सारस संरक्षण योजना को शासन से नहीं मिली मंजूरी
संजीव श्रीवास्तव
सिद्धार्थनगर। सारस संरक्षण से संबंधित करीब 45 लाख रुपये का प्रोजेक्ट लगभग एक वर्ष पूर्व शासन को भेजा गया था, मगर आज तक उस पर मंजूरी नहीं मिल पायी है। जिससे राज्य पक्षी का दर्जा प्राप्त इस पक्षी के संरक्षण में तमाम दिक्क्तें पैदा हो गयी है।
सारसों का बुद्ध भूमि की मिटटी खूब रास आ रही है। यहीं कारण इनकी तादाद लगातार यहां पर बढ़ रही है। वन विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 2013 में सारसों की तादाद 296 थी। जिसमें 240 व्यस्क एवं 56 बच्चे थे। वर्ष 2014 में इनकी संख्या 333 पहुंच गयी। इसमें 289 व्यस्क एवं 44 बच्चे शामिल थे। ताजा वर्ष यह संख्या 431 पहुंच गयी है। इसमें 346 व्यस्क एवं 85 बच्चे है।
यहां यह भी बताते चले कि 2015- 16 को सारस संरक्षण वर्ष घोषित किया गया था। इसके तहत संवर्धन कार्य, प्रचार-प्रचार, गोष्ठी, तालों की साफ-सफाई एवं सारसों के रहने के लिए टीलों का निर्माण किया जाना था। इससे संबंधित कार्ययोजना को वन विभाग ने स्वीकृति के लिए शासन को भेजा था। जिस पर जल्द शासन से हरी झंडी की उम्मीद थी, मगर एक साल बाद वह फाइल कहां पर है ? इस सवाल का उत्तर वन विभाग के अफसरों के पास नहीं है।
इस सिलसिले में प्रभागीय वन निदेशक ने बताया कि सारसों को प्रजनन के लिए जो जलवायु चाहिए, वहां सिद्धार्थनगर में मौजूद है। उन्होंने कहा कि सारसों का संरक्षण की दिशा में जनता में जागरुकता बढ़ी है। यह एक शुभ संकेत है। उन्होंने कहा कि वैसे सारस संरक्षण को लेकर विभाग द्वारा 45 लाख की कार्ययोजना बनायी गयी थी, मगर शासन से मंजूरी नहीं मिल पायी। इस लिए सारस संरक्षण की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया जा सका।