पुलिस ने सिसवा गांव को सिर्फ एक दिन लूटा था, नेता 35 साल से वोट लूट रहे

May 2, 2017 1:18 PM0 commentsViews: 1366
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सन्दीप कुमार मद्धेशिया

सियासतदानों का मुंह चिढ़ा रही सिसवा गांव की सड़क

सियासतदानों का मुंह चिढ़ा रही सिसवा गांव की सड़क

लोटन, सिद्धार्थनगर। तीन दशक पूर्व जिले के एक छोटे से गांव सिसवा में  प्रदेश का सबसे बड़ा पुलिस जुल्म हुआ था। उस समय  पुलिसवालों ने दिन दहाड़े पूरे गांव को लूट लिया था। कई  घरों को जलाने और महिलाओं से बदसलूकी की खबरें भी प्रकाश में आई भीं। उसके बाद से सैकड़ों सियासतदानों ने सिसवा गांव की किस्मत बदलने का वादा किया, वह चुनाव में वोट लूटने के अलावा कुछ नहीं कर सके। यह गांव पिछले 35 साल से एक छोटी सी सड़क के लिए तरस रहा है।

जिले के बर्डपुर–लोटन मार्ग पर सिकरी बाजार से तीन किमी दूर सिसवां गांव है। इस गांव में 1982 में पुलिस जुल्म की घटना के बाद गांव का दौरा करने आये तत्कालीन नेता विपक्ष के साथ मेनका गांधी, मोहसिना किदवई, माधव प्रसाद त्रिपाठी, मोहन सिहं, आदि दो दर्जन बड़े नेताओं ने सिसवा के विकास का वादा तो किया, लेकिन आज तक उस गांव को मुख्य मार्ग से जोड़ा नही जा सका। सन 2002 में विधायक बनने के बाद सिसवा के बगल के निवासी अनिल सिंह ने एक किमी पिच रोड जरूर बनवाया, लेकिन वह भी टूट फूट कर समाप्त हो गया।

क्या था सिसवा कांड

बहुचर्चित सिसवा काण्ड सन 1982 जून मे हुआ था। थाना मोहाना के इंचार्ज उस समय वीरेन्द्र राय थे, जो तत्कालीन मंत्री कल्पनाथ राय के भतीजे थे। उन्होंने एक समस्या पर गामीणों का विरोघ देख कर गांव वालों को सबक सिखाने की ठानी। और जून १९८२ के पहले सप्ताह में नाराज होकर सिसवा गांव में दिन दहाड़े पुलिस टीम के साथ धावा बोल दिया।

पुलिस वालों ने गांव को जम कर लूटा। हर नागरिक क जम कर पिटाई की। कई घरों में आग लगा दी। महिलाओं की भी जम कर पिटाई की। कई महिलाओं से बदसलूकी भी की। यह घटना पूरे प्रदेश में सिसवा लूट बलात्कार कांड से चर्चा का विषय बनी। लेकिन दारोगा राय के आतंक के कारण यह घटना मीडिया में नहीं आय। बाद में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष माता प्रसाद त्रिपाठी के प्रयास से यह घटना सार्वजनिक हुई।

 नेता गांव में पैदल जाते थे

घटना के समय सिसवा गांव की सड़क कच्ची थी। उस समय गांव में बडे नेताओं का आना जाना लगा रहता था। हर नेता मुख्य सड़क पर गाड़ी छोड कर पैदल ही जाता था। लिहाजा हर नेता वहां पर सड़क की पहली जरूरत बताता था। नेताओं के आवागमन को देख उस वक्त वहां खड़ंजा बिछा दिया गया, लेकिन कभी किसी ने इस सड़क को बनवाने में दिलचस्पी नही ली, हां हर चुनाव में वादे कर सिसवा गांव बालों का वोट जरूर लूटते रहे। आज भी सिसवा जाने के लिए सड़क नहीं है। गांव के राजकुमार शुक्ला सवाल करते हैं कि क्या कोई सियासतदान सिसवा का दर्द महसूस करेगा?

 

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