यूपी में कांटे से कांटा निकालने की तैयारी में भाजपा, सीएम के लिए दे सकती है यादव चेहरा
एस दीक्षित
लखनऊ। यूपी में चुनाव का काउंट डाउन शुरू हो गया है। भाजपा आने वाले चुनाव में में सपा को शिकस्त देने के लिए कांटे से कांटा निकालने की तर्ज पर रणनीति बना रही है। इसके लिए वह भाजपा से सीएम पद के लिए किसी यादव नेता को आगे कर दे, तो ताज्जुब की बात नहीं होनी चाहिए।
हाल में भाजपा ने लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे ब्राह्मण चेहरे को हटा कर पिछड़ा वर्ग के केशव प्रसाद मौर्य को प्र्रदेश अध्यक्ष बनाया है। दरअसल भाजपा इस बार प्रदेश के चुनाव में पिछडा कार्ड खेलने के मूड में दिखती है। इस क्रम में वह सीएम के रूप में भी पिछड़ा वर्ग के नेता को तरजीह दे सकती है।
क्या है भाजपा की रणनीति
इस रणनीति के तहत भाजपा के एक खेमे की राय है कि यादव मुस्लिम आधारित समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव के मुकाबले भाजपा अगर किसी यादव चेहरे को आगे करे तो यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर सपा को शिकस्त दी जा सकती है।
इस कवायद के तहत भाजपा ने सपा के ही एक चर्चित नेता वीरेद्र सिंह यादव को तोड़ कर भाजापा में लाने की रणनीति बनाई है। इस कवायद को कामयाब बनाने का प्रयास जोरों पर चल रहा है।
पहले भी हुई थी वीरेन्द्र पर कोशिश
हाल ही में विरेन्द्र यादव को उत्साही भाजपाईयों ने आरएसएस के संकेत पर भाजपा की ओर से एमएलसी उम्मीदवार का नामांकन करवा कर सपा की पैरों तले ज़मीन खिसकाने मे कामयाबी हासिल की थी, मगर पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेई गुट के भीतरघात और सपा हाईकमान से साठगांठ कर विरेन्द्र यादव को दोबारा सपा के पाले जबरन खिसका दिया गया था
इसी घटनाक्रम के चलते ही लक्षमीकांत बाजपेई को अपने ही गृह जनपद मेरठ में हुई इस घनघोर सियासी उठा पटक में भाजपा की छिछालेदर को न रोक पाने के चलते पद से हाथ गंवाना पड़ा है। अब जब भाजपा प्रदेश ईकाई से लक्ष्मीकांत बाजपेई गुट की छुट्टी हो चुकी है, तब एक बार फिर से विरेन्द्र सिंह यादव को भाजपा में लाने की खेमेबंदी की जा रही है।
यूपी में १५० सीटें यादव बाहुल्य
माना जा रहा है भाजपा के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में विरेन्द्र यादव को सामने लाया जाएगाए जिसे संघ की ओर से भी सहमती लगभग दे दी गई है। यह घोषणा भाजपा की ओर से आगामी कुछ दिनों में की जा सकती है। यूपी में करीब 150 सीटों पर यादव वोट खासी अहमियत रखता है, ऐसे में विरेन्द्र सिंह यादव को भाजपा की ओर से मुख्यमंत्री पद के चहेरे के रूप में सामने लाना सपा के लिए कितनी कठिनाई पैदा करेगा, यह तो वक्त ही बतायेगा।