लाल अमीन को आगे कर बसपा ने गोरखपुर-बस्ती मंडल में खेला तगड़ा सियासी दांव
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। गोरखपुर-महाराजगंज एमएलसी सीट पर बसपा ने मुस्लिम नेता लाल अमीन को उम्मदवार घोषित कर बड़ा सियासी दांव खेला है। विधानसभा चुनाव में इस दांव का गोरखपुर और बस्ती मंडल की विधानसभा सीटों पर गहरा प्रभाव पड़ने की उम्मीद है। सपा भाजपा व कांग्रेस के सियासी जानकार इस रणनीति के पोस्टमार्टम में अभी से जुट गये हैं।
लाल अमीन की उम्मीदवारी केवल विधान परिषद चुनाव जीतने की कवायद नहीं है। सूत्रों का कहना है कि मायावती ने इस दांव से गोरखपुर मंडल में तगड़ी सोशल इंजीनियरिंग बनाने की कोशिश की है। । अगर यह समकरण बना तो दोनों मंडलों में सपा को भारी झटका लग सकता है।
बसपा के सूत्र बताते हैं कि गोरखपुर के 19 प्रतिशत दलित मतदाताओं के साथ 13 18 फीसदी मुस्लिम और 17 प्रतिशत ब्रहमण वोटों का समीकरण बना कर विधानसभा चुनावों में सपा औ भाजपा को पटखनी देने की पूरी तैयारी है।
सूत्रों का कहना है कि विधान परिषद सीट पर लाल अमीन की सक्रियता के बाद गोरखपुर में मुस्लिम वोटरों में बसा के प्रति आकर्षण बढ़ेगा जो सपा कि गिरती साख के कारण विधान सभा चुनावों में वोट में तब्दील हो जायेगा।
जानकारों का कहना है कि विधान सभा चुनावों में पंडित हरिशंकर तिवारी के पुत्र विनय शंकर तिवारी और परिजन गणेश शंकर पांडेय उम्मीदवार के तौर पर सक्रिय होंगे। गोरखपुर क्षेत्र में भाजापा के योगी आदित्यनाथ से खार खाए मुसलमान उन्हें शिकस्त देने के लिए ब्रहमण मतों के साथ बसपा की तरफ झुक सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक सुरेन्द्र तिपाठी इस रणनीति से सहमत भी हैं। उनका कहना है कि अतीत में ब्रहमण, मुस्लिम और दलित का समीकरण ही कांग्रेस को जिताता रहा है। ऐसे में इस एकजुटता को स्वाभाविक माना जा सकता है।
श्री त्रिपाठी की मानें तो सपा के खिलाफ चलने वाली इंकम्बेंसी और यूपी में कई दंगों से दुखी मुसलमानों के पास बसपा ही एकमात्र विकल्प है। ऐसे में ब्रहमण, खास कर पंडित हरिशंकर तिवारी जैसा सशक्त लीडर सामने पाकर वह बसपा की ओर आसानी से मुड़ सकता है।
अन्य जानकार भी मानते हैं कि गोरखपुर मंडल में मुसलमान योगी आदित्यनाथ के सियासी दबाव से खिन्न रहता है। ऐसे में ब्रहमण वोटरों के साथ योगी गुट को पछाड़ने के लिए वह हारती सपा के बजाये सरकार बनाने की दावेदार बसपा के साथ खड़ा होना अधिक पसंद करेगा।
बसपा की रणनीति है कि लाल अमीन विधान परिषद चुनाव में जितनी शिदृदत से सक्रिय होंगे, विधान सभा चुनाव के लिए नयी सोशल इंजीनियरिंग उतनी ही मजबूत होगी।