विशेष रिपोर्ट– संघ ने क्यों कराई योगी की मुख्मंत्री पद की ताजपोशी
उत्कर्ष सिन्हा
लखनऊ। योगी आदित्यनाथ को यूपी के मुख्यमंत्री की कमान सम्हालने के बाद से ही इस बात की बहस तेज हो गयी है कि क्या योगी की ताजपोशी में संघ प्रमुख मोहन भागवत के एक फोन की भूमिका थी ? क्या योगी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की पहली पसंद थे या फिर संघ के दबाव में मोदी शाह की जोड़ी को योगी को स्वीकार करना पड़ा?
11 मार्च को आये यूपी विधान सभा के नतीजो के बाद भाजपा को अपना मुख्यमंत्री चुनने में एक हफ्ते का समय लग गया. जाहिर सी बात है की एक संगठित पार्टी को भी यह निर्णय लेने में समय लगा तो निश्चित रूप से उसके पीछे प्रभावशाली लोगो के बीच में स्वाभाविक सहमती नहीं रही होगी. यहाँ तक की गोवा जैसे राज्य जहाँ पार्टी चुनाव हार चुकी थी, वहां भी मनोहर पर्रीकर को नतीजे आने के तुरंत बाद ही बतौर सीएम प्रोजेक्ट कर दिया गया, उत्तराखंड में भी फैसला जल्दी हो गया मगर यूपी का फैसला आने में सबसे ज्यादा टाईम लगा.
18 मार्च की शाम जब योगी का नाम घोषित हुआ उसके पहले आधा दर्जन नाम इस पद के लिए उछाले जा चुके थे. राजनाथ सिंह, मनोज सिन्हा, केशव प्रसाद मौर्य, डा.दिनेश शर्मा, राम लाल, स्वतंत्र सिंह देवजैसे नाम हर रोज मीडिया की सुर्खियाँ बंटे रहे. मीडिया के एक धड़े ने तो मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री मान कर खबरे चलानी शुरू कर दी थी. मगर अंत में यूपी की कमान योगी आदित्यनाथ को ही मिली.
कई जानकारों का मानना था कि आरएसएस कभी भी योगी को अपना प्रतिनिधि नहीं बनाना चाहेगा क्योंकि योगी संघ के ढांचे के सामानांतर अपनी हिन्दू युवा वाहिनी चलते रहे हैं और संघ एक साथ दो संगठनो को बर्दाश्त नहीं करता. घटनाक्रम का इशारा भी साफ़ बताता है कि मोदी की पसंद भी मनोज सिन्हा ही थे और उनके आश्वाशन पर ही मनोज सिन्हा न सिर्फ बनारस दर्शन करने गए थे बल्कि शपथ ग्रहण की उम्मीद में मनोज सिन्हा की पत्नी और बेटी लखनऊ के लिए सड़क मार्ग से निकल भी गए थे. मगर इसी बीच अचानक योगी को विशेष विमान से दिल्ली बुलाया गया और शाम होते होते उन्हें भाजपा विधायक मंडल दल का नेता घोषित कर दिया गया. मनोज सिन्हा लखनऊ आने की बजाय चुपचाप दिल्ली चले गए.
“नमो स्टोरी: अ पोलिटिकल लाइफ” किताब के लेखक वरिष्ठ पत्रकार
किंशुक नाग का दावा है कि योगी के सीएम बनने के पीछे मोदी शाह
नहीं बल्कि खुद आरएसएस है. 18 मार्च को संघ प्रमुख मोहन भगवत
के वीटो ने मोदी और शाह को अपना फैसला बदलने के लिए मजबूर कर दिया.“
जानकारों का कहना है कि योगी की ताजपोशी के पीछे आरएसएस की एक चिंता काम कर रही है. व्यक्ति से ज्यादा संगठन को तरजीह देने वाला संघ कभी पार्टी में किसी की मनमानी नहीं चलने देना चाहता और न ही किसी को यह एहसास होने देना चाहता है की वह व्यक्ति मनचाहे फैसले ले सकता है. यही कारण था कि यूपी के सीएम पद पर मोदी अपनी पहली पसंद के व्यक्ति को नहीं बैठा सके. हालाकि योगी को खुद मोदी भी बहुत पसंद करते हैं और वे उनके खिलाफ भी नहीं थे.
आदित्यनाथ को संघ भाजपा में मोदी के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देख रहा है. 2019 के बाद जब
2024 में भाजपा लोकसभा चुनावो में उतरेगी तब तक मोदी की उम्र 75 पार कर चुकी होगी. और नयी नीति के अनुसार 75 पार नेताओं को सन्यास लेने की सलाह खुद मोदी भी देते रहे हैं ऐसे में तब तक योगी की बतौर प्रशासक ट्रेनिंग भी हो चुकी होगी और परीक्षा भी. दूसरी तरफ 2025 आरएसएस का शताब्दी वर्ष भी होगा. संघ चाहता है कि तब तक भारत हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाए ऐसे में योगी उसके लिए सही चेहरा होंगे.
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