जिला पंचायत में लूट और फर्जीबाड़े का बाजार सरगर्म, ‘जो लूट सके वह लूट’ की नीति चालू है
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। वित्तीय अनिमित्ता को लेकर 38 सदस्य जिला पंचायत सदस्य पिछले पांच दिन से जिला पंचायत कार्यालय परिसर में अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हैं। लेकिन उनकी मांगे बेहद सरल और नियम सम्मत होने के बावजूद नहीं मानी जा रही हैं। मांगे न माने जाने का कारण दरअसल तमाम घोटोलों पर परदा डालना है। वरना क्या कारण है कि 48 में से 38 सदस्य जिला पंचायत की बैठक कराने की मांग को लेकर आंदोलित हैं और अपर मुख्य अधिकारी के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रहा है। धरनारत सदस्यों ने मांगे नहीं मानी जाने पर सामूहिक त्यागपत्र देने का एलान किया है।
जिला पंचायत सदस्यों का आरोप है कि गरीबदास के जिला पंचायत अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से यहां त्रिस्तरीय कमेटी काम कर रही है। जिसकी साढ़े चार महीने से कोई बैठक नहीं कराई गई। नतीजतन त्रस्तरीय कमेटी और अपर मुख्य अधिकारी मिल कर मनमानी तथा फर्जीवाड़ा कर रहे हैं, जबकि जिला पंचायत की बैठक के लिए नियत अंतराल शासन ने निर्धारित कर रखा है।
सदस्यों के मुताबिक इस बारे में पूछे जाने पर जिला पंचायत अध्यक्ष यह कहते हैं कि बैठक बुलाने से सम्बन्धित जो पत्रावली त्रिस्तरीय कमेटी को भेजी जाती है उस पर वह हस्ताक्षर ही नहीं करती। यहां यब बता दें कि त्रिस्तरीय समिति भी जिला पंचाायत अधिनियम से ही शासित है। वह नियमों से परे नहीं है।
क्या है बैठक न बुलाने के पीछे की चाल?
जिला पंचायत की बैठक न बुलाने के पीछे अधिकांश बार लूट खसोट और भाई भतीजावाद पाया जाता है। इस बार भी आरोप है कि बैठक न होने का लाभ उठाकर अपर मुख्य अधिकारी शासनादेश को ताक पर रखकर अपने चहेते लोगों को लाखों करोड़ों के ठेकेपट्टे दे रहे हैं। जबकि बैठक होने पर सदस्यों के प्रस्ताव के अनुसार विकास कार्य स्वीकृत होते और धन का बंदरबांट नहीं हो पाता। हां, तब केवल कमीशनखोरी ही चल पाती।
क्या है महिला सदस्या के फर्जी हस्ताक्षर का राज
इसी दौरान जिला पंचायत में एक और फ्राड का मामला उजागर हुआ है। जिला पंचाायत की एक सदस्या किस्माती देवी त्रिस्तरीय कमेंटी की सदस्य हैं। वे इस वक्त गंभीर रोग से ग्रस्त है और हस्ताक्षर करने की स्थिति में नहीं हैं। परन्तु अनेक भुगतानों प्रपत्रों पर उनके हस्ताक्षर हैं। जाहिर है कि उनके फर्जी हस्ताक्षर के पीछे बड़ा गोल माल किया गया। फिलहाल अपरमुख्य अधिकारी जिला पंचायत सदस्यों की आवाज पर ध्यान न देने की नीति अपना कर कई मजबूत हाथों का खिलौना बने हुए हैं।