“शिक्षा बिभाग में शासन की नियमों से कोई मतलब नही रहता। सारा नियम कानून बीएसए ही बनाकर शिक्षकों को नियुक्ति दे देते हैं। शासन द्वारा यह नियम है की उर्दू शिक्षक का तैनाती उसी प्राथिमक विद्यालय में की जायेगी, जिस स्कूल में उर्दू के पर्याप्त बच्चे मौजूद हों। मगर शिक्षा विभाग का तुगलकी फरमान देखिए, जिन स्कूलों में उर्दू पढने वाले बच्चे हैं वहां से उर्दू अध्यापकों को हटा कर ऐसे स्कूलों में भेजा जा रहा है जहां एक भी उर्दू छात्र नहीं है”
मिसाल के तौर पर बाँसी विकास खण्ड के प्राथिमक विद्यालय रेहरा ;केवतहियाद्ध को ही लें। यहाँ उर्दू के एक भी बच्चे नहीं है, परन्तु उर्दू शिक्षक के रूप में सलाहुद्दीन की नियुक्ति कुछ महीने पहले की गयी है। मजे की बात यह है की उनका स्थांतरण खुनियांव ब्लाक के ऐसे विद्यालय से करके यहाँ भेजा गया है, जहाँ उर्दू पढ़ने वाले बच्चों की संख्या पर्याप्त रूप से मौजूद है।
प्राथमिक विद्यालय रेहरा में 150 बच्चे पढ़ते हैं, जिसमे एक भी बच्चा उर्दू का नहीं है, जबकि वहीँ बगल के कई विद्यालय दसिया, तीवर, वादहरघट आदि ऐसे विद्यालय हैं, जिसमे उर्दू बच्चों की पर्याप्त संख्या है। परन्तु वहाँ उर्दू के किसी अध्यापक की नियुक्ति नहीं हैं और विद्यालय के बच्चे उर्दू शिक्षा से वंचित हैं। ग्रामीणों ने शिक्षा विभाग से विदृयालयों में उर्दू शिक्षक नियुक्त करने की मांग की है। इस बारे में बेसिक शिक्षाधिकारी का कहना है कि वह मामले को देखेंगे और अगर कुछ गलत हुआ तो सुधार किया जायेगा।