कर्बला पर विशेष- इमाम हुसैन की मदद में भारत के हुसैनी ब्राहृमणों की पल्टन भी गई थी कर्बला?

September 9, 2019 11:48 AM0 commentsViews: 861
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 विशेष प्रतिनिधि

लखनऊ। यजीद के अन्याय के खिलाफ खड़े इमाम हुसैन की मदद के लिए दत्त ब्रहृमणों की पूरी बटालियन इराक गई थी, लेकिन तब तक इमाम हसैन शहादत पा चुके थे। इसलिए हिंदुस्तानी फौज कूफा से भारत लौट गई। अगर पल्टन पहले पहुंची होती तो शायद कर्बला की कहानी कुछ और होती।

पूरी घटना कुछ इस तरह बताई जाती है। ईरान के तत्कालीन सूसानी शासक जाजोजर्द जिन्हें कुछ इतिहासकारों ने यजदोगर्द भी लिखा है, की एक बेटी महरबानों की शादी उज्जैन के चालुक्य राजा विक्रमादिय से हुई थी। महर का अर्थ चांद होता है, ऐसा माना जाता है कि शादी के बाद महरबानों की भारतीय नाम चन्द्रलेखा रखा गया। मेहरबानों की दूसरी बहन शहरबानों की शादी हजरत इमाम हुसैन से हुई थी। सूसानी तब अग्नि के उपासक शासक थे। तब के शासकों में गैर मजहब के शसकों से भी ऐसे रिश्ते बनते रहते थे। कुछ लोग इस कहानी को जाने़ -अनजाने चंद्रगुप्त द्धितीय से जोड़ देते हैं जो सर्वथा  गलत है।

बताया जाता है कि यजीद से जंग के आसार देख हजरत इमाम हुसैन ने विक्रमादित्य को मदद के लिए पैगाम भिजवाया था। विक्रमादित्य का सेनापति पंडित भूरिया दत्त था। हजरत इमाम हुसैन को संकट में घिरा देख कर विक्रमादित्य ने ने सेनापति भूरिया दत्त को एक पल्टन के साथ फौरन इराक रवाना किया।

सन 680 में 11 अक्टूबर को उसकी पल्टन कूफा तक पहुंची थी, कि कर्बला से इमाम की शहादत की खबर आ गई। भूरिया दत्त का काफिला कुछ दिन कूफा में रुक कर भारत लौट आया। अगर पल्टन कुछ दिन पहले पहुंचती तो शायद कर्बला की कहानी कुछ और हो जाती। दत्त सैनिक जहां रुके थे, उस स्थान को आज भी मुहल्ला हिंदुयान कहा जाता है। पंजाब के पूर्व राज्यपाल वी.के.एन छिब्बर के मुताबिक यही नही कर्बला में बने म्यूजियम में आज भी २२ मोहियाल यानी हुसैनी ब्राहृमणों के नाम लिखे हुये हैं। यही दत्त ब्रह्मण हैं।

दूसरी तरफ एक और बहादुर ब्राहृमण राहिब दत्त भी अपने बेटों के साथ कर्बला पहुंचा हुआ था। यजीदी फौजों ने राहिब (कुछ के अनुसार रहाब) दत्त के बेटों को मार दिया, तो इमाम हुसैन ने रहाब को भारत लौट जाने को कहा। राहिब और उनके साथी आकर पंजाब में बस गये। उस घटना के बाद दत्त ब्राहृमणों को हुसैनी ब्राहमण भी कहा जाने लगा। पंजाब और आसपास के इलाकों में उठावनी / पगड़ी की रस्म यहीं से शुरू हुई। वैसे कुछ विद्धानों का मानना है कि राहिब दत्त जब इराक पहुंचे तो हजरत इमाम हुसैन की शहादत हो चुकी थी।

प्रसिद्ध लेखक इंतजार हुसैन लिखते हैं कि वह पहले इस घटना को कहानी ही समझते थे। मगर दिल्ली में एक सेमिनार के दौरान नूनिका दत्त नामक महिला प्रोफेसर ने बताया कि वह खुद हुसैनी ब्राहृमण हैं। समकालीन पत्रकार और लेखक जमनादास अख्तर के मुताबिक वह खुद दत्त ब्रहमण हैं। उनके यहां अशूरा को शोक की तरह मनाते हैं। परिवार में खाना नहीं बनता है। फिल्म अभिनता संजय दत भी हुसैनी ब्राहृमण हैं। उनके पिता सुनील दत्त कहते थे कि उन्हें हुसैनी ब्राहृमण होने पर गर्व है।

नोट़़— लेख से सम्पादक का सहमति होना अनिवार्य नहीं।

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