अग्रलेख- क्या मुसलमानों ने अखिलेश का साथ छोड़ने का मन बना लिया है
माब लिचिंग, एनआरसी व आजम खान की गिरफ्तारी पर अखिलेश यादव के ठंडे रवैये से बहुत आहत दिख रहा यूपी का मुस्लिम समाज
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। यूपी में दो लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनावों में अपने ही गढ़ में सपा की करारी हार बहुत कुछ सोचने के लिए मजबूर करती है। रामपुर और आजमगढ़ की सीटें सपा की नजर में अजेय समझी जाती थी। दोनों ही सीटों के जातीय समीकरण भी सपा के पक्ष में थे, दोनों सीटों पर सपा के मुकाबले लड़ने बाले विजयी प्रत्याशी भी अपेक्षाकृत कमजोर थे। बावजूद इसके सपा प्रत्याशियों की हार ने साफ संकेत दे दिया है कि आने वाले दिन सपा के लिए बेहतर साबित नहीं होने जा रहे हैं।
विधनसभा चुनाव पूर्व मैने एक समीक्षा में लिखा था कि इस चुनाव में मुसलमानों का अब तक का सर्वधिक वोट सपा को मिलेगा। यह वोट अखिलेश यादव व सपा के प्रेम में नहीं वरन भाजपा को हराने के प्रयास में मिलेगा, लेकिन इसके बाद से मुस्लिम मतदाता सपा से छिटकना शुरू कर देगा। यह मुसलमानों के मन की बात के आधार पर लिखी गई थी। था। इस बात का संकेत आजमगढ़ व रामपुर के उपचुनावों में मिल भी गया है।
अखिलेश मुलायम सिंह जैसे नहीं
इसका कारण बताते हुए कुछ जागरूक मुस्लिम कहते भी हैं कि अखिलेश यादव में वह हिम्मत और ताकत नहीं जो मुलायम सिंह यादव जी में थी। नेता जी मुसलमानों पर आये किसी भी संकट में खुल कर उनके साथ खड़े होते थे। लेकिन अखिलेश में वह बात नहीं है। वह एक तो बहुत जिद्दी और इगोइस्ट हैं। दूसरे वह मुसलमानों के संकट में उनके साथ खड़े नहीं होते। मुसलमानों में यह बात घर करती जा रही है कि माब लिंचिंग दौरान मारे गये लोगों, एनआरसी जैसे मुद्दों पर उनकी खामोशी उन्हें मुसलमानों की नजर में कत्तई नहीं उठा पा रही। यही नहीं आजम खान की गिरफ्तारी पर अखिलेश के रुख ने मुसलमानों में अखिलेश को लेकर भरे संशय को और भी पुख्ता किया है। कई अराजनैतिक मुस्लिम मसलन प्रोफेसर, पत्रकार, लेखक मित्र ही नहीं गांव में बैठे पढ़े लिखे साथी तक कहते हैं कि मुलायम सिंह जी की जुझारू प्रवृति के कारण मुसलमान उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, मगर अखिलेश यादव में वह गुण दूर दूर तक नजर नहीं आता।
एयरकंडीशन से बाहर निकलें अखिलेश
तमाम मुस्लिम साथी यह कहते पाये जाते हैं कि कांग्रेस कितनी भी कमजोर क्यों न हो मगर राहुल गांधी आज भी भाजपा और संघ के प्रति अत्यधिक आक्रामक तथा मुखर हैं। वह किसी भी मुद्दे पर बोलते ही नहीं वरन अपने (मुठ्ठी भर ही सही) साथियों को लेकर सड़क पर उतरते हैं, जब कि /धर्मेन्द्र यादव जैसे जुझारू प्रत्याशी के आजमगढ़ से चुनाव लड़ने और संघर्ष में फंस जाने के बावजूद भी अखिलेश यादव एयरकंडीशन रूम से बाहर नहीं निकलते तो वह किसी मुस्लिम के संकट में फंसने पर क्यों कर निकल सकेंगे।
सच्चाई समझनी होगी
इन हालात में अखिलेश को इस कडवी सच्चाई को याद रखना चाहिए कि मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ जाने का मन बना रहा है। ऐसे में अभी उनको रोकने के लिए अखिलेश यादव के पास कम से कम डेढ़ साल मौका है। वह चाहें तो मुसलमानों और पिछड़ो की मूलभूत समस्याओं को लेकर सड़क पर उतरें और उनमें खुद के प्रति विश्वास पैदा करने की कोशिश करें। वरना आगामी अगामी लोकसभा चुनाव में तो कम, मगर बाद के विधानसभा चुनावों में लोग भूल जाएंगे कि वह उन्ही मुलायम सिंह के बेटे हैं, जिन्होंने अकलियतों के हक व हिफाजत के लिए अपनी सरकार ही नहीं अपना समूचा राजनैतिक करियर तक दांव पर लगा दिया था।