शाजिया की आवाज तमाम महिलाओं के दर्द की नुमाइंदगी करती है
नजीर मलिक
“शाजिया आले अहमद सोशल मीडिया का अहम चेहरा हैं। वे अक्सर महिलओं की आवाज बन कर चीखती देखी जाती हैं। उनकी चीख से बहुतों की आंखें भी खुलती हैं। मगर उनकी इस चीख को अभी भी बहुत–बहुत दूर तक पहुंचाने की जरूरत है। इस बार वे महिलाओं की समस्या पर आवाज उठाते हुए पुरुषों की बदनीयती पर जोर से चीखी हैं। कपिलवस्तु पोस्ट उनकी इस चीख को समाज में और फैलाने की एक छोटी सी कोशिश कर रहा है। आप भी इस चीख को मर्दों के जंगल में पहुंचा कर जकड़न के सन्नाटे को तोड़ सकते हैं।”
शाजिया की बात
मैं मुसलमान, मेरा मज़हब सबसे अच्छा ,मेरे नबी सब नबियों में अफज़ल , मेरी किताब (कुरआन ) सबसे अच्छी किताब हैं । जिसमें औरतों को सबसे ज्यादा हुक़ूक़ दिये गये हैं । जिसमें लिखा हैं औरतों को पर्दे में रहना चाहिये । मान लिया मैंने बिल्कुल सही लिखा है बिल्कुल रहना चाहिये । जो औरत पर्दे में नहीं रहती वो आवारा है बदचलन है । चलो ये भी मान लिया है । अब मेरे एक सवाल का जबाव दें और ईमानवालों ईमानदारी से देना । उसी अफज़ल और आला किताब ( कुरआन ) में, सुरह बकरह: की आयत में पहले मर्दों को निगाह नीची रखने का हुक्म है । उसके बाद औरत को पर्दे का हुक्म दिया गया है ।जरा मुझे बताएं कौन मर्द हज़रात अपनी निगाह नीची रखता है?
मझे अब तक की कुछ ही लोग ही ऐसे मिले जिनकी निगाह अल्लाह के हुक्म से झुकी हुई थी । बाकि तो दीदे फाड़ फाड़ कर एक्सरे करने से बाज़ नहीं आते । मौका मिले तो अल्ट्रासाउन्ड भी कर डालें । फिलहाल इसी से काम चलाते हैं। बाकि और भी काफी सामान है आँख सिंकाई का । अच्छा छोड़ो , इस सवाल का जवाब नहीं है। कोई बात नहीं, दूसरे सवाल का जवाब तो होगा। हमारे प्यारे नबी अल्लाह के रसूल, महबूब हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्ललाहो अलैह वसल्लम, जिनके लिये हम जान भी दे सकते हैं, जिहाद कर सकते है,मरने–मारने पर उतारू हो सकते हैं ।
आखों की ठन्डक नमाज जो कि इस्लाम का दूसरा और अहम फर्ज़ है हम नहीं पढ़ सकते ! क्यों ? क्योंकि कभी हम पाक नहीं होते हैं , जबकि इस्लाम में पाकी आधा ईमान है । कभी ठन्ड बहुत लगती है तो वुजू कैसे करें । कभी गरमी बहुत सताती है और मस्जिद में एसी नहीं हैं । हां हम जुमे की नमाज पढ़ लेते है वो भी कौन सी अल्लाह और रसूल के लिये पढ़ रहे हैं । सब पढ़ते है तो पढ़ लेते हैं दुनिया दिखावा भी तो कोई चीज होती है वरना लोग क्या कहेंगे ?
अब आइये ज़रा रोज़ा जो तीसरा फर्ज है । वो तो ज्यादातर मुसलमान रखते है , चलो खैर हुई बच गये बाबू । अरे नहीं साहब , ऐसे कैसे बच गये । इतनी आसानी से पीछा थोड़े ही छोड़ेगे । जब तक कायदे से धोएंगे नाहीं , तब तक छोड़ेगे नाहीं । माना की नाकिसुल अक्ल, नाकिसुल अक्ल, और औरत सब से पहले जहन्नुम में जायेगी कह – कह कर, आपने हमारी खुद एतमादी को पूरी तरह से चकनाचूर कर दिया है । लेकिन कुछ नाकिसुल अक्ल औरतें उसी चूरे से लड्डू बनाने में लगी है । लड्डू अपने आत्मसम्मान का, अपने हक़ का, अपनी हैसियत का, अपने आत्मविश्वास का, अपने हिस्से के आसमान का । रोज़ा तो रह ही गया । हाँ तो बात हो रही थी रोज़े की , उसमें भी हम सिर्फ खाना ,पीना ही छोड़ते है ज्यादा से ज्यादा पान, सिगरेट, गुटका छोड़ देते हैं । लेकिन औरतों को ताड़ना हम हरगिज़ नहीं छोड़ते हैं। फिर चाहे वो बुरक़े में हो तो भी देखते है । तब इसलिये देखते हैं कि कुछ दिख नहीं रहा है । और जब कुछ दिखता है तो इसलिये देखते है कि कुछ दिख रहा है।
बहरहाल हम अपने दिल को बहलाने का सामान ढूंढ ही लेते हैं । पहले टी.वी. वी.सी.आर. में, अब नेट आ जाने से तो बल्ले बल्ले हो गई है । वीडियो देखो एक से एक झक्कास, किसी को पता भी न चलेगा । और फिर हम शरीफ तो हैं ही । और बस चलें तो गंदे वीडियो बना कर यू टयूब पर डाल दो । क्योकि यहाँ के हम सिकन्दर, रखते हैं सब को अपनी जेब के अन्दर । बाकि सवाल और भी पहले इनका जवाब दें।