सोने जेस खेत चांदी जेस खरिहनवां, बिटिया के सारा दहेज के सामनवां, नदिया बहाये लिए जाय
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। नदियां खतरे के निशान से नीचे जा चुकी हैं। अब किसानों के माथे पर अपने सपनों को पूरा करने कि चिंता खड़ी हो गई है। भनवापुर ब्लाक के छोटे से किसान गंगाराम की बिटिया की शादी अगली लगन में तय थी, लेकिन जुलाई और अगस्त महीने में दो चरणों की बाढ़ ने उसके सारे सपने लील लिए। दो बीघे खेत में लगी धान की फसल तो बरबाद हुई ही बिटिया की शादी के लिए लिए सालों से मर-मर कर इकट्ठृा किया गया दहेज का कई सामान भी सैलाब की चिता पर स्वाहा हो गया। अब बिटिया की शादी कब और कैसे होगी, इसी चिंता में वे गले जा रहे हैं। सैलाब के संदर्भ में तो गंगाराम एक मिसाल भर हैं। जिले में सैकड़ों ऐसे किसान हैं जिनकी बहन या बेटी की शादी आने वाली लगन में होनी थी।
जिले में ऐसे अनेक किसान है जिनकी बेटी बालिग होने लगे तो उसके माथे पर शिकन पड़ने लग जाती है। लेकिन जब किसान की फसलें लहलहाती है तो वह सारी चिंताओ से मुक्त हो जाता है। क्यों कि यही लहलहाती फसलें ही उसका सपना होती हैं, जो उनके उड़ान को पंख देती हैं। फसल कटती है तो उसकी जवान बेटी की शादी की, बच्चों की फीस कापी किताब के खर्चो को लेकर योजना बनने लगती है। मगर सपने बुनने वाले उसी किसान का दिल तब घायल होकर तड़प उठता है, जब नदी की धारा उसकी लहलहाती फसलों को डुबाने के साथ गरीब किसान के सपने भी बहा कर ले जाती है। मछिया गांव के बादशाह भाई कहते हैं कि इस बार की बाढ़ में उनके ही नहीं गांव के कई घरों के बच्चों के स्कूल बैग सैलाब में बर्बाद हो गये। अब सब कुछ नये सिरे से करना पड़ेगा, किसान की फसल ही एकमात्र सहारा थी, मगर अब उसके भी बचने के आसार कम हैं। राप्ती तट पर बसे सोनखर गांव के लोग नदी के किनारे भुट्टे और कांकर की फसल उगा कर उन्हें बेच कर घर चलाते हैं। सोनखर जैसे नदी के तट पर बसे दर्जनों गांव की मकई और कांकर की फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है। अब 6 महीने उन्हें साहूकारों के कर्ज से काम चलाना पड़ेगा। सूदखेरों की टोली उन्हें बर्बादी के कगार पर ही ले जायेगी। सामाजिक कार्यकर्ता कलाम सिद्दीकी कहते हैं कि सरकार को इस समस्या पर ध्यान देना होगा। इन बर्बाद किसानों को बचाने के लिए सरकार को बैंकों को आगे आने के लिए प्रेरित करना होगा।
इस बार दी चरणों की बाढ़ में भारी बरबादी हुई है। लगभग 40 हजार हैक्टेयर फसल प्रभावित हुई है। जिनमें लगभग 10 हजार हेक्टेयर कृषि पूरी तरह तबाह हो चुकी है। फसल पशु और उनका भूसा, क्षतिग्रस्त मकानों को मिला कर इस बार भी गांव के गरीब किसान की लगभग 2 सौ करोड़ का नुकसान आंका जा रहा है। हर साल बाढ़ की विभीषिका जिले की नियति बन चुकी है मगर प्रशासनिक आश्वासन और सियासतदानों के वादों के अलावा पीड़ितों के हाथ कुछ भी नहीं आता। नतीजा किसानों की बेटियों की कलाई में कंगना और बेटों की भोली आंखों का भोला सपना मात्र सपना ही बन कर रह जाता है।
ऐसे में शायर सागर आजमी की निम्न पंक्तियों का याद आनी स्वाभाविक है, बकौल सागर आजमी—
‘ गोरी गोरी नाजुक कलइयों का सपना
भोली अंखियन के भोला भाला सपना
सोने जेस खेत चांदी जेस खरियहनवां
बिटिया के सगरों दहेज के सामनवां
नदिया बहाये लिए जाये़————–‘