कैलाली कांड के बाद नेपाल की तराई में तनाव, हिंसक झड़पों में 50 घायल
नज़ीर मलिक
“कैलाली की भयानक खूंरेजी के बाद नेपाल के तराई में तनाव बढ़ गया है। जगह-जगह हिंसक झड़प और प्रदर्शनों में तेज़ी आ गई है। उत्तर-प्रदेश सीमा से सटे नेपाल के कई शहरों और कस्बों में नेपाली सेना के जवान तैनात कर दिए गए हैं। यूपी-नेपाल सीमा पर अलर्ट जारी कर दिया गया है। सीमा पर एसएसबी के जवानों की चौकसी बढ़ा दी गई है। मधेसी और थरूहट आंदोनकारियों का कहना है कि वह अपने लिए दो प्रदेशों से कम पर कोई समझौता नहीं करेंगे। मंगलवार को दर्ज हिंसक झड़पों में कम से कम 40 लोग घायल हुए हैं। सोमवार को कैलाली में हुई हिंसा में एसएसपी समेत 18 जवान और तीन आंदोलनकारियों की मौत हो गई थी।”
फिलहाल भारत से सटे कृष्णानगर, नेपालगंज, सोनौली, भैरहवां, तौलिहवां जैसे नेपाली उपनगरों में स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। नेपाली सेना व सशस्त्र पुलिस संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार गश्त कर रही हैं। भैरहवां और बुटवल जैसे भीड़भाड़ वाले इलाक़ों में सन्नाटा पसरा है। रोहतक में एसपी आफिस पर पथराव की खबर है, बांके ज़िले में पुलिस से झड़प में नेपाल संयुक्त मोर्चा के संयोजक व पूर्व मंत्री इश्तियाक अहमद राई समेत 25 लोग घायल हैं। बांके में ही पुलिस से झडप में डेढ़ दर्जन लोग घायल भी हुए हैं। कैलाली में एसडीएम उदय बहादुर ठकुरी ने अराजक तत्वों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिया है।
वहीं तनाव के बीच स्वायत्त प्रदेश की मांग कर रहे मधेसी आंदोलनकारी मधेस सरकार के बैनर के साथ अलग-अलग जगहों पर रथ यात्राएं निकाल रहे हैं। मधेस सरकार का एलान करने के बाद मधेसी आंदोलनकारियों ने चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। आसपास के भवनों पर मंत्रालयों के बोर्ड भी टांग दिए गए हैं। दूसरी ओर नेपाल सीमा से सटे सिद्धार्थनगर, बहराइच, महाराजगंज, श्रावस्ती जैसे भारतीय ज़िलों के सीमाई इलाकों में भी एसएसबी की गश्त तेज़ कर दी गयी है। कपिलवस्तु सीमा पर नेपाल पुलिस ने अलीगढ़वा से पकड़िहवा तक संयुक्त मार्च भी किया है।
नेपाल में एक पखवाड़े से चल रही हड़ताल के कारण जन-जीवन अस्त व्यस्त है। भारत से नेपाल जाने वाली खाद्य सामग्री न पहुंचने से वहां रोज़मर्रा की चीजों का अभाव हो गया है। इसके साथ नेपाली पर्यटन उद्योग पर भी संकट के बादल घिरने लगे हैं। याद रहे कि मधेसी व थारू समाज नेपाल के तराई इलाके में थरूहट व मधेस प्रांत की मांग कर रहा है। उसकी शर्त है कि इन दो प्रदेशों में पहाड़ी बाहुल्य ज़िले शामिल न किए जाएं।