल्पसंखयकों के मन में घर कर रहा है। उनकी बातों में कितना दम है यह बाद में पता चलेगा।
ब्राह्मणों को रिझाने में लगे बसपा के राधारमण
शोहरतगढ़ सीट पर वर्तमान में 3 लाख 58 हजार मतदाता है। इनमें 16 प्रतिशत अर्थात 56 हजार दलित और 26 फीसदी यानी लगभग 91 हजार मुस्लिम वोटर हैं। इसके अलावा अति पिछड़ों के 65 हजार वोट हैं। इसके बाद ब्राह्मण कुर्मी यादव व अन्य जातियों के वोटर है। शोहरतगढ़ से चुनाव लड़ रहे छः प्रमुख उम्मीदवार इन्हीं वोटरों में अपनी जाति के वोटरों को लेकर समीकरण बनाने में लगे हैं जबकि अन्य लोग इस समीकरण को बिगाड़ने की कोशिश में हैं। वहां की चुनावी राजनीति इसी के इर्द गिर्द चल रही है। इस तरह की उलझावपूर्ण लड़ाई के चलते यहां भाजपा गठबंधन के विनय वर्मा या सपा गठबंधन के प्रेमचंद कश्यप में से कोई भी अपनी जीत का पुख्ता दावा कर पाने की स्थिति में नहीं है।
अमर सिंह के मुकाबले पप्पू चौधरी दिख रहे मजबूत
इसके अलावा कांग्रेस विधायक पप्पू चौधरी कांग्रेस के परम्परागत वोटों के साथ 40 हजार कुर्मी वोटों को जोड़ने में लगे हैं तो वर्तमान विधायक और आजाद पार्टी के उम्मीदवार अमर सिंह चौधरी भी अपने समर्थर्कों के अलावा दलित युवकों व कुर्मी मतों के सहारे वैतरणी पर करने की कोशिश में हैं। दोनों प्रत्याशियों के बीच कुर्मी वोटों पर पकड़ बनाने के लिए एक अलग ही संघर्ष चल रहा है। लोग कहते हैं कि यहां कुर्मी वोटों की एकजुटता कई लोगों के समीकरण बिगाड़ सकती है। यहं यह कहना भी जरूरी है कि पप्पू चौधरी मुस्लिम मतदाताओं के बीच भी प्रभव रखते हैं। इसलिए वे अमर सिंह की अपेक्ष लाभ की स्थिति में हैं। जबकि अमर सिंह आजाद पार्टी के प्रत्याशी होने के बावजूद तकरीबन निर्दल उम्मीदवार की हैसियत में हैं, क्योंकि आजाद पार्टी का प्रभाव लगभग न के बराबर है।
गठबंधन प्रत्याशियों को मेहनत करने की जरूरत
सपा गठबंधन से सुभासपा के प्रेमचंद कश्यप और भाजपा गठबंधन से अपना दल एस के विनय वर्मा वोटों की जातिगत गोलबंदी को रोकने के प्रयास में हैं। प्रेमचंद कश्यप के समर्थकों का मानना है कि यदि अल्पसंख्यकों ने अपना रुख फेरा तो फिर गठबंधन के लिए कुछ न बचेगा। इसलिए वे सपा के मुस्लिम नेताओं के साथ इस गोलबंदी को न होने देने के जबरदस्त मेहनत कर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा को पता है कि ब्राह्मण और कुर्मी भाजपा के परम्परागत वोटर हैं। वह इन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए कृतसंकल्पित हैं। इसके लिए अनुभवी भाजपा सांसद जगदम्बिका पाल स्थानीय भाजपा नेताओं व वर्करों के साथ इस मुहिम को तोड़ने में लगे हैं। मगर देखा जा रहा है कि भाजपा कार्यकर्ताओं का बड़ा वर्ग उनके विरोध में भी सक्रिय है। इसलिए उन्हें भितरघात का दंश भी झेलना पड़ सकता है। यहां इन दोनों उम्मीदवारों को मेहनत करने की जरूरत है।
चुनावी आसमान पर अभी कुहासा
इस प्रकार शोहरतगढ़ का चुनावी परिदृश्य अभी बेहद उलझाव भरा है।बहुकोणीय संघर्ष में कौन आगे है और कौन पीछे, यह कहना कठिन है। जानकार मानते हें कि यदि वोटों की जातिगत गोलबंदी मजबूत हुई तो चुनाव का अश्चर्यजनक परिणाम सामने आयेगा और यदि सपा, भाजपा गठबंधन इस गोलबंदी को रोकने में सफल रहे तो उनके प्रत्याशियों में से किसी का सितारा बुलंद हो सकता है। बहरहाल मुस्लिमों व अति पिछड़ों की गोलबंदी में लगे डा. सरफराज अंसारी कहते हैं कि उन्हें मुस्लिम मतों के बड़े वर्ग का समर्थन मिल रहा है। इसलिए वह अपने व्यक्तिगत प्रभाव वाले व अति पिछउ़े वोटों की बदौलत इस सीट से जीत कर पहली बार एक मुस्लिम उम्मीदवार के रूप में इतिहास रचेंगे।