छत्तीसगढ़ चुनावः धान के कटोरे में पक रहे चावल की बेचैनी
— इलेक्शन लाइव
वरिष्ठ पत्रकार कमलेश पांडेय की कलम से
यह छत्तीसगढ़ का सरगुजा संभाग है। इसके ठीक ऊपर है कर्क रेखा। सूर्य की सीधी और तीखी किरणें पहाड़ियों से लेकर पठार तक को गरमाए रखती हैं। चुनावी ताप भी यहां कायदे से महसूस होता है। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहते हैं। आप सरगुजा को इस कटोरे की पेंदी कह सकते हैं। सीजन धान का है। सियासत भी धान पर आकर ठहर गई है। यूं तो धान खरीद का समय 14 नवंबर से शुरू होता है लेकिन सामने चुनाव था, क्रय केंद्र इस बार एक नवंबर को ही खोले गए। सरकार इस बार समर्थन मूल्य के साथ 300 रुपये प्रति कुंतल बोनस भी दे रही है। किसान फिर भी संतुष्ट नहीं। लिहाजा धान के कटोरे में अचानक विरोध का चावल पकने लगा।
किसान नहीं बेच रहे धान
कटोरे की बाहरी परत छूने पर भीतर कुछ खौलने का एहसास दूर से ही होने लगा है। और भीतर पहुंचें तो गांव-गांव अगैती धान (अरली वैरायटी) का ऊंचा-ऊंचा ढेर घरों के बाहर छाजन के नीचे दिखता है। धान बेचा क्यों नहीं? यह सवाल भाजपा के रणनीतिकारों को भी अजब असमंजस में डाल देता है। किसान कहने लगे हैं कि अभी धान बेचा तो खाते में आने वाली धनराशि फसली कर्ज काटकर आएगी। चुनाव बाद हो सकता है कर्ज माफ हो जाए। भाजपा इस अफवाह से बेचैन दिखती है। भाजपा ने घोषणा पत्र में कर्ज माफी की बात नहीं की है, फिर किसानों तक यह शिगूफा पहुंचा कैसे?
कर्जमाफी का वादा कर कांग्रेस राहत में
भाजपा तो बोनस और बढ़ाने का वादा करती रही है। हां यह जरूर है कि कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल कर्जमाफी को अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल कर इस मुद्दे को हवा देने का दांव खेल चुके हैं। भाजपाई थिंक टैंक को अनुमान भी नहीं रहा होगा कि धान और किसान यूं ही अचानक दूसरे चरण में अहम मुद्दा बन जाएंगे। अब दलों की बेचैनी देखिए- कांग्रेसी हाथ में गंगाजल लेकर कर्जमाफी का वादा पूरा करने की कसमें खाने लगे। गृहमंत्री राजनाथ सिंह समर्थन मूल्य घटाने बढ़ाने को केंद्र की शक्ति बताने लगे। भाजपा के सभी कद्दावर नेता धान मूल्य व बोनस मिलाकर 26 सौ रुपये देने का वादा करने लगे हैं।
अखिलेश के हाथ क्या आयेगा?
सपा नेता व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पहुंचे तो सरकार बनने पर 15 मिनट में ही कर्ज माफी का दावा करने लगे। यह जानते हुए भी कि समाजवादी पार्टी का यहां कभी कोई वजूद नहीं रहा। सपा ने दो-तीन सीटों को प्रभावित करने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन कर रखा है, जो खुद की लाज बचाने के लिए संघर्ष कर रही है। जाहिर है कि अखिलेश का इरादा भी धान के कटोरे में पकते चावल को थोड़ी और आंच देना था। मतदान अब 20 नवंबर को होगा। इसके बाद ही पता चलेगा कटोरे में पकता चावल किसके लिए कच्चा रहा और किसके लिए पक्का। धान क्या खेल दिखाएगा इसे परिणाम तय करेंगे।