कांग्रेस के भारत बंद का जिले में दिखा आंशिक प्रभाव,खुली रहीं अधिकतर दुकानें
— सांगठनिक कमजोरी और वर्करों की कमी से प्रभावी नही बन पाया कांग्रेस का आंदोलन
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। कांग्रेस के भारतबंद का जिले में आंशिक प्रभाव दिखा। खुद पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम और पूर्व विधायक अनिल सिंह के होते हुए भी जिला मुख्यालय पर कांग्रेस के प्रदर्शन का वह रंग नहीं दिख पाया, जैसी की उम्मीद की जा रही थी। मुख्यालय के अलावा भी बांसी, डुमरियागंज, इटवा आदि तहसीलों में भी बंद का असर अपेक्षा से कम रहा।
भारतबंद की घोषणा के तहत आज सुबह पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम अपनी गृहतहसील इटवा छोड़ कर जिला मुख्यालय पर ही जम गये। यद्यपि उनकी सेहत ठीक नही थी फिर भी वह कड़ी धूप में रिक्शे पर बैठ कर प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे। लगभग 5 किलो मीटर सड़कों पर प्रदर्शन करने के बाद एक सभी भी हुई, जिसमें मोदी सरकार पर जम कर हमला किया गया।
उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए पूर्व सांसद मुहम्मद मुकीम ने मोदी सरकार को जुमलों की सरकार बताया तथा कहा यह यह सरकार जुमलों और झूठे वादों से जनता को लगातार धोखा दे रही है। उन्होंने कहा कि आज पेटाेल की कीमते आसमान छू रही है। कांग्रेस राज में जब अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम बढा हुआ था तो यही भाजपा 60 रूपये लीटर पेट्रोल बिकने पर सर पर आसमान उठाये हुए थी। और आज पेट्रोल अनेक स्थानों पर 80 रूपये से ऊपर बिक रहा है, लेकिन यह सरकार बेशर्मी से प्रतिदिन दाम बढाती जा रही है।
पूर्व सांसद मुकीम ने कहा कि डालर के मुकाबले रुपया गिर कर 72 से नीचे हो गया है। प्रतिवर्ष 2 करोड़ रोजगार देने का मोदी जी का वादा जुमला साबित हुआ। काला धन तो कहीं मिला नहीं, उलटे नोटबंदी कर गरीबों को मरने पर विवश किया गया। छोटे व्यापारी तबाह हो गये।
सभी में अन्य वक्ताओं ने भी भाजपा पर करारे प्रहार किये। कार्यक्रम में पूर्व विधायक अनिल सिंह, कांग्रेस जिलाध्यक्ष ठाकुर प्रसाद तिवारी, महिला शाखा की जिला अध्यक्ष रंजना मिश्र, कैलाश पंछी, अनिल सिंह अन्नू अफसर अहमद आदि शामिल रहे।
एक अन्य समाचार के अनुसार डुमरियागंज में भी सुहेल अहमद और सच्चिदानंद पांडेय ने भी भारत बंद के लिए कोशिश की मगर अधिक कामयाबी न मिल सकी। दरअसल इसके पीछे कांग्रेस संगठन का स्थानीय स्तर पर कमजोर होना है। जब जिला मुख्यालय पर कांग्रेस के प्रदर्शन में पचास से कम लोग शामिल थे तो अन्य स्थानों की तो बात ही दीगर है।सांगठनिक कमजोरी व वर्करों की कमी के चलते स्थानीय काग्रेस जनसंवाद कर पाने में विफल रही।
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