सिद्धार्थनगरः तीन सीटों पर बहुकोणीय तथा बांसी व कपिलवस्तु सीट पर सपा भाजपा में सीधा मुकाबला
मतदान पूर्व की अंतिम रिपोर्ट
नजीर मलिक
सिद्धार्थनगर। कल 03 मार्च यानी गरुवार को मतदान दिवस है। इसके बावजूद जिले की सभी पांच विधानसभा सीटों का चुनावी परिद्श्य अस्पष्ट लग रहा है। तीन सीटों पर चुनावी समीकरण इतने जटिल और चुनावी युद्ध इतने तीखे हो रहे है कि किसी के हार जीत का संकेत दे पाना खतरे से खाली नहीं है। हां बांसी और कपिलवस्तु सीट पर जरूर सीघे मुकाबले का अनुमान है। संभव है कि कल के मतदान के दौरान उल्झा परिदृश्य कुछ साफ हो तथा हार जीत के संकेत और स्पष्ट हो सके। वैसे भाजपा के प्रति साफ्ट कार्नर रखने वाले जिले के एक सीनियर पत्रकार सपा को तीन तथा भाजपा व कांग्रेस को एक एक सीट देने का अनुमान व्यक्त कर रहे हैं।
डुमरियागंज में वही जीतेगा, जो अपना वोट बैंक बचा लेगा
डुमरियागंज में षटकोणीय मुकाबले में एक से बढ़ कर एक चुनावी शूरवीर आमने सामने हैं। सपा की सैयदा खातून, भाजपा के विधायक राघवेन्द्र प्रताप सिंह व बसपा से भाजपा के पूर्व विधायक जिप्पी तिवारी के भाई अशोक तिवारी, कांग्रेस से दिग्गज कांग्रेसी सच्चिदानंद पांडेय की पत्नी कांती पांडेय, भागीदारी परिवर्तन मोर्चा से पांच बार विधायक रहे कमाल युसुफ मलिक के पुत्र इरफान मलिक तथा पूर्व दर्जा प्राप्त मंत्री राजू श्रीवास्तव एक दूसरे से दो दो हाथ करने में लगे हैं। सैयदा खातून वर्तमान में सपा की लहर के सहारे चुनावी वैतरणी पर करने में लगी हुई हैं। परन्तु इरफान मलिक उनकी राह की जबरदस्त बाधा साबित हो रहे हैं।
इस सीट पर जिले में सर्वाधिक 37 प्रतिशत यानी 1 लाख 50 हजार मतदाता हैं। इरफान के समर्थन में आवैसी निरंतर तीन सभाएं कर माहौल को बदलने का प्रयास कर चुके हैं। जबकि अखिलेश यादव इटवा की सभा में सैयदा की जीत की अपील कर चुके हैं। जबकि भाजपा के पूर्व विधायक जिप्पी तिवारी के भाई अशोक तिवारी बसपा से लड़ कर दलित ब्रह्मण मोर्चा बनाने का प्रयास कर भाजपा के राघवेन्द्र प्रताप सिंह की राह में रोड़े अटका रहे हैं। इसके अलावा कांग्रेस की कांती पांडेय भी भाजपा के आधार वोट में ही सेंघ लगा रही है। यही नही मित्र संघ के राजू श्रीवास्तव भी पूरे दम खम के साथ सक्रिय हैं। उन्हें कायस्थ समाज में अच्छा समर्थन मिल रहा है। इस प्रकार एक दूसरे का वोट काटने की जबरदस्त होड़ में कौन सुरक्षित बचेगा, यह कहना मुश्किल है। फिर भी जिले के एक वरिष्ठ पत्रकार सपा और बसपा को एज दे रहे हैं। लेकिन पूरी तरह आश्वस्त वे भी नहीं हैं। इस बार लोग अपने प्रत्याशी की जीत के लिए कम भाजपा को हराने के लिएअधिक प्रयास करते दिख रहे हैं।
चौकोर लड़ाई में बहुत कठिन है डगर इटवा की
इटवा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी डगर सबसे कठिन दिख रही है। यहां चतुष्कोणीय मुकाबले में सभी प्रत्याशी एक दूसरे को बराबर की टक्कर दे रहे हैं। भाजपा उम्मीदवार और बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्धिवेदी के मुकाबले में सपा के दिग्गज नेता माता प्रसाद पांडेय मैदान में हैं तो गत चुनाव में सतीश द्विवेदी से हार कर दूसरे नम्बर पर रहे अरशद खुर्शीद कांग्रेस और भाजपा के बागी हरिशंकर सिंह बसपा उम्मीदवार के रूप में मैदान में पूरी ताकत से लड़ रहे हैं। गौरतलब है कि अरशद माता प्रसाद और हरिशंकर सिंह भाजपा के सतीश का वोट बराबरी में विभाजित कर चुनाव को चतुष्कोणीय बनाने में कामयाब हैं। इटवा के 3 लाख 35 हजार मतदाताओं में 36 प्रतिशत यानी 1 लाख 10 हजार मुस्लिम मतदाता हैं। इतने विशाल वोट बैंक को लेकर माता प्रसाद पाण्डेय और अरशद खुर्शीद में जबरदस्त जंग चल रही है। मुस्लिम मत बुरी तरह विभाजन के शिकार है।
इसी प्रकार भाजपा के बेहद शालीन नेता रहे हरिशंकर सिंह अपनी उपेक्षा से तंग आकर आखिर में बसपा की सदस्यता ली। उनके साथ भाजपा के काफी वर्कर जुटे हुए हैं। 20 हजार दलित मत एकमुश्त उनके साथ हैं। इसलिए उन्हें भी मुख्य संघर्ष से अलग कर नहीं देखा जा सकता। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि यहां चारों में बराबर की लड़ाई है। इसलिए किसी प्रकार का अनुमान लगा पाना खतरे से खाली नहीं है। जिले के पत्रकार निजी बातचीत में मानते हैं कि अपने लम्बे राजनीतिक अनुभव के चलते माता प्रसाद पांडेय व हरिंकर सिंह स्थिति का लाभ अंतिम क्षणें में उठा सकते हैं।
बांसी के ‘राजा’ कठिनतम संघर्ष में फंसे
बांसी विधानसभा सीट पर राजा बांसी व प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जाय प्रताप सिंह अपने जीवन की कठिनतम लड़ाई लड़ रहे हैं। पहली बार चुनाव लड़ रहे 30 वर्षीय मोनू दुबे ने बांसी में जिस प्रकार का तगड़ा माहौल बनाया है, उससे जय प्रताप सिंह के समर्थक भी चिंतित देखे जा रहे हैं। बांसी में 2007 को छोड़ कर सपा 1989 से ही भाजपा से हारती रही है। लेकिन इस बार उसके परम्परागत मुस्लिम मतों में ब्राह्मण के भी जुटने से जय प्रताप सिंह को कमजोर माना जा रहा है। परन्तु राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ब्रह्मणों का रूझान सपा के पक्ष में होने से भाजपा के जय प्रताप सिंह कमजोर जरूर हुए है। परन्तु अंत में वह अपने राजनीतिक अनुभव व कौशल के सहारे चुनाव जीतने में सफल हो जाएंगे। फिलहाल उनके राजनीतिक जीवन इस यह सबसे कठिन लड़ाई मानी जी रही है। वैसे मोनू दुबे के इतिहास रचने की संभावनाएं भी कम प्रबल नहीं हैं।
कपिलवस्तु सीट पर हार जीत का पता नहीं
कहने को तो कपिलवस्तु विधानसभा सीट पर सपा बसपा व भाजपा में त्रिकोणीय संघर्ष चल रहा है। परन्तु बसपा के पास उसके आधार वोट के अलावा कोई अन्य वोट न होने से बसपा प्रत्याशी कन्हैया कनौजिया की स्थिति कमजोर आंकी जा रही है। यहां मुख्य मुकाबला सपा के विजय पासवान और भाजपा विधायक श्यामधनी राही के बीच है। श्यामधनी भी पासी जाति से ही हैं। यहां 4 लाख 51 हजार मतदाताओं में सर्वाधिक वोटर यानी लगभग 90 हजार मतदाता मुस्लिम समाज से हैं।
इसके अलावा 36 हजार यादव, 20 हजार पासी मतदाता है। यह सपा का मुख्य आधार वोट माना जाता है। दोनों उम्मीदवारों की मुख्य लड़ाई अति पिछड़े वोटों को लेकर है। इनमें जो प्रभाव कायम करेगा वही अंत में जीत का हकदार होगा। भाजपा के श्यामधनी राही के खिलाफ सत्ताजनित वोटर इनकम्बैंसी के साथ उनके घर को जोड़ने वाली सड़क मुख्यालय से लोटन वाया सोहांस मार्ग भी जबरदस्त मुद्दा बनी हुयी है। इन दो कारणों से सपा को एज मिल रहा है। लेकिन भाजपा को भी कमजोर समझना सच से मुंह मोड़ना होगा।
शोहरतगढ़ः बहुकोणीय संघर्ष अनुमान कठिन
विधानसभा सीट शोहरतगढ़ में पहले बसपा और कांग्रेस में सीधी लड़ाई होने का अनुमान था क्यों कि भाजपा और सपा दोनों ने अपनी सहयोगियों को टिकट दिया था, लेकिन दोनों दलों के नाराज स्थानीय नेता और कार्यकर्ता बाहरी कह उनके खिलाफ हवा बनाने लग गये थें परन्तु बाद में मान मनौव्वल के बाद सपा गठबंधन से राजभर की पार्टी भासपा उम्मीदवार प्रमेचंद कश्यप और भाजपा गठबंधन से अपना दल उम्मीदवार विनय वर्मा ने अपनी स्थिति संभाली और धीरे धीरे अपनी स्थिति मजबूत करने लगे।
इसी बीच भागीदारी परिवर्तन मोर्चा के उम्मीदवार डा. सरफराज अंसारी ने भी विधानसभा सीट पर पहली बार मुस्लिम को जिताने का नारा देकर एक नई राह बनानी प्रारम्भ कर दी। नतीजे में यहां के 26 प्रशित मुस्लिम मतदाता विभाजित हो गये। यही नहीं प्रारम्भ में कांग्रेस के पप्पू चौधरी और बसपा के राधारमण की जो बढ़त बनी थी उसमें से गठबंधन उम्मीदवारों ने कितनी कितनी सेंधमारी की इसका अंदाज लगा पाना कठिन है। इसलिए यहां बहुकोणीय संघर्ष की संभवना नजर आ रही है।