सामूहिक स्थानांतरण से थानों के उर्दू अनुवादक बेचैन, महसूस कर रहे खतरा
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। जिले के सभी थानों पर नियुक्त उर्दू अनुवादकों को जिला पुलिस आफिस में बुला लिए जाने के कारण थानों पर उर्दु अनुवाद का काम तो प्रभावित हुआ ही है, इस स्थानांतरण से उर्दू अनादकों में बैचैनी छाई हुई है। उनसे जिस तरह का काम लिया जा रहा है उसके बारे में अनुवादकों को कोई जानकारी ही नहीं है। ऐसे में वे सब सिर पर हमेशा कार्रवाई की तलवार लटके रहने की आशंका में नौकरी करने को मजबूर है।
बताया जा है कि जनपद के सभी १८ थानों पर मुलायम सिंह के शासनकाल में उर्दू अनुवादकों की तैनाती की गई थी। इतने अरसे बाद उन सभी को थानों से बुला कर जिला पुलिस कार्यालय में तैनात कर दिया गया। बताया जा है कि यहां पर उन अनुवादकों से उर्दू का काम लेने के बजाये अन्य काम लिये जा रहे हैं। जिसके लिए उन्हें कोई प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। एक अनुवादक ने बताया कि वे थानों पर उर्दू के अभिलेखों काहिंदी में अनुवाद करते थे, इसके अलावा बचे समय में थानाध्यक्ष केनिर्देश पर अन्य कामों में सहयोग देते थे।
अन्य अनुवादकों को कहना है कि उन्हें जिले पर हिंदी में ऐसे जटिल लिपिकीय कार्य दिये जा रहे हैं जिनके विषय में उन्हें कोई जानकारी नहीं है। अनवादकों का कहना है कि ऐसे में वे काम ढंग से नहीं कर पाते। गलतियों होने पर उन्हें डांट फटकार मिलती है। लेकिन उन्हें डार है कि कभी कोई बड़ी गलती हो जाने पर उनकी नौकरी पर भी आंच अ सकती है। उनका यह भी कहना हैकि उनका स्थानांततरण भी नियम विरूद्ध है। वह एक थाने से दूसरे थाने पर स्थानांतरितकिये जा सकते हैं। परन्तु सभी को एक साथ जिला कार्यालय पर बुला लेने को न तो कोई टौचित्य है और नहीं ही कोई नियम है।
बताया जाता है कि विभाग के इस फैसले से उर्दू अनुवादक बहुत दुखी हैं। कई तो इतना डरे हुए हैकि उन्होंने नौकरी छोड़ने अथवा वीआरएस लेने का मन बना लिया है। उनका कहना हैकि उनकी नियुक्ति जिस काम के लिए हुई है उनसे वहीं काम लिया जाये।हिंदी की जटिल पत्रावलियों के निस्तारण करते समय उन्हें हर समय अपनी नौकरी पर खतरा बना रहता है।